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Updated: 16 जुलाई, 2020 07:28 PM
संजीव चौहान
संजीव चौहान
 
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पिछले दो महीने में कुल 7 बार दहल चुकी है राजधानी की धरती. दिल्ली-एनसीआर (Delhi-NCR Earthquake) में रहने वाला हर शख़्स सहमा हुआ है, मन में इस सवाल के साथ कि कहीं ये हल्के-हल्के झटके किसी बड़ी तबाही का इशारा तो नहीं? हालांकि सारे झटके 5 की तीव्रता से कम के ही थे. मगर अगला झटका कब लगेगा और कितना तगड़ा लगेगा ये कोई नहीं जानता.

साइज़मिक ज़ोन 4 में है दिल्ली-एनसीआर

ज़मीन के नीचे की हलचलों को मापने के लिए पूरे देश में लगे 115 साइज़मिक रिकॉर्डर में से 16 सिर्फ़ दिल्ली एनसीआर में लगे हैं. और इनसे मिले डेटा के मुताबिक पिछले कुछ महीनों में करीब 17 झटके लग चुके हैं दिल्ली-एनसीआर को जिनमें से कई तो हम महसूस भी नहीं कर पाए.

Earthquake, Delhi, NCR, Natural Disaster, Modi Governmentगुजरे दो महीनों में जैसे भूंकप के झटके आए हैं सवाल है कि क्या दिल्ली इसके लिए तैयार है

ख़तरे को लेकर क्या कहते हैं वैज्ञानिक

दरअसल ये पूरा इलाक़ा भूकंप के लिहाज़ से दूसरे सबसे ख़तरनाक ज़ोन यानि साइज़मिक हैज़र्ड ज़ोन 4 में आता है. भूगर्भशास्त्रियों के एक तबके के मुताबिक भूकंप के ये हल्के झटके संकेत हैं कि दिल्ली एनसीआर के इलाक़े में कभी भी ख़तरनाक स्तर का भूकंप आ सकता है. हालांकि वैज्ञीनिकों का एक दूसरा तबका कहता है कि इस डर का अभी कोई वैज्ञानिक आधार उन्हें नहीं दिखता क्योंकि सतह के नीचे पिछले कुछ महीनों में ऐसी कोई स्पष्ट साइज़मिक एक्टिविटी उन्हें नहीं दिखती. लेकिन ये तो सच है कि दिल्ली-एनसीआर के नीचे से कई फ़ॉल्ट प्लेट गुज़रती हैं जो कभी भी ख़तरा बन सकती हैं.

परमाणु बमों से भी ज़्यादा ताकतवर हैं ये झटके?

धरती के नीचे की टेक्टोनिक प्लेट जिस जगह पर बार-बार टकराती हैं उसे फ़ॉल्ट लाइन ज़ोन कहा जाता है. जब इन फ़ॉल्ट लाइन की प्लेट्स आपस में टकराती हैं तो उनके किनारे मुड़ कर एक दूसरे पर चढ़ जाते हैं. इस भीषण टकराव से ज़बर्दस्त एनर्जी बाहर आती है और यही एनर्जी भूकंप का कारण बनती है. इस अनियंत्रित एनर्जी की शक्ति का अंदाज़ा यूं लगा लीजिए कि जब 2004 में हिंद महासागर में भूकंप आया था तो उससे पैदा हुई एनर्जी कई परमाणु बमों की क्षमता से ज़्यादा थी.

बार-बार क्यों दहल रही है दिल्ली?

दिल्ली की ज़मीन के नीचे तीन फॉल्ट लाइन गुज़रती हैं. दिल्ली-मुरादाबाद फ़ॉल्ट लाइन, मथुरा फ़ॉल्ट लाइन और सोहना फ़ॉल्ट लाइन. वहीं गुड़गांव के नीचे से तो सात फ़ॉल्ट लाइन गुज़रती हैं! जहां फ़ॉल्ट लाइन होती हैं वहीं पर भूकंप का एपीसेंटर बनता है. एक्पर्ट्स के मुताबिक इंडो-ऑस्ट्रेलियन और यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेट के टकराने और फ़ॉल्ट लाइन के सक्रिय होने से इस इलाक़े में लगातार भूकंप आ रहे हैं.

