New

होम -> समाज

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 14 सितम्बर, 2015 02:57 PM
अभिषेक पाण्डेय
अभिषेक पाण्डेय
  @Abhishek.Journo
  • Total Shares

मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल इलाके झाबुआ के छोटे से शहर पेटलावद में हुए एक धमाके ने 90 लोगों की जान ले ली. अब बात 90 लोगों की मौत की करें या उस विस्फोटक की, जो बेहद सामान्य तरीके से इस क्रूर हादसे की वजह बना.

मौत का सौदा इतनी आसानी से!
झाबुआ के पेटलावद के एक रेस्तरां में जिस विस्फोट ने 90 लोगों की जान ली उसका जिम्मेदार था रेस्तरां के पास स्थित एक गोदाम में गैरकानूनी ढंग से जिलेटिन रॉड्स रखने वाला राजेंद्र कासवा. कासवा इस घटना के बाद से लापता है. वह या तो फरार है या इस घटना में उसकी मौत हो गई है. लेकिन कासवा की कहानी हमारे सिस्टम की खामियों की ऐसी जीती-जागती गवाह है जोकि बेहद डरावनी और शर्मनाक है.

सरकार ने क्यों कासवा पर लगाम नहीं कसी?
राजेंद्र कासवा पिछले तीन दशकों से विस्फोटकों की अवैध तस्करी करता रहा है और इस मामले में 1981 में उसे गिरफ्तार भी किया गया था लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि बावजूद इसके उसे पेट्रोलियम एवं विस्फोटक सुरक्षा संगठन (PESO) से लाइसेंस मिल गया था. उसे यह लाइसेंस माइनिंग बिजनेस के लिए मिला हुआ था, लेकिन उसने कथित तौर पर जिलेटिन रॉड्स को एक गोदाम में स्टोर कर रखा था.

स्थानीय लोगों का कहना है कि कासवा के बारे में पुलिस से कई बार शिकायत किए जाने के बावजूद उसके राजनीतिक रसूख की वजह से उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. उसके बारे में कहा जा रहा है कि वह आरएसएस का पूर्व सदस्य रह चुका है और अब बीजेपी के स्थानीय व्यापारी संघ का सदस्य है.

बारूद के ढेर पर बैठा है मध्य प्रदेश?
मध्य प्रदेश के इस इलाके में माइनिंग बिजनेस के लिए विस्फोटकों का लाइसेंस पाना काफी आसान है. झाबुआ जिले का इलाका पथरीला है. इसलिए यहां सड़क निर्माण, खदानों, कुओं और तालाबों की खुदाई के लिए विस्फोटकों का इस्तेमाल किया जाता है. जिसके लिए यहां कुछ लोग जिलेटिन विस्फोटक का धंधा करते हैं. इतना ही नहीं यहां के छोटे ठेकेदारों को भी सड़कों के निर्माण के लिए पत्थरों को तोड़ने के लिए बड़ी आसानी से जिलेटिन की रॉड्स मिल जाती हैं.

सोई रहीं सरकारें और सुरक्षा एजेंसिया
इस धमाके ने एक बार फिर से राज्य की सुरक्षा एजेंसियों को सवालों के कठघरे में खड़ा कर दिया है कि क्यों वे सालों से जारी इन विस्फोटकों की अवैध तस्करी को रोक पाने में नाकाम रही हैं. इतना ही नहीं ये विस्फोटक आसानी से स्मगलर्स, किसानों और यहां तक कि आतंकी संगठनों के हाथों तक पहुंचते रहे और सरकार और पुलिस सोई रही. यहां के किसान एक जिलेटिन छड़ को अवैध रूप से 100 से 150 रुपये में बेचते हैं. जरा सोचिए, किसी भी आतंकवादी संगठन के लिए ये विस्फोटक हासिल करना कितना आसान है और यह देश के लिए यह कितना घातक हो सकता है इसकी कल्पना से ही रूह कांप जाती है.

पूरे देश पर आतंकी हमले का खतरा
मध्य प्रदेश में इन विस्फोटकों की आसान उपलब्धता और इसकी अवैध स्मगलिंग ने पूरे देश पर आतंकी हमले का खतरा बढ़ा दिया है. पिछले साल जनवरी में प्रतिबंधित इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के चार कार्यकर्ताओं को 900 जिलेटिन छड़ों और 12 बम के साथ हिरासत में लिया गया था. एनआईए ने 2013 में पीएम मोदी की रैली के दौरान पटना के गांधी मैदान में हुए विस्फोट के मामले में रीवा जिले से एक युवक को इस घटना के आरोपी को कथित तौर पर विस्फोटक सप्लाई करने के लिए अरेस्ट किया था. इससे पता चलता है कि सुरक्षा एजेंसियों की लापरवाही ने किस कदर पूरे देश को आंतकी हमले की खतरे की भट्टी में झोंक दिया है.

अमेरिका से सीखने की जरूरत
9/11 के आतंकी हमले के 14 साल बाद भी अमेरिका पर कोई भी बड़ा आतंकी हमला नहीं हुआ है. इसकी वजह वहां की सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की चौकसी और आतंकवाद से निपटने का फूलप्रूफ इंतजाम है. लेकिन इसके उलट भारत की सरकारें और सुरक्षा एजेंसियां कभी भी देश को आतंकी हमलों से पूरी तरह महफूज नहीं बना पाईं. यह घटना आतंकी घटनाओं के प्रति सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के शर्मनाक रवैये को उजागर करती है. इस लापरवाही की कीमत देश के लिए किस कदर भयावह साबित हो सकती है इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है.


पेटलावद में 90 लोगों की मौत इस देश की सरकारों के लिए एक गंभीर चेतावनी है. जो उनसे कह रही है कि अगर अब भी देश की सुरक्षा के फूलप्रूफ इंतजाम नहीं किए गए तो देश को झाबुआ जैसी और दुखद घटनाओं के लिए तैयार रहना होगा.

#झाबुआ, #मध्य प्रदेश, #पेटलावद, झाबुआ, मध्य प्रदेश, पेटलावद

लेखक

अभिषेक पाण्डेय अभिषेक पाण्डेय @abhishek.journo

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय