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Updated: 23 अप्रिल, 2015 05:14 AM
नरेंद्र सैनी
नरेंद्र सैनी
  @narender.saini
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कार्तिक करण (18 साल) पटना के रहने वाले हैं और इन दिनों एमबीबीएस में दाखिले के लिए दिल्ली में एंट्रेंस एग्जाम की तैयारियों में जुटे हैं. पढ़ाई और एग्जाम पास करने के प्रेशर ने उन्हें तोड़ रखा था. पिछले साल जब एंट्रेंस एग्जाम के नतीजे आए तो कार्तिक पूरी तरह बिखर गए. सूची में उनका नाम नहीं था. निराशा गहरे तक असर दिखाने लगी तो उनके भाई ने उन्हें अपनी किताबों की सेल्फ से कुछ पढऩे की सलाह दी. कार्तिक पसंद की किताब ढूंढऩे लगे तो उन्हें शिव खेड़ा की जीत आपकी दिखी. कार्तिक ने किताब खोली तो उसे खत्म किए बिना नहीं रख सके. वे कहते हैं, "मुझे इसकी यह बात जमी कि तुम जहां खड़े हो वहीं सोना है. हर बात के साथ एक कहानी. इसने मुझे उक्वमीदों से लबरेज कर दिया." इन दिनों वे रॉन्डा बर्न की रहस्य पढ़ रहे हैं और अपने अगले चांस को लेकर उक्वमीदों से लबरेज हैं.

यह सेल्फ हेल्प किताबों की दुनिया है और भारतीय किताब बाजार के एक बड़े हिस्से पर किताबों का राज है. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की आपका भविष्य आपके हाथ में जैसी किताब छापने वाले राजपाल ऐंड संस के मार्केटिंग डायरेक्टर प्रणव जौहरी कहते हैं, "यूं समझिए कि कोई साहित्यिक किताब साल में अगर 1,000 बिकती हैं तो यंग एडल्ट फिन्न्शन 2,500-3,000 लेकिन सेल्फ हेल्प की एक किताब की 5,000 से ज्यादा प्रतियां बिक जाती हैं."

यह कामयाबी के नए मुकाम तय करने की नई पीढ़ी की चाहत है, जिसने पिछले डेढ़ दशक में सेल्फ हेल्प किताबों को हॉट केक बनाया है. प्रकाशक भी मानते हैं कि इसके बाजार में इजाफा हो रहा है. वजह है बढ़ती युवा आबादी. प्रणव भी सहमति जताते हैं, "इन किताबों के खरीदारों में युवाओं की संक्चया सर्वाधिक है. ऐसे पाठक या तो करियर की शुरुआत कर रहे होते हैं या फिर कॉलेज में कदम रखते हैं. सेल्फ हेल्प किताबों के खरीदारों में 70 फीसदी 35 वर्ष से कम उम्र वाले होते हैं."

इन किताबों के बाजार ने डेढ़ दशक पहले ही भारत में रक्रतार पकड़ी है. विदेश में यह दुनिया काफी पुरानी है. यही वजह है कि वहां की जांची-परखी किताबों को भारत में आज भी पसंद किया जा रहा है. तभी तो नेपोलियन हिल (सोचिए और अमीर बनिये) की लगभग सौ साल पहले लिखी गई किताबें आज भी बेस्टसेलर की लिस्ट में हैं. भारत में अपेक्षाकृत इस नई फील्ड को आगे ले जाने में शिव खेड़ा, प्रमोद बतरा (सफलता के अनमोल रत्न), जयंती जैन (उठो, जागो, जीतो), जोगिंदर सिंह (सफलता से आगे) और विजय अग्रवाल जैसे नाम प्रमुखता से लिए जा सकते हैं. मजा देखिए कि कलाम की किताब आपका भविष्य आपके हाथ में का शीर्षक सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिये चुना गया था. कलाम ने पांच शीर्षक तय किए थे. उसके बाद उन्हें अॉनलाइन डाला. 41,000 लोगों ने मौजूदा शीर्षक को चुना.

