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Updated: 08 सितम्बर, 2018 03:02 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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दिल्ली में कई पर्यटन स्थल है. उन्हें घूमने के लिए आप दिल्ली टूरिज्म की बस ले सकते हैं या फिर ऑटो कर सकते हैं, या मेट्रो से जगह-जगह घूमने जा सकते हैं. दिल्ली शहर यानी दिल वालों की दिल्ली किसी भी टूरिस्ट को आकर्षित कर सकती है. दिल्ली में कई अनोखे टूरिस्ट स्पॉट हैं जैसे कुतुब मीनार. दुनिया का सबसे ऊंचा ईंटों द्वारा बनाया गया मीनार. ये मानव निर्मित पर्यटन स्थल इंजीनियरिंग का अनूठा नमूना तो है ही साथ ही यहां फोटो भी अच्छी आती है. पर अब दिल्ली वालों ने एक ऐसा स्थल बना लिया है जो थोड़े ही दिन में कुतुब मीनार से भी ऊंचा हो जाएगा.

पहाड़ देखना है तो कहीं और क्यों जाएं दिल्ली का गाज़ीपुर क्या बुरा है. यहां बात हो रही है उस मानव निर्मित पहाड़ की जो साल दर साल अपने नाम कई रिकॉर्ड किए जा रहा है और मजाल है कि किसी को इसके होने से कोई फर्क पड़े. अगर आप अब तक नहीं समझे तो मैं आपको बता दूं कि यहां गाजीपुर डंपिंग ग्राउंड की बात हो रही है जो अब ग्राउंड न रहकर पहाड़ बन गया है. आलम तो ये है जनाब कि ये पहाड़ कुतुब मीनार से सिर्फ 8 मीटर छोटा रह गया है. कुतुब मीनार की ऊंचाई 73 मीटर है तो इसकी भी 65 पहुंच गई है. पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी ऑन साइंस एंड टेक्नोलॉजी, एनवायरमेंट एंड फॉरेस्ट ने इसको लेकर रिपोर्ट जारी की है.

डंपिंग यार्ड, गाजीपुर, दिल्ली, कचरादिल्ली के कचरे की हाइट कुतुब मीनार से टक्कर लेने वाली है

29 एकड़ के एरिया में फैला ये कचरे का ढेर पहाड़ बन जाएगा शायद इसके बारे में किसी को पता ही नहीं होगा, लेकिन ये पहाड़ असल में कौशांभी, घारोली, घारोली एक्सटेंशन, कोंडली, कल्यानपुरी और गाजीपुर में रहने वाले लोगों पर क्या असर डाल रहा है इसके बारे में शायद ही किसी को पता हो.

पिछले साल गाजीपुर का कचरा अचानक गिर गया था. दो लोगों की मौत हुई थी इसमें कई गाड़ियां नहर में जा गिरी थीं और कुछ कचरे के नीचे दब गई थीं. कचरा रोड पर आ गिरा था. तब भी इस डंपिंग ग्राउंड को लेकर बहुत बहस की गई थी और तब इसकी ऊंचाई 60 मीटर थी. अब 65 हो गई है.

ईस्ट दिल्ली मुनसिपल कॉर्पोरेशन (EDMC) को न जाने कब से इस डंपिंग ग्राउंड को लेकर चेतावनी मिल रही है, लेकिन मजाल है कि कोई कार्यवाही हो. EDMC के अधिकारियों ने तो ये कहकर पल्ला झाड़ लिया कि उनके पास हर रोज़ 2000 टन कचरा फेंकने के लिए कोई स्थान नहीं है. अब ईस्ट दिल्ली से हर रोज़ इतना कचरा आता है और रोज़ इस पहाड़ की ऊंचाई बढ़ती ही चली जा रही है.