217 साल पुराना हादसा बस फिर ना हो

सन् 1720 में दिल्ली में 5.6 और इसके बाद 1803 में 6.8 की तीव्रता का भूकंप आया था. मथुरा में 1842 में 5.5, बुलंदशहर के पास सन् 1956 में 6.7, सन् 1960 में फ़रीदाबाद में 6 और 1966 में मुरादाबाद के पास 5.8 की तीव्रता का भूकंप आया था. पिछले 217 सालों से दिल्ली में कोई तीव्र भूकंप नहीं आया है लेकिन भूगर्भशास्त्रियों के मुताबिक फ़ॉल्ट लाइन्स को देखते हुए दिल्ली-एनसीआर पर हल्के से लेकर तगड़े झटके का ख़तरा लगातार बना हुआ है.

भूकंप की ‘बॉडी वेव्स’ मचाती हैं तबाही!

भूकंप आने पर उसके केंद्र यानि एपीसेंटर का दायरा 50-70 किमी का हो सकता है. नुकसान की वजह बनती हैं भूकंप के केंद्र से उठी ‘बॉडी वेव्स’ या ‘भूकंपीय तरंगे’ जो तेज़ी से भूकंप के एपीसेंटर से धरती की सतह की तरफ़ आती हैं और पूरी सतह पर फैल जाती हैं. एसीसेंटर से उठी ये तरंगे धरती की सतह पर 200-400 किमी के इलाके को अपनी चपेट में ले सकती हैं और इनसे सबसे ज़्यादा प्रभावित होते हैं 15 मीटर से ऊंचे ढ़ांचे. यानि एक से तीन मंज़िला ढ़ांचों पर तो इनका ज़्यादा प्रभाव नहीं होता. इनका सीधा निशाना बनती हैं बहुमंज़िला इमारतें.

मेक्सिको सिटी और अहमदाबाद ने झेली थी विभीषिका!

मेक्सिको में 1985 में आए 8.1 तीव्रता के भूकंप से उठी सतह की तरंगों ने 320 किमी दूर मेक्सिको सिटी में भयंकर तबाही मचाई थी. इसी तरह भारत में 2001 में भुज में आए 8.1 तीव्रता के भूकंप ने 310 किमी दूर अहमदाबाद तक तबाही मचाई थी.

संभल जाओ दिल्ली-एनसीआर!

भूकंप संभावित क्षेत्रों को 5 श्रेणियों में बांटा गया है. इनमें हिमालय का कुछ इलाक़ा साइज़मिक ज़ोन 5 में जबकि दिल्ली का इलाक़ा साइज़मिक ज़ोन 4 में आता है. दिल्ली हिमालयन रेंज से लगभग 300 किमी ही दूर है. अगर हिमालयन ज़ोन में कभी भूकंप आया तब भी दिल्ली एनसीआर उसकी चपेट में आ सकता है. वहीं गुड़गांव से तो 7 फॉल्टलाइन गुज़रती हैं. अगर इनमें से कोई भी एक्टिव हो गई तो 7.5 तक की तीव्रता का भूकंप कभी भी आ सकता है.

पूरा एनसीआर हाई डैमेज रिस्क ज़ोन में आता है. 1960 में 6.2 तीव्रता का भूकंप आया था जिसका एपीसेंटर दिल्ली एनसीआर था. उस भूकंप से उस वक़्त 200 इमारतों को नुकसान पहुंचा था. तब गुड़गांव बहुत हद तक गांव जैसा बसा था. मगर आज अगर इतनी भी तीव्रता का भूकंप यहां आया तो भयानक तबाही होने की आशंका है क्योंकि पूरे गुड़गांव में तो आज बहुमंजिला इमारतों का जाल बिछ चुका है.

हालात नाज़ुक हैं- जागो सरकार!

