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Updated: 06 जनवरी, 2018 12:20 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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शिक्षा की कमी, बेरोजगारी, बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं, कट्टरपंथ जैसी चीजों के बीच भारत का आम मुसलमान कई तरह के संघर्षों का सामना कर रहा है. कहा जा सकता है कि मौजूदा वक़्त में भारतीय मुस्लिम समाज के साथ कंधे से कंधा मिलकर चलना और आगे बढ़ना तो चाह रहा है मगर उसकी राह में दारुल उलूम या इसके जैसे अन्य संगठन कांटे बिछाकर उसे चलने से और तरक्की करने से रोक रहे हैं जिससे पूरे समुदाय के बीच पशोपेश की स्थिति  बनती जा रही है. कहा जा सकता है कि ऐसे संगठनों की वजह से ही भारतीय मुस्लिम विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर और बदहाली में रहकर जीवन यापन कर  रहे आम भारतीय मुस्लिम के पिछड़ने के पीछे की सबसे बड़ी वजह ऐसे संगठन हैं.

ध्यान रहे कि, आम मुस्लिमों के कन्धों पर अपने फतवों का बोझ रख कर उसे दफ्नानें वाले ये संगठन शायद ये बात भूल चुके हैं कि, ये एक ऐसे वक़्त में इस्लाम का सहारा लेकर आम मुस्लिम के जीवन को प्रभावित करने का प्रयास कर रहे हैं जब हर चीज या हर कही बात के पीछे आम आदमी तर्क खोजता और कुतर्कों पर सही तर्क देता है.

दारुल उलूम, देवबंद, फतवा, बैंकिंग दारुल उलूम देवबंद का ये फतवा किसी भी आम आदमी को हैरत में डाल सकता है

हो सकता है कि उपरोक्त बातों को पढ़कर आप प्रश्न करें कि आखिर हम ऐसा क्यों कह रहे हैं तो इस बात को समझने के लिए आपको ये खबर समझनी होगी. खबर है कि देश के प्रमुख इस्लामी शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद ने अब एक नया फतवा जारी किया है. फतवे के अनुसार मुसलमान बैंक की नौकरी से चलने वाले घरों में शादी का रिश्ता न जोड़ें.

जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. हुआ कुछ यूं था कि दारुल उलूम के फतवा विभाग "दारुल इफ्ता" से एक व्यक्ति ने अपनी शादी के सम्बन्ध में प्रश्न किया था. "दारुल इफ्ता" से व्यक्ति ने  पूछा था कि उसकी शादी के लिए कुछ ऐसे घरों से रिश्ते आये हैं, जहां लड़की के पिता बैंक में नौकरी करते हैं. चूंकि बैंकिंग तंत्र पूरी तरह से ब्याज पर आधारित है, जो कि इस्लाम में हराम है. इस स्थिति में क्या ऐसे घर में शादी करना इस्लामी नजरिए से दुरुस्त होगा?

इस प्रश्न का जवाब हैरत में डालने वाला था. दारुल इफ्ता ने इस सवाल के जवाब में कहा था कि, व्यक्ति को ऐसे परिवार में शादी से परहेज करना चाहिए. इस बात के पीछे दारुल इफ्ता का जो तर्क है वो और ज्यादा आश्चर्य में डालने वाला है. दारुल इफ्ता के अनुसार,"हराम दौलत से पले-बढ़े लोग आमतौर पर सहज प्रवृत्ति और नैतिक रूप से अच्छे नहीं होते. लिहाजा, ऐसे घरों में रिश्ते से परहेज करना चाहिए. बेहतर है कि व्यक्ति किसी पवित्र परिवार में रिश्ता खोजे.

गौरतलब है इस पूरे मामले पर दारुल उलूम का तर्क है कि बैंक ब्याज के आधार पर रुपयों का लेन देन करता है जो इस्लाम के लिहाज से गलत है. साथ ही इस्लाम के नजरिये से दारुल उलूम ऐसे किसी भी निवेश को गलत मानता है जिसमें व्यक्ति को ब्याज मिलता है.

दारुल उलूम, देवबंद, फतवा, बैंकिंग आज वो वक़्त आ गया है जब भारत के मुसलमान को खुद इन संस्थाओं का बहिष्कार करना चाहिए

बहरहाल इस फतवे के बाद इन कट्टरपंथियों के जाल में फंसा एक आम मुसलमान इस बात से जरूर विचलित होगा कि अब उसके लिए अब अच्छा घर कौन सा है और बुरा घर कौन सा है. साथ ही उसकी परेशानी इस बात पर भी बनी रहेगी कि अब उसे ऐसे कौन से कारोबार करने चाहिए जो इस्लाम की नजर में सही हैं. हो सकता है कल वो सब्जी का ठेला लगाए और फतवा आ जाए कि चूंकि उसके द्वारा बेचीं जा रही भिन्डी और लौकी सूखी है अतः इस्लाम सूखी भिन्डी और लौकी के बेचने और उसे खाने को हराम करार देता है.

अंत में हम ये कहते हुए अपनी बात खत्म करेंगे कि अब वो समय आ गया है जब इस देश के आम मुसलमान को इन संस्थाओं के फतवों को सिरे से खारिज कर देना चाहिए और अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि वो आम लोगों की तरह समाज की मुख्य धारा से जुड़ सके और उनके साथ कंधे से कंधा मिलकर चल सकें. साथ ही आम मुसलामानों को इन मदरसों और संस्थाओं से ये भी प्रश्न करना चाहिए कि जब इस्लाम में बैंकिंग हराम है तो बैंकों या एटीएम के बाहर टोपी लगाए, कुर्त्ता पायजामा पहने, दाढ़ी रखे मुसलमान क्यों खड़े हैं. क्या अल्लाह सारे कष्ट आम मुसलमान को देगा उन कष्टों में इन मुल्लों और इनकी संस्थओं की कोई भागीदारी नहीं होगी. 

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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