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Updated: 11 मई, 2020 09:10 PM
प्रीति 'अज्ञात'
प्रीति 'अज्ञात'
  @preetiagyaatj
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इस Covid-19 वायरस (Coronavirus) ने देश की तस्वीर बदल दी है. राज्यों, शहरों, नगरों, मोहल्लों की अपनी मूल परिभाषायें और पहचान बदल चुकी हैं. कोई किसी से उसका ठिकाना नहीं पूछता, बस यही जानना चाहता है कि आप किस ज़ोन (Zone) में हो. रेड (Red), ग्रीन (Green) या ऑरेंज (Orange)? उत्तर के आधार पर बेचैनी के पैमाने तय होते हैं. मुस्कान की लंबाई मापी जाती है. इन तीन रंगों ने देश को एक ट्रैफिक सिग्नल में बदल दिया है जहां रोशनी के बदलते रंगों के साथ जीवन की गति तय होती है. अच्छा है कि रंगों की यही मिश्रित पहचान रहे. इस संक्रमण काल ने हर रंग से प्रेम करना सिखा दिया है और जीवन मूल्यों को भी नए एवं व्यापक आयाम दिए हैं. हमारे तिरंगे ने रंगों को जिस ख़ूबसूरती से पिरो रखा है, असल में वही तो भारत (India) का सच है और वे लोग जो ट्रैफिक सिग्नल पर धैर्यपूर्वक रुके अपनी बारी की प्रतीक्षा में हैं वही सच्ची भारतीयता के समर्थक हैं. वे इस बात में पूरा यक़ीन रखते हैं कि उनका नम्बर भी आएगा. इस संकट में मुझ जैसी गृहिणियों को तिरंगे के और अर्थ भी समझ आने लगे हैं.

केसरिया मुझे सारे सिट्रस फ्रूट्स की याद दिलाता है जिसका सेवन इन दिनों आवश्यक हैं और हरा ख़ेतों में लगी उन हरी सब्ज़ियों की ओर खींच ले जाता है जो हमारी थाली की रौनक़ बनाये रखती हैं. ये जो सफ़ेद है न, वो दूध है, दही है, पनीर है, खीर है. बीच के चक्र की ये चौबीस तीलियां दिन के चौबीस घंटे हैं जहां हमें अपनी रसोई कई बार दिखाई देती है.

Coronavirus, Lockdown, Zones, Self Isolation, Traffic Signals कोरोना को लेकर जैसा माहौल है अब लोग हाल चाल से पहले ज़ोन पूछते हैं

कुल मिलाकर ये ध्वज ही हमारे जीवन का संचालनकर्ता है. तभी तो इसे देख हम सारे दुःख भूल इसको शीश नवाते हैं और इसकी झलक भर भी रूह में उतर भावविह्वल कर जाती है. अपने-अपने झंडे चुन लेने और दूसरे रंगों से घृणा करने वाले लोग मुझे कभी पसंद नहीं आए क्योंकि ये सिवाय अपने और किसी के सगे कभी नहीं हो सकते. इसलिए हमें इन तीन बत्तियों को और अधिक मान देना तथा जीवन में आत्मसात करना भी सीखना होगा कि जब लाल हो तो रुकना है.

पीली पर थोड़ी सावधानी और हरी होते ही चल पड़ना है. इनका ध्यान न रखने पर जान गंवाने का ख़तरा उतना ही है जितना कोरोना काल के ज़ोन संबंधी नियमों को तोड़ने पर हो सकता है. जीवन का मोल इस महामारी के गुज़र जाने के बाद भी कम नहीं होना चाहिए.

रंगों की बात जब चल ही निकली है तो एक बात और बताती चलूं कि ये जो लाल रंग है न. वो प्रेम का है, गुलाब की जादुई महक़ होती है इसमें. इसकी जो ये मधुर इठलाहट है न वो हरी पत्तियों की गोदी में बैठकर ही खिलती है, उन्हीं का दुलार इसमें ख़ुशबू भर देता है. हमें माटी की वो सौंधी सुगंध भी याद रखनी है जो पौधों को पानी देते समय मन प्रफुल्लित कर देती है. जीवन गुलाब का पौधा ही तो है, कांटे संग फूल भी.

रंगों के मिश्रित अर्थ ही हमारी जान हैं और फिलहाल अपनी अपनी zone में रहकर इनके बदलने की प्रतीक्षा करना हमारी नियति बन चुकी है. रेड ज़ोन को थोड़ा धैर्य से काम लेना है, ऑरेंज को पूरी सावधानी से चलना है और ग्रीन को भी कोई नियम भूलना नहीं है. न जाने क्यों, अचानक से ट्रैफिक सिग्नल के प्रति एक श्रद्धा सी जाग उठी है.

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लेखक

प्रीति 'अज्ञात' प्रीति 'अज्ञात' @preetiagyaatj

लेखिका समसामयिक विषयों पर टिप्‍पणी करती हैं. उनकी दो किताबें 'मध्यांतर' और 'दोपहर की धूप में' प्रकाशित हो चुकी हैं.

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