जो कचरा रिहायशी और कमर्शियल इलाकों से इकट्ठा किया जाता है वो असल में 100 ट्रकों और 30 लोडरों में भरकर तीन शिफ्ट में हर दिन यहां लाया जाता है. ये पहाड़ वहां रिहायशी इलाकों में पानी, हवा और भूमि के लिए बेहद खतरनाक है. इस कचरे की साइट पर आग लगना आम है और इसलिए ये और टॉक्सिक हो जाता है.

कैसे इतना बड़ा हो गया दिल्ली का गाजीपुर पहाड़..

गाजीपुर कचरा ग्राउंड दिल्ली का सबसे पुराना डंपिंग ग्राउंड है. कुल 4 हैं और हर दिन दिल्ली में 10 हज़ार टन कचरा पैदा होता है. 2013 में ये 8500 मेट्रिक टन था और 2018 तक 10 हजार हो गया. खैर, गाजीपुर पर फिर आते हैं. ये डंपिंग ग्राउंड 1984 में बनाया गया था और 2002 में ये खतरे के निशान को पार कर गया था. फिर 2004 में तो अपनी पूरी कैपेसिटी को ही पार कर गया. सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स के अनुसार ये डंपिंग ग्राउंड 2016 में ही बंद हो जाना चाहिए था क्योंकि ऐसी किसी भी साइट की उम्र 20-25 साल होती है, लेकिन 2018 में अब ये नए कीर्तिमान गढ़ रहा है.

इसको लेकर क्या किया जा रहा है?

EDMC के चीफ इंजीनियर प्रदीप खंडेलवाल के अनुसार संस्था ने NHAI के साथ एक मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग साइन किया था. ये था कि 137 किलोमीटर लंबे दिल्ली-मेरट एक्सप्रेस वे के 74 किलोमीटर के हिस्से में गाजीपुर डंपिंग ग्राउंड से लिया गया कचरा इस्तेमाल किया जाएगा. हालांकि, NHAI ने सिर्फ 2 किलोमीटर के दायरे में इसका मटेरियल इस्तेमाल किया और इसलिए EDMC की सारी उम्मीदें धराशाई हो गईं.

इसके अलावा, EDMC के अधिकारी रात दिन मेहनत करके नई साइट्स खोज रहे हैं जहां कचरा डाला जा सके. सोनिया विहार में 80 एकड़ और घोंडा गुजरान में 50 एकड़. इस इलाके के लिए वेस्ट टू एनर्जी पयलट प्रोजेक्ट भी लगाया गया है जो 12 मेगावॉट कैपेसिटी का है. हालांकि, ये एक महीने में से 15 दिन ही चल पाता है. और एक मीथेन कैप्चरिंग गैस टू इलेक्ट्रिसिटी प्लांट भी 2015 में सेट किया गया था, लेकिन ये कभी चल ही नहीं पाया क्योंकि मीथेन का लेवल काफी नीचे था.

खैर, मतलब कचरे को यहां वहां करने की कोशिश. पर किसी ने भी मुंबई से सीख लेने की नहीं सोची. मुंबई में जहां 2013 में 9400 टन कचरा आता था वहीं अब सिर्फ 7700 टन ही आता है. मुंबई ने सीधे तौर पर सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स (SWM) लागू किए थे और रेसिडेंट वेलफेयर असोसिएशन और कमर्शियल बिल्डिंग्स को सिर्फ सूखा कचरा और गीला कचरा अलग-अलग करने को कह दिया था.

जरा सोचिए एक छोटे से नियम ने कितना कचरा कम कर दिया. पर आखिर इसे माने कौन? कौन सोचे कि कचरा कम कैसे किया जाए. न तो भारत की जनता ईको फ्रेंड्ली है और न ही भारत के सरकारी ऑफिस. यहां स्वच्छ भारत अभियान तो लागू कर दिया गया है, लेकिन असल में भारत कितना स्वच्छ हो रहा है ये तो यकीनन दिल्ली के इस पहाड़ को देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है.

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श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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