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Updated: 08 जून, 2015 03:12 PM
आईचौक
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दिल्ली के एक नामी स्कूल से पढ़ा था सर्वश्रेष्ठ गुप्ता. स्कूल की सभी एक्टिविटी में तेज-तर्रार. वाइस हेड बॉ़य भी रहा था अपने स्कूल का. यहां से निकला तो दुनिया के चुनिंदा बिजनेस स्कूल में एडमिशन लिया -  वॉर्टन स्कूल ऑफ बिजनेस, यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया.

घर पर मां-बाप की खुशियों का ठिकाना नहीं. एक बाप को अपने बेटे से जो उम्मीदें होती हैं, वह सब पूरी होती दिख रही थीं. मात्र 22 साल की उम्र में वॉर्टन पासआउट होते ही दुनिया की सबसे सराही जाने वाली कंपनियों की लिस्ट में 23वें नंबर पर काबिज गोल्डमेन सैक्स में नौकरी. 10वीं-12वीं के लड़कों को प्रोत्साहित करती सफलता की कहानी.

...लेकिन कहानी में 16 अप्रैल 2015 को दुखद ट्विस्ट आ गया. सर्वश्रेष्ठ की मौत हो गई. मात्र 22 साल के युवा की मौत. बाप के सपनों की मौत, मां की ममता की मौत. सर्वश्रेष्ठ की मौत क्या सिर्फ मौत थी या कुछ और...

जवान बेटे की मौत के बाद सर्वश्रेष्ठ के पिताजी सुनील गुप्ता एक मार्मिक चिट्ठी लिखते हैं. पढ़ें इस चिट्ठी के मुख्य अंश (गोल्डमेन सैक्स में काम के बोझ को लेकर बाप-बेटे के बीच हुए संवाद) और सोचें-विचारें कि गला-काट प्रतिस्पर्द्धा के इस दौर में कौन जिम्मेवार है? कॉर्पोरेट कल्चर या टॉप पर बैठे बॉस, जो अपनी महत्वाकांक्षा में कर्मचारियों को मानव मशीन से ज्यादा कुछ नहीं समझते!      

सर्वश्रेष्ठ: पापा मुझे सोने तक की फुरसत नहीं है. लगातार 20 घंटे काम करना पड़ता है.

सुनील गुप्ता: बेटा इससे आपकी सेहत पर असर पड़ेगा.   

सर्वश्रेष्ठ: अरे पापा, अभी जवान हूं, तगड़ा हूं. इंवेस्टमेंट बैंकिंग हार्ड वर्क है.

सर्वश्रेष्ठ: यह नौकरी मेरे लायक नहीं है. हद से ज्यादा काम और समय न के बराबर. मैं वापस घर आना चाहता हूं.

सुनील गुप्ता: बेटा, सब आपकी उम्र के हैं, जवान और महत्वाकांक्षी. हिम्मत मत हारो. चलते चलो.

सुनील गुप्ता: इस्तीफा देने के बाद क्या करोगे बेटा?

सर्वश्रेष्ठ: मैं नए सिरे से शुरुआत करूंगा. घर का पका खाना खाऊंगा, टहलने के साथ-साथ जिम भी जाऊंगा. और साथ में काम करके अपने स्कूल का विस्तार करूंगा.

सर्वश्रेष्ठ: अब बहुत हो गया. दो दिनों से मैं सोया नहीं हूं. कल सुबह क्लाइंट के साथ मीटिंग है, उसके लिए प्रजेंटेशन तैयार करना है. मेरा वाइस प्रेसिडेंट नाराज है और मैं अकेला ऑफिस में काम कर रहा हूं.

सुनील गुप्ता: 15 दिन की छुट्टी लो और घर आ जाओ.

सर्वश्रेष्ठ: वो (कंपनी) नहीं मानेंगे.

सुनील गुप्ता: उन्हें (कंपनी) कह दो कि यह तुम्हारा रेजिगनेशन लेटर है.

सर्वश्रेष्ठ: ठीक है. एक घंटे में काम खत्म करके अपने फ्लैट चला जाऊंगा. फिर सुबह ऑफिस आऊंगा.

सर्वश्रेष्ठ के लिए वो अगली सुबह कभी नहीं आई!!! सोचना है कि गलती कहां हुई? दोष किसका है? क्या महत्वाकांक्षा जीवन से ज्यादा बड़ी है? मानवीय मूल्य और इंसानी रिश्तों की अहमियत है भी या नहीं? सोचना होगा क्योंकि 22 साल की उम्र में सर्वश्रेष्ठ अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे पाया और इस दुनिया से चला गया.

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