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Updated: 22 जनवरी, 2023 07:09 PM
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इन दिनों मुंबई से लखनऊ, दिल्ली, भोपाल, हैदराबाद तक जर्मनी की बहुत चर्चा है. एक जमाने में यहूदियों का खून, पानी की तरह बहाने वाला जर्मनी आज की तारीख में बड़ा सेकुलर देश माना जाता है. दुर्भाग्य यह है कि जर्मनी का अपना सेकुलरिज्म अब उसकी रगों में जहर बनकर दौड़ने लगा है. जर्मनी सेकुलरिज्म का बड़ा पैरोकार रहा मगर उसकी कीमत समूचे यूरोप को चुकानी पड़ रही है. कुछ ऐसा लग रहा कि खिलाफत के 100 साल पूरा होने के बाद अब शरणार्थी मुस्लिम गैंगों के सहारे ऑटोमन खिलाफत समूचे यूरोप के दरवाजे पर शांतिपूर्ण 'कब्जे' के लिए खड़ा हो गया है.  असल में जर्मनी मुस्लिम शरणार्थियों का बड़ा पैरोकार रहा है. इमिग्रेंट्स को लेकर जर्मनी की यह पॉलिसी थी. हालांकि पोलैंड जैसे देशों ने इसका जमकर विरोध किया था. पोलैंड ने तो विरोध में यहां तक कह दिया था कि वह अपनी जमीन पर एक भी मुस्लिम शरणार्थी को जगह नहीं देगा. एक भी. बदले में दस गुना दूसरे धार्मिक समूहों को शरण दे सकता है. तब पूरी दुनिया ने पोलैंड की तीखी आलोचना की थी. जर्मनी ने भी. लोगों ने पोलैंड के रुख को मानवअधिकार विरोधी, अमानवीय और सेकुलर मूल्य के खिलाफ ना जाने कितने तरह के आरोप लगाए थे. मगर पोलैंड अपने रुख से हिला नहीं.

इमिग्रेंट्स योजना पर कायम जर्मनी किस मुंह से पश्चाताप करेगा?

जर्मनी अपनी इमिग्रेंट्स योजना पर कायम रहा. उसने बड़े पैमाने पर मुस्लिम इमिग्रेंट्स को शरण दी. इसमें मोरक्कन इमिग्रेंट्स व्यापक रूप से शामिल हैं. अब यही मोरक्कन इमिग्रेंट्स ना सिर्फ जर्मनी बल्कि यूरोप के लिए खतरे का सबब बन गए हैं. आज की तारीख में मोरक्कन इमिग्रेंट्स के कई गैंग जर्मनी में आपराधिक कृत्यों में लिप्त हैं. लूटपाट, दंगे फसाद और ड्रग तस्करी उनके अहम काम हैं. खासकर लूटपाट के उनके तरीकों ने जर्मनी को हिलाकर रख दिया है. असल में जर्मनी में लोगों के बीच तगड़ा कैश कल्चर है. जर्मनी एक आधुनिक और अमीर देश है. मगर वहां ऑनलाइन ट्रांजैक्शन की बजाए नोटों का लेन देन बहुत लोकप्रिय है. नोटों के लेन देन का आलम कुछ ऐसा है कि वहां मात्र 8 करोड़ की आबादी पर देशभर में एक लाख बैंक एटीएम हैं. भारत में 140 करोड़ आबादी है मगर सिर्फ 2 लाख 38 हजार बैंक एटीएम हैं.

pathaan GERMANYस्पेन की सीमा में घुसने की कोशिश करते शरणार्थी. फोटो- AP

अब मोरक्कन इमिग्रेंट्स का जर्मनी की अर्थव्यवस्था में कोई योगदान नहीं, वे कुछ कर भी क्या सकते हैं. क्योंकि उन्हें अपराध ज्यादा आकर्षित करता है. जर्मनी में मोरक्कन इमिग्रेंट्स के बहुत सारे गैंग हैं. अब उनके निशाने पर जर्मनी के बैंक एटीएम हैं. एटीएम लूटने के लिए वे बारूदों का सहारा लेते हैं. बारूदों से उड़ाकर एटीएम लूट रहे हैं. मोरक्कन इमिग्रेंट्स बहुत मजहबी भी होते हैं. यूरोप में आरोप यहां तक है कि वे अपराध के जरिए असल में अपने मजहब कामों को भी आगे बढाने लगे हैं. कई रिपोर्ट्स में सामने आ चुका है कि साल 2022 भर में जर्मनी में बम से उड़ाकर करीब पांच सौ बैंक एटीएम लुटे गए. कुछ में विस्फोट इतना शक्तिशाली था कि कई कई मीटर दूर तक एटीएमके परखच्चे उड़ गए. कहने की जरूरत नहीं कि जर्मनी और यूरोप में किस तरह भय का माहौल है. मोरक्कन इमिग्रेंट्स ने एक इंटरनेशल यूनिटी बना ली है. वे मजहबी मुद्दों पर एक दूसरे की सहायता करते दिखते हैं.

जर्मनी समझ ही नहीं पा रहा कि अब वह करे क्या?

