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Updated: 08 सितम्बर, 2020 07:41 PM
ओम प्रकाश धीरज
ओम प्रकाश धीरज
  @om.dheeraj.7
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रेप... एक ऐसा शब्द, जिसके बारे में सोचकर हर किसी का मन नफरत और गुस्से से भर जाता है और जुबां पर बस यही शब्द आते हैं कि दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा देनी चाहिए. भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में रेप यानी बलात्कार के दोषियों को कैसी और किस तरह से सजा मिलती है, उसके बारे में सबको पता है और इसपर चर्चा करने का कोई मतलब नहीं है. आए दिन हमारी आंखों और कानों को बलात्कार की भयावहता और निर्दयता से जुड़ीं खबरें देखने-सुनने को मिलती है और इसपर हमारी प्रतिक्रिया कुछ सोशल मीडिया पोस्ट और आत्मिक गुस्से से ज्यादा नहीं होती. तो सुनिए एक और वारदात की खबर और अपने गुस्से को ऐसी हवा दीजिए कि इसकी आंच में दोषी का अस्तित्व कांप जाए. यह घटना केरल की है, जहां कोरोना वायरस से संक्रमित 19 साल की एक लड़की के साथ एंबुलेंस ड्राइवर ने रेप जैसी घटना को अंजाम दिया. दोषी ने कोरोना पीड़ित के साथ यह ज्यादती उस समय की, जब वह पीड़िता को हॉस्पिटल छोड़ने जा रहा था. दोषी को गिरफ्तार कर उसके ऊपर बलात्कार और हत्या की कोशिश के तहत मुकदमा दर्ज कराया गया है.

केरल के पठानमथिट्टा जिले में बीते शनिवार को घटी इस घटना के बारे में सुनकर आपको गुस्सा आया? अगर गुस्सा आया तो जरा आप ही बताइए कि केरल में कोरोना पीड़ित लड़की से बलात्कार करने वाले की सजा क्या हो? किस तरह की सजा संभव और ऐसे लोगों के साथ क्या किया जाए, जरा इसपर सोचिए. मानवता को शर्मसार करने वालीं अनगिनत घटनाओं के बीच केरल में घटी इस घटना के बारे में सोचकर भी लोगों की रूह कांप जाती है कि कैसा निर्दयी होगा, जिसने एक ऐसी लड़की से साथ ज्यादती की, जो कोरोना वायरस से संक्रमित होकर जिंदगी और मौत से जूझ रही है. जिस व्यक्ति के ऊपर उसको हॉस्पिटल पहुंचाने की जिम्मेदारी थी, उसने हॉस्पिटल ले जाने की बजाय पीड़िता को जलालत भरी जिंदगी तक पहुंचा दिया, जहां से लौटने के बाद न तो वह दोबारा मर्द जाति पर विश्वास कर पाएगी और न ही इस दोषी समाज के सामने नजर उठाकर बात कर पाएगी.

रेप पीड़िता पर क्या बीतती है, कभी सोचा है?

भारत में हर दिन बलात्कार की सैकड़ों वारदातें होती हैं, जिसमें नजदीकी से लेकर अनजान लोग तक होते हैं. यह ऐसा कृत्य है, जिससे दोषी को भले कुछ समय के लिए पता नहीं कैसा लगता होगा, लेकिन पीड़ित की पूरी जिंदगी ऐसे मोड़ पर चली जाती है, जहां सिर्फ और सिर्फ जलालत और अविश्वास का बोलबाला होता है. दरअसल, हमारे समाज का ढांचा ऐसा है, जहां रेप सर्वाइवर की जिंदगी में दोबारा खुशियां भरने की वजह उसे हिकारत भरी नजरों से देखा जाता है, जिसकी वजह से वह दोबारा मुख्यधारा की जिंदगी में वापस नहीं आ पाती है. हालांकि, समय के साथ व्यवस्था में भी बदलाव हो रहा है और पीड़िता समाज की नजरों में नजरें डाल अपने लिए न्याय की मांग करती है और समाज की सोच पर तगड़ा प्रहार करती है. लेकिन ऐसी महिलाओं या लड़कियों की संख्या नगण्य है. ज्यादातर रेप सर्वाइवर की जिंदगी में इतना अंधेरा छा जाता है कि उसे उम्मीद और विश्वास की किरण भी रोशन नहीं कर पाती. तो जरा सोचिए कि केरल की 19 साल की रेप पीड़िता के ऊपर क्या बीत रही होगी? कोरोना के साथ ही उसके मन पर जो गहरा धाव आया है, उसका इलाज कौन करेगा?

