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Updated: 10 जून, 2017 05:01 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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भारत एक लोकतांत्रिक देश है जिसमें विधायिका, कार्यपालिका, न्‍यायपालिका को बेहद महत्वपूर्ण मानते हुए उसे लोकतंत्र के तीन प्रमुख स्तंभों के रूप में देखा जाता है साथ ही इसमें चौथे स्‍तंभ के रूप में मीडिया को भी  शामिल किया गया है. यदि हम इन चारों की कार्यप्रणाली पर नजर डालें तो मिलता है कि विधायिका कानून बनाती है. कार्यपालिका उन्‍हें लागू करती है और न्‍यायपालिका, विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों की व्‍याख्‍या करती है तथा उन कानूनों का उल्‍लंघन करने वालों को सजा देती है. मीडिया यहां समसामयिक मुद्दों के विषयों पर लोगों को जागरुक करने तथा उनकी राय बनाने में बेहद जरूरी निभाता है.

कहा जा सकता है कि भारत जैसे लोकतंत्र की गाड़ी तभी सुचारू रूप से चल सकती है जब उसके चारों पहियों में सामंजस्य हो. यदि पहियों में कहीं भी गड़बड़ हुई तो इस गाड़ी का चलना लगभग नामुमकिन है. मौजूदा वक़्त में लोकतंत्र की गाड़ी पंचर है. इसके चारों पहियों में कील लग चुकी है. आज कुछ ऐसा हुआ है जिसके चलते न्‍यायपालिका के रवैये पर सवालिया निशान लग चुके हैं. जब इस देश की अदालतें बलात्कार, दहेज़ हत्या, मर्डर जैसे मुद्दे छोड़ गाय और बछड़े पर आ जाएं तो यही माना जायगा कि तंत्र की गाड़ी में कील है. जी हां बिल्कुल सही सुना आपने, खबर है कि हैदराबाद हाई कोर्ट के एक जज ने शुक्रवार को गाय को लेकर बड़ा बयान दिया है.

हैदराबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस बी शिवाशंकर राव ने कहा कि गाय माँ और भगवान का 'विकल्प' है. साथ ही उन्होंने गाय को पवित्र राष्ट्रीय धरोहर बताते हुए यह भी कहा कि गाय को राष्ट्रीय पशु का दर्जा मिल जाना चाहिए. ज्ञात हो कि अभी कुछ कुछ दिन पूर्व ही राजस्थान के जज महेश चंद्र शर्मा ने भी गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की बात कही थी.

गाय, जज, हाई कोर्ट, हैदराबाद, राष्ट्रीय पशु  हैदराबाद हाई कोर्ट ने कहा गाय को बनाया जाये राष्ट्रीय पशु

साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के हवाले से एक अन्य विवादित बयान देते हुए कहा है कि बकरीद के मौके पर मुस्लिम धर्म के लोगों को स्वस्थ्य गाय को काटने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है. इसके अलावा जस्टिस राव ने उन पशु-डॉक्टरों को आंध्रप्रदेश गोहत्या एक्ट 1977 के अंतर्गत लाने की मांग भी की है जो छल से सेहतमंद गाय को अनफिट करार देकर सर्टिफिकेट देते हुए कह देते हैं कि अब ये दूध नहीं दे सकतीं और इन्हें काटा जा सकता है.

हम जज की बात से पूर्णतः सहमत हैं और ये मानते हैं कि जिस देश में गाय आस्था और विश्वास का प्रमुख केंद्र है उसे वहां काटना एक बेहद घिनौना और निंदनीय कृत्य है. मगर प्रश्न ये उठता है कि क्या वाकई हमारे देश की न्यायपालिका और उस न्यायपालिका में बैठे जज इतने फुर्सत में हैं कि वो अब मुख्य मुद्दों को छोड़ उन चीज़ों पर प्रतिक्रिया देते हुए बयान देंगे जिसका कोई औचित्य नहीं है.

गौरतलब है कि बलात्कार, दहेज़ हत्या, मर्डर से लेकर आतंकवाद और देशद्रोह तक देश की अदालतों में लाखों मुक़दमे लंबित पड़े हैं तो बेहतर है पहले इस देश के जज उन लंबित मुकदमों की सुनवाई कर लोगों को उनका हक़ दें.  मुख्य मुद्दों और मुकदमों को दरकिनार करते हुए जिस तरह हमारी अदालतों और उनमें सेवा दे रहे जजों द्वारा गाय, बछड़े और मोर के हक में अजीब ओ गरीब बातें की जा रही हैं वो ये साफ दर्शाता है कि न्यायपालिका में बैठे जज और कुछ नहीं बस अपना बुढ़ापा सुधार रहे हैं.

पूर्व में जस्टिस महेश चंद्र शर्मा और हम हैदराबाद के जज जस्टिस बी शिवाशंकर राव इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि आज नौकरशाहों के सामने आइडेंटिटी क्राइसिस एक बहुत बड़ी समस्या है और इन लोगों के ऐसे बयान इस बात की तरफ साफ तौर से इशारा कर रहे हैं कि ये अपने बयानों से सरकार की नजरों में आना चाहते हैं ताकि रिटायर होने के बाद भी इनको वो सभी सुख सुविधाएँ मिल सकें जिन्हें ये अभी भोग रहे हैं.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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