बढ़ते बाजार का ही असर है कि साहित्य छापने वाले प्रकाशक भी इस विधा की किताबों का रुख कर रहे हैं. राजकमल प्रकाशन को लीजिए. प्रकाश बियाणी की शून्य से शिखर तक, जी.एस. मिश्र की सकारात्मक सोच और किरण सूद की युवामन की उड़ान इस विधा की उसकी लोकप्रिय किताबें हैं. इसके डायरेन्न्टर अशोक महेश्वरी कहते हैं, "आज के युवा के पास सागर से मोती निकालने का धैर्य और समय नहीं है. उसे तो तुरंत हथेली पर मोती चाहिए. वह कम समय में अधिक से अधिक जानकारी चाहता है."

भारतीय मूल के कनाडाई लेखक रॉबिन शर्मा को छापने वाले मुंबई के जयको पब्लिशिंग हाउस के आंकड़े भी सेल्फ हेल्फ सेक्शन के बढ़ते बाजार की ओर इशारा कर देते हैं. शर्मा की किताब कौन रोएगा आपकी मृत्यु पर और संन्यासी जिसने अपनी संपत्ति बेच दी की 2014-15 में लगभग 15,000 प्रतियां बिक चुकी हैं. उनकी नई किताब जियो शान से की 2,000 प्रतियां अभी तक बिक चुकी हैं. हालांकि उनकी ज्यादातर किताबें पॉपुलर अंग्रेजी किताबों के अनुवाद ही हैं. इसी वजह से पद्ब्रिलशिंग हाउस ने सेल्फ हेल्प सेक्शन को कई हिस्सों में भी बांट दिया है, जिसमें जीवन में सफलता पाने से लेकर करियर, लाइफ और करियर में संतुलन और रिश्तों को सुधारने संबंधी विषय शामिल हैं.

अनूदित किताबें तो हैं ही, भारतीय वर्ग में कलाम, ओशो और विवेकानंद सरीखे दिग्गजों के प्रेरणात्मक उद्बोधनों की भी बाजार में मांग है. अनुपम खेर, किरण बेदी, जोगिंदर सिंह और खिलाडिय़ों के दिए सबक वाली किताबें भी काफी बिकती हैं. अमेजॉन इंडिया के कैटेगरी मैनेजमेंट के डायरेन्न्टर समीर कुमार कहते हैं, "सेल्फ हेल्प विधा में हर महीने 2-3 किताबें ही छपती हैं. अनूदित किताबों की वजह से बाजार गर्म रहता है. बायर्न, शर्मा, डेल कारनेगी, जोसफ मर्फी और डेविड जे. स्वाट्र्ज खूब बिकते हैं."

आज जब जीवन एकाकी होता जा रहा है. एकल परिवारों की संख्या बढ़ रही है, आधुनिक जीवन की भाग-दौड़ में तनाव चरम पर है, ऐसे में मार्गदर्शक साथी की तलाश अहम है. दिल्ली में बैंक में काम करने वाले 56 वर्षीय उमेश सोनी बताते हैं, "मुझे हमेशा अनिष्ट की आशंका सताती थी. आगे न्न्या होगा? कैसे होगा? किसी से बात नहीं कर सकता था, लेकिन कार्नेगी की किताब चिंता छोड़ो सुख से जियो ने मेरी ङ्क्षजदगी बदलकर रख दी." ऐसे दौर में जब परिवार सिर्फ कामकाजी माता-पिता तक सीमित हो गए हैं, हमारे आस-पास की दुनिया सिमटती जा रही है, ऐसे में इस तरह की किताबों का महत्व समझ आ जाता है. सोनी कहते हैं, "आज के दौर में ऐसे लोग कम मिलेंगे जो आपकी समस्या को गंभीरता से लें."

मनोविश्लेषकों का मानना है कि ऐसे लोगों में इन किताबों का महत्व और बढ़ जाता है, जिनके पास पर्याप्त संसाधन नहीं. तभी तो इन किताबों की बिक्री उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा है.

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लेखक

नरेंद्र सैनी नरेंद्र सैनी @narender.saini

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सहायक संपादक हैं.

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