अपनी आसमान को चूमती इमारतों पर फ़क़्र करने वालों जाग जाओ. अब ज़रूरी है कि सरकार संभावित भूकंप को ध्यान में रखते हुए हर बिल्डिंग के स्ट्रक्चर ऑडिट को आवश्यक बनाए ताकि इमारतों में समय रहते ज़रूरी संशोधन किए जा सकें. नेशनल बिल्डिंग कोड ऑफ इंडिया के मुताबिक हर बिल्डर के लिए ज़रूरी है कि वो बिल्डिंग की डिज़ायन और उसे बनाने में इस्तेमाल होने वाली सामग्री में सख़्त दिशा-निर्देशों का पालन करे. मगर कई बिल्डर जल्द से जल्द अपनी बिल्डिंग बनाने और पैसा बचाने के चक्कर में इन क़ानूनों में ही सुरंग बना कर तमाम निर्देशों की धज्जियां उड़ा रहे हैं.

आख़िर कब टूटगी एजेंसियों की नींद ?

ताज्जुब ये है कि हमारी सरकारी एजेंसियां भी सरकारी नियमों को धता बताने वाली इमारतों का ऑडिट करने के बजाए सोई पड़ी रहती हैं और बिल्डिंग सुरक्षा के मानकों की सही जांच ही नहीं होती. जबकि नियमानुसार होना ये चाहिए कि बिल्डिंग को कम्प्लीशन सर्टिफ़िकेट या रहने योग्य घोषित करने से पहले उसकी स्ट्रक्चर इंजीनियर से पूरी तरह गहन जांच कराई जाए. और ये जांच इमारत निर्माण के कई चरणों में बार-बार किए जाने का नियम है. पर क्या वाक़ई ऐसा हो रहा है?

अपनी छत के नीचे कितने महफ़ूज़ हैं आप?

स्ट्रक्चर इंजीनियरिंग और भूकंपरोधी इमारतों के विशेषज्ञों के मुताबिक गुड़गांव बल्कि यूं कहें कि पूरे दिल्ली एनसीआर में ज़्यादातर बहुमंज़िला इमारतें ऐसी हैं जो ख़तरनाक भूकंप की स्थिति में बस ढहने से बचे रहने के लिए बनाई गई हैं. लेकिन भूकंप के बाद ये इमारतें बिल्कुल भी इस्तेमाल होने लायक नहीं बचेंगी. यानि इनके स्ट्रक्चर में इतनी ताक़त नहीं है कि इन्हें भूकंप के बाद ठीक करके दोबारा रहने लायक बनाया जा सके.

कितना झटका झेल पाएगा आपका घर ?

इसे यूं समझें कि अगर कोई तगड़ा भूकंप आया तो मुमकिन है आपकी जान तो बच जाए मगर आपके सपनों का आशियाना, आपके जीवन भर की कमाई मिट्टी में मिल जाएगी. घर ख़रीदते वक़्त आपका बिल्डर आपको जो ‘भूकंपरोधी इमारत’ का सर्टिफ़िकेट दिखाता है वो बस एक छलावा भर है. ज़्यादातर बिल्डर ये नहीं बताते कि उनकी बनाई इमारत, ‘भूकंपरोधी इमारत’ की ‘किस श्रेणी’ में आती है.

हर रिहायशी इमारत के आरडब्ल्यूए को अपने बिल्डर से इस बात की तस्दीक करनी चाहिए कि उनकी बिल्डिंग किस श्रेणी की है और फिर अपनी बिल्डिंग को बचाने के लिए संबंधित विभागों से बात कर आवश्यक कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए. समझना बेहद ज़रूरी है सिर्फ़ 'भूकंपरोधी इमारत का ठप्पा' होने भर से आपकी इमारत सुरक्षित नहीं हो जाती. दरअसल भूकंप सुरक्षा पर 2016 की एसोचैम और मियामोटो की रिपोर्ट में भूकंपरोधी इमारतों को 4 कैटेगरी में बांटा गया है.