जर्मनी समझ ही नहीं पा रहा कि वह इन सब चीजों से कैसे निपटे? कार्रवाई करता है तो विक्टिम कार्ड सामने आता है और मानवाधिकार के नाम पर दुनियाभर के लोग आलोचना करने लगते हैं. विक्टिम कार्ड के नाम से मोरक्कन इमिग्रेंट्स को दुनियाभर से मदद मिलती है. यहां तक कि उन्हें जहां से अपनी जमीन छोड़कर भागना पड़ा था वहां से भी मजहबी मदद मिल जाती है.

जर्मनी की दिक्कत यह है कि वह करे तो क्या करे. जर्मनी को डर है कि जिस तरह से एटीएम लुटे जा रहे हैं- कई सारे रिहायशी इलाकों में हैं. वहां ऐसी घटनाओं में व्यापक रूप से जान माल के नुकसान की आशंका है. जर्मनी से भी ज्यादा खराब हालत स्वीडन की है. स्वीडन में मुस्लिम इमिग्रेंट्स की वजह से हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि आमने-सामने की झड़पें होने लगी हैं. फ्रांस की हालत बताने की जरूरत नहीं. बावजूद कि फ्रांस सख्ती से पेश आ रहा है और तुर्की के नेतृत्व में मुस्लिम देश हर तरह से उसका विरोध करते देखे गए हैं. और भी तमाम देश हैं.

रोहिंग्या शरणार्थियों से बाग्लादेश को खतरा लेकिन भारत खतरे की जड़ से बाहर

मुस्लिम शरणार्थियों की भयावह स्थिति केवल यूरोप भर में नहीं है. एशिया में भी कुछ देश परेशान नजर आते हैं. उदाहरण के लिए जब म्यांमार की जनता ने रोहिंग्या समुदाय से आजिज आकर उनके खिलाफ हिंसक कार्रवाई शुरू की वे भागकर उसमें से कई समूह भागकर बांग्लादेश या भारत की जमीन पर पहुंचे. बावजूद कि बांग्लादेश ने मानवता के नाम पर शरण दी मगर उसके नकारात्मक नतीजे सामने आ रहे हैं. पिछले साल शेख हसीना ने दो टूक कहा कि रोहिंग्या शरणार्थियों की वजह से बांग्लादेश में नाना प्रकार की चुनौतियां खाड़ी हो गई हैं. इसमें ड्रग तस्करी, अवैध जिस्मफरोशी, और तमाम तरह के अपराधों में रोहिंग्या शामिल हैं और देश को खोखला कर रहे हैं.

बावजूद कि रोहिंग्या शरणार्थियों की तरफ से भारत में किसी तरह के खतरे की खबर अब तक नहीं आई है. रोहिंग्याओ ने असल में किसी तरह का नुकसान भारत को नहीं पहुंचाया है- यह माना जा सकता है. शायद इसी वजह से भारत ने उनपर भरोसा जताते हुए दिल्ली और कश्मीर में बसाया गया है. कश्मीर में रहने की शरण दी. कश्मीर में 40 हजार से ज्यादा रोहिंग्या को बसाया गया. वे वहां के समाज में घुल मिल गए हैं और अब तक शांतिपूर्वक तरीके रहते नजर आ रहे हैं. बात दूसरी है कि कश्मीर के गैरमुस्लिम विस्थापित सामजस्य के साथ नहीं रह पाते और शायद यही वजह है कि उनकी घरवापसी नहीं हो पा रही है.

मोरक्कन इमिग्रेंट्स के लिए मानवीय नैरेटिव गढ़ दिए गए हैं, क्या करेगा जर्मनी

मजेदार यह है कि मोरक्कन इमिग्रेंट्स को बचाने के लिए मानवीय नैरेटिव गढ़े जा चुके हैं. क़तर में फ़ुटबाल कप के दौरान तमाम अभियानों पर गौर करिए तो उसे बेहतर समझ सकते हैं. मोरक्कन इमिग्रेंट्स को ब्रदरहुड के चक्कर में भारत समेत दुनिया के तमाम देशों से मदद मिल रही है. बदले में वे भारत में अपने सिंडिकेट की जिस तरह मदद कर सकते हैं, कर भी रहे हैं. गौर करिए- जर्मनी में भारत से जुड़ी ऐसी तमाम चीजें मिल जाएंगी जो इससे पहले कभी देखने को नहीं मिली थीं.

शरणार्थियों को लेकर जर्मनी की पालिसी की वजह से समूचे यूरोप को भुगतना पड़ा रहा है. पोलैंड वही देश है जिस पर जर्मनी ने रूस के साथ मिलकर 1939 में हमला किया था. कब्जा जमा लिया था. बेशुमार लोग मारे गए थे. पोलैंड के तमाम बच्चे अनाथ हो गए थे. कैम्पों में रहने को विवश थे. तब जामनगर के महाराजा ने वहां के 600 से ज्यादा अनाथ बच्चों को शरण दी. उन्हें हर तरह की शिक्षा दीक्षा और धार्मिक आजादी दी. बाद में वे अनाथ बच्चे पोलैंड वापस लौटे. पोलैंड भारत की मानवता को आज तक नहीं भूला है. जामनगर के राजा का नाम और उनकी वजह से भारत के सांस्कृतिक धार्मिक मूल्यों की पोलैंड में किस तरह इज्जत की जाती है- वहां घूम चुके किसी भारतीय से जरूर पूछिए.

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