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Updated: 22 अक्टूबर, 2020 03:26 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को,

मैं चमारों की गली तक ले चलूंगा आपको.

(Adam Gondvi Birthday) सभ्य समाज समानता, एकता, अखंडता की कितनी भी बड़ी बड़ी बातें क्यों न कर ले जैसे ही उसके सामने उपरोक्त पंक्ति आएगी शायद बोलती बंद हो जाए. क्यों? वजह है हमारे समाज की वो सियाह हकीकत जिसे कभी हम जानबूझकर तो कभी अनजाने में खारिज करते हैं. लेकिन 'अदम' हमसे अलग थे. उन्होंने बिना किसी लाघ लपेट के समाज का वो चेहरा हमें दिखाया जो भले ही बाहर से बहुत खूबसूरत हो लेकिन जब हम उसके अंदर झांकते हैं तो वो बेहद डरावना है. अदम यानी रामनाथ सिंह. वो शायर जिसने हुकूमत और हुक्मरानों को तमाचा जड़ा और बिना किसी की परवाह किये डंके की चोट पर जड़ा. आज अदम गोंडवी का जन्मदिन है ऐसे में हमारे लिए ये जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर कैसे कोई शायर इतना निर्भीक, इतना निष्ठुर और इस हद तक मुखर हो सकता है कि जब हुकूमत उसके शेरों को सुने तो बचने के लिए मुंह छुपाए.

Adam Gondvi, Poem, Shayar, Issue, Poverty, Unemploymentअपनी रचनाओं में अदम ने उन मुद्दों को उठाया जो गरीबों के मुद्दे थे आम आदमियों के मुद्दे थे

हर दिल अजीज शायर और कवि अदम गोंडवी की रचनाओं का यदि अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि इनकी रचनाओं में न तो चांद सितारे थे और न ही आशिक और माशूक के किस्से. बल्कि अदम ने जीवन की तल्ख हक़ीक़त को बेबाकी के साथ शब्दों में पिरोया.

अदम गोंडवी को पढ़ते हुए ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि उन्होंने भूख, गरीबी, भ्रष्टाचार, दलित, भय, राजनीति, नेताओं पर लिखा और वाक़ई क्या खूब लिखा.

अदम के पॉलिटिकल सटायर आज भी लेखन की विधा से जुड़े हुए लोगों के लिए नजीर हैं. हैरत होती है कि कोई इतनी बेबाकी के साथ बेखौफ होकर कैसे लिख सकता है? पॉलिटिकल सटायर में अदम का लेवल क्या था गर जो इस बात को समझना हो तो सबसे पहले हमें उनकी एक कविता को पढ़ना चाहिए. अदम कहते हैं कि

वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है

उसी के दम से रौनक आपके बंगले में आई है

इधर एक दिन की आमदनी का औसत है चवन्नी का

उधर लाखों में गांधी जी के चेलों की कमाई है

कोई भी सिरफिरा धमका के जब चाहे जिना कर ले

हमारा मुल्क इस माने में बुधुआ की लुगाई है

रोटी कितनी महंगी है ये वो औरत बताएगी

जिसने जिस्म गिरवी रख के ये क़ीमत चुकाई है

इसी तरह अदम ने उन लोगों पर भी तीखा कटाक्ष किया है जो बदहाल होते सिस्टम को देखते तो हैं मगर सत्ता के डर के आगे घुटने टेक देते हैं. अदम की रचनाएं बताती हैं कि वो वाक़ई निडर थे. अपने समकालीनों को चैलेंज करते हुए अदम ने लिखा कि

भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो

या अदब को मुफ़लिसों की अंजुमन तक ले चलो

जो ग़ज़ल माशूक के जल्वों से वाक़िफ़ हो गयी

उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो

मुझको नज़्मो-ज़ब्त की तालीम देना बाद में

पहले अपनी रहबरी को आचरन तक ले चलो

गंगाजल अब बूर्जुआ तहज़ीब की पहचान है

तिशनगी को वोदका के आचमन तक ले चलो

ख़ुद को ज़ख्मी कर रहे हैं ग़ैर के धिखे में लोग

इस शहर को रोशनी के बांकपन तक ले चलो.

अदम बागी थे और उन्हें उन लोगों को देखकर गहरी टीस होती थी जो सरकारों की हां में हां मिलाते और उनकी गलतियों को नजरअंदाज करते. अपने वक़्त के बुद्धिजीवियों को अदम ने बड़ा मैसेज दिया और लिखा कि

न महलों की बुलंदी से न लफ़्ज़ों के नगीने से

तमद्दुन में निखार आता है घीसू के पसीने से

कि अब मर्क़ज़ में रोटी है,मुहब्बत हाशिये पर है

उतर आई ग़ज़ल इस दौर मेंकोठी के ज़ीने से

अदब का आइना उन तंग गलियों से गुज़रता है

जहां बचपन सिसकता है लिपट कर मां के सीने से

बहारे-बेकिरां में ता-क़यामत का सफ़र ठहरा

जिसे साहिल की हसरत हो उतर जाए सफ़ीने से

अदीबों की नई पीढ़ी से मेरी ये गुज़ारिश है

संजो कर रक्खें ‘धूमिल’ की विरासत को क़रीने से

वर्तमान में अमीर और गरीब को एक करने की कितनी भी बातें क्यों न हों लेकिन सच्चाई क्या है ये न आपसे छुपा है और न ही हमसे. अमीरी और गरीबों में किस हद तक दूरी है गर जो कभी इस बात को समझना हो तो हम उनकी उन पंक्तियों को पड़ सकते हैं जिनमें तकलीफ़ ज़ाहिर करते हुए सत्ता और तंत्र से उन्होंने कहा है कि

तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है

मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है

उधर जम्हूरियत का ढोल पीते जा रहे हैं वो

इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है, नवाबी है

लगी है होड़ - सी देखो अमीरी और गरीबी में

ये गांधीवाद के ढांचे की बुनियादी खराबी है

तुम्हारी मेज़ चांदी की तुम्हारे जाम सोने के

यहां जुम्मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है

उग्र तेवर वाले अदम ने किसानों की तकलीफ को शब्द दिए हैं और ये शब्द कुछ ऐसे हैं कि यदि ये आज भी हमारी नजरों के सामने से गुजर जाएं तो रुककर ये हमारी आंखों में आंखें डाल हमसे सवाल करेंगे.

कब तक सहेंगे ज़ुल्म रफ़ीक़ो-रक़ीब के

शोलों में अब ढलेंगे ये आंसू ग़रीब के.

इक हम हैं भुखमरी के जहन्नुम में जल रहे,

इक आप हैं दुहरा रहे क़िस्से नसीब के.

उतरी है जबसे गांव में फ़ाक़ाकशी की शाम,

बेमानी होके रह गए रिश्ते क़रीब के.

इक हाथ में क़लम है और इक हाथ में क़ुदाल,

बावस्ता हैं ज़मीन से सपने अदीब के.

अदम की रचनाओं को पढ़ते हुए बार बार वो एक बार जो हमारे जहन पर प्रहार करती है वो ये कि अदम एक ऐसे शायर है जिन्होंने अपनी रचनाओं में रूमानियत के चोंचले नहीं पाले. अदम ने जनता की आवाज़ उठाना चुना और कुप्रथाओं के ख़िलाफ अदबी जंग छेड़ी. आज भी जब हम यूट्यूब पर अदम को सुनते हैं तो महसूस होता है कि आज ही शायर अपने तल्ख़ लहजे से पूरे सिस्टम को बदल देगा. 

कहा ये भी जा सकता है कि भले ही लाइन में सबसे आगे बैठा व्यक्ति अदम को सुनकर वाह वाह करे लेकिन ये रचनाएं प्रभावित उनको करती हैं जो लाइन में सबसे पीछे खड़ा है और जिसके सामने भूख, बेरोजगारी, महंगाई और सिस्टम जैसे मुद्दे हैं. अदम आज भी हथियार हैं गरीबों के, बेरोजगारों के. जिस तरह अदम ने अपनी शायरी और कविताओं की बदौलत सत्ता को चुनौती देते हुए हुक्मरानों को व्यंग्य के कड़वे घूंट पीने पर मजबूर किया वो अपने आप में बेमिसाल है.

अंत में हम अदम की इन लोकप्रिय पंक्तियों के साथ अपनी बात को विराम देंगे कि

काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में

उतरा है रामराज विधायक निवास में

पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत

इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में

आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह

जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में

पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें

संसद बदल गयी है यहां की नख़ास में

जनता के पास एक ही चारा है बगावत

यह बात कह रहा हूं मैं होशो-हवास में

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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