सोशल मीडिया पर आग लगना जरूरी, नहीं तो...

गौरतलब है कि भारत में बलात्कार समेत अन्य जघन्य अपराधों के लिए दंड प्रक्रिया इतनी धीमी है कि दोषियों को वर्षों तक सजा नहीं मिलती और वे सामान्य जिंदगी जीते रहते हैं. बलात्कार जैसे मामलों में त्वरित न्याय की मांग तब उठती है, जब किसी अपराधी द्वारा रेप के मामले में बच्ची या लड़की के साथ निर्दयता की सारी हदें पार कर दी जाती है. इसके बाद सोशल मीडिया पर हंगामा मचता है और फिर फास्ट ट्रैक कोर्ट या एनकाउंटर जैसी इक्का दुक्का घटनाएं घटती हैं. फिर दोषियों को ऐसी सजा मिलती है, जिसकी समाज लंबे समय से मांग करती आ रही है. पिछले साल हैदराबाद एनकाउंटर की घटना तो भूले नहीं ही होंगे. कानून के दायरे में अब बलात्कार के दोषियों को त्वरित और गंभीर सजा मिले तो शायद उनमें डर फैले और वो किसी महिला की अस्मिता के साथ खिलवाड़ करने से पहले सोचे कि वह जो करने जा रहे हैं, इसकी ऐसी सजा मिल सकती है कि किसी की रूह कांप जाए. केरल के पठानमथिट्टा जिले में कोरोना पीड़ित लड़की के साथ बलात्कार करने वाले एंबुलेंस ड्राइवर को कुछ इसी तरह की जल्द से जल्द सजा मिले, ताकि वह अन्य लोगों के लिए नजीर बने और लोग किसी महिला की अस्मत पर हाथ डालने या सोचने की जुर्रत भी न करें.

भारत में रेप के मामलों और दंड प्रक्रिया पर एक नजर

आपको बता दूं कि भारत में हर साल बलात्कार की हजारों घटनाएं घटती हैं, जिनमें सबसे ज्यादा 18 से 30 साल तक की आयु वर्ग की लड़कियों या महिलाओं के साथ ज्यादती होती है. साल 2017 के आंकड़े पर नजर डालें तो उस साल भारत में थाने में बलात्कार के 32,500 मामले दर्ज कराए गए. यह तो आधिकारिक डेटा है. अनाधिकारिक मामलों की बात करें तो यह एक लाख से ज्यादा पहुंच जाएगा. दरअसल, भारत में बलात्कार के ज्यादातर मामले तो दर्ज ही नहीं कराए जाते. इज्जत और संस्कार खो जाने के डर से लोग पीड़िता को दबा-फुसलाकर चुप करा देते हैं और जिंदगी भर के लिए पीड़िता को ऐसा जख्म दे जाते हैं कि वह न तो समाज को माफ कर पाती है और न ही लोगों से नजर मिला पाती है. ज्यादातर मामलों में तो पीड़िता के घर वाले ही मामले को दबा देते हैं, ऐसे में न्याय की उम्मीद भी कोई किससे करे.

बलात्कार के मामलों में कानूनी कार्रवाई की बात करें तो कोर्ट में हर साल बलात्कार के मुश्किल से 20,000 मामलों का फैसला हो पाता है, जिनमें से कुछ दोषियों को सबूत के अभाव में बरी कर दिया जाता है, कुछ को जेल की सजा हो जाती है और इक्के-दुक्के दोषियों को फांसी की सजा होती है. भारत में फांसी देने की प्रक्रिया इतनी लंबी है कि आपको पता तो है ही. साल 2012 में निर्भया कांड के दोषियों को 8 साल बाद फांसी दी गई. इससे आपको बखूबी अंदाजा हो सकता है भारत में बलात्कार जैसे जघन्य मामलों में भी दंड प्रक्रिया इतनी धीमी है कि लोगों के न्याय की आस एक समय के बाद दम दोड़ देती है.

लेखक

ओम प्रकाश धीरज ओम प्रकाश धीरज @om.dheeraj.7

लेखक पत्रकार हैं, जिन्हें सिनेमा, टेक्नॉलजी और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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