ए कैटेगरी (हर स्थिति के लिए तैयार)- इस श्रेणी की इमारतों में इस तरह की सामग्री और प्रणाली का इस्तेमाल होता है कि भूकंप आने की स्थिति में इसके स्ट्रक्चर में किसी तरह का नुकसान नहीं होता है. बिल्डिंग की सारी सेवाएं भूकंप के बाद भी चालू रहती हैं.

बी कैटेगरी (तुरंत रहने को तैयार)- इस श्रेणी की इमारतें भूकंप का झटका झेलने के बाद मामूली तौर पर प्रभावित होती हैं. इसमें इस्तेमाल सामग्री और प्रणाली इस तरह की होती है कि भूकंप के फ़ौरन बाद इमारत अपनी पुरानी स्थिति में रहने और काम करने के लिए तैयार हो जाती है. बिल्डिंग की सारी सेवाएं भी भूकंप के तुरंत बाद बहाल हो जाती हैं.

सी कैटेगरी (ज़िंदगी की सुरक्षा)- भूकंप की स्थिति में ऐसी इमारतों को एक ख़ास हद तक नुकसान तो ज़रूर पहुंचता है मगर इसमें इस्तेमाल सामग्री, प्रणाली और क्षमता ऐसी होती है कि ऐसी इमारत झटके से फ़ौरन ढहती नहीं जिससे रहने वालों की जान सुरक्षित रहती है. भूकंप के बाद ऐसी इमारतों का विस्तृत स्ट्रक्चर आंकलन करने के बाद ये तय किया जाता है कि इमारत आवश्यक मरम्मत के बाद रहने लायक होगी या नहीं.

डी कैटेगरी (ढहने से बचाव)- तगड़े भूकंप की स्थिति में इस श्रेणी की इमारतों के स्ट्रक्चर को अच्छा ख़ासा नुकसान पहुंचता है. झटके के बाद इसकी सुविधाएं बुरी तरह से प्रभावित होती हैं. मगर इसका ढांचा ऐसा होता है कि ये बिल्डिंग ढहने से बच जाती है. जान का नुक़सान भले ही कम हो मगर भूकंप के झटके के बाद इस श्रेणी की इमारत फिर रहने लायक नहीं बचती.

समझिए बिल्डरों के ‘झोल’ को

बिल्डर ग्राहक को साफ़-साफ़ ये नहीं बताते कि उनकी ‘कथित भूकंपरोधी इमारत’ किस श्रेणी की है. ए, बी, सी या फिर डी? देश में बनीं ज़्यादातर इमारतें ‘डी’ कैटेगरी यानि तगड़े भूकंप की स्थिति में सिर्फ़ ढहने से बचने भर के योग्य हैं. कैटेगरी ‘ए’ तो दूर की बात है कैटेगरी ‘बी’ की इमारतें भी ना के बराबर ही होंगी. बस ये कह कर इमारतों को धड़ल्ले से बेचा जा रहा है कि इमारत भूकंपरोधी है.

जानकारी के अभाव में लाख़ों मासूम ग्राहक बस ‘भूकंपरोधी’ टैग देख कर इन ख़तरनाक अशियानों में बस चुके हैं. उधर, चिंता की बात ये है कि साइज़मिक ज़ोन 4 पर बसे दिल्ली एनसीआर के नीचे की धरती लगातार बेचैन है. दुआ बस ये है कि ये भूगर्भीय हलचल धीरे-धीरे थम जाए. क्योंकि अगर इसका उल्टा हुआ तो बुरा होगा. बहुत ही बुरा.

7 भूकंपों से तो जाग जाओ कुंभकर्णों ?

जाग जाओ सरकार. जगाओ अपनी एजेंसियों को. आख़िर ये कैसी नींद है जो इतनी हलचलों से भी नहीं टूट रही? समझाओ अपने निकम्मे विभागों को कि क़ुदरत ने अभी तक तो रहम बनाए रखा है. मगर वो क़ुदरत है! कोई नहीं जानता कि कब उसका मिज़ाज बदल जाए और उसकी त्यौरियां चढ़ जाएं?

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लेखक

संजीव चौहान संजीव चौहान

लेखक आजतक चैनल से जुड़े पत्रकार हैं

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