New

होम -> समाज

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 08 जुलाई, 2021 04:28 PM
आईचौक
आईचौक
  @iChowk
  • Total Shares

दुनियाभर में तबाही मचाने वाली कोविड-19 (Covid 19) महामारी करीब डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी काबू में नहीं आ सकी है. बीते कुछ समय में कोरोना का प्रभाव कुछ कम हुआ है. लेकिन, कोरोना वायरस के कई वेरिएंट इस महामारी को खत्म करने के बीच में आड़े आ रहे हैं. भारत में भी कोरोना की दूसरी लहर कमजोर पड़ने लगी है. रोजाना सामने आने वाले कोरोना मामलों में लगातार कमी दर्ज की जा रही है. कोरोना महामारी से जंग जीतने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. लेकिन, कोरोना वायरस को हरा चुके इन लोगों में कई तरह की बीमारियां (Post-Covid Complications) सामने आ रही हैं. अभी तक लोगों में फंगल संक्रमण (ब्लैक, व्हाइट), ब्लड क्लॉटिंग, हृदय रोग, तंत्रिका तंत्र, न्यू डायबिटीज और फेफड़ों से संबंधित कई रोगों के मामले दिख रहे थे. लेकिन, कोरोना वायरस से उबर चुके लोगों पर अब एक और बीमारी का खतरा मंडराने लगा है. इस बीमारी का नाम बोन डेथ (Bone Death) है. आइए जानते हैं इस बीमारी के बारे में सारी जानकारियां.

क्या है Bone Death?

कोरोना वायरस से उबर चुके लोगों में सामने आ रही इस गंभीर बीमारी को आम बोल-चाल की भाषा में बोन डेथ नाम से जाना जाता है. विशेषज्ञों के अनुसार, बोन डेथ यानी एवैस्कुलर नेक्रोसिस (Avascular Necrosis) कहलाने वाली इस बीमारी में हड्डियों तक रक्त का संचार बाधित हो जाता है. खून के हड्डियों तक न पहुंचने से की वजह से शरीर के उस हिस्से की कोशिकाएं धीरे-धीरे मर जाती है. जिसकी वजह से हड्डियां बेकार होकर गलने लगती हैं. इस बीमारी के कई मामले सामने आ चुके हैं और इसकी गंभीरता को देखते हुए अंदाजा लगाया जा रहा है कि बोन डेथ के मामलों में उछाल संभव है.

इस गंभीर बीमारी को आम बोल-चाल की भाषा में बोन डेथ नाम से जाना जाता है.इस गंभीर बीमारी को आम बोल-चाल की भाषा में बोन डेथ नाम से जाना जाता है.

क्या हैं बीमारी के लक्षण?

विशेषज्ञों के अनुसार, बोन डेथ (AVN) बीमारी शरीर के जोड़ वाले हिस्सों को मुख्य रूप से निशाना बनाती है. जिसमें कोहनी, घुटना, कूल्हा जैसे हड्डियों के जुड़ने वाली जगह ये बीमारी हो सकती है. लेकिन, इन जगहों के अलावा भी ये शरीर के किसी हिस्से को अपना निशाना बना सकती है. कोरोना संक्रमण की वजह से खून को शरीर के अन्य हिस्सों में पहुंचाने वाली धमनियों में सूजन आ जाती है. जिसके चलते रक्त का प्रवाह बाधित हो जाता है. इस बीमारी के शुरुआती दौर में लक्षणों का पता नहीं चल पाता है. जो इसे गंभीर बीमारी की श्रेणी में रखने की सबसे बड़ी वजह है. जो लोग फिजिकल तौर पर ज्यादा एक्टिव होते हैं, उनको बीमारी के शरीर में बढ़ जाने पर चलने-फिरने के दौरान जोड़ों में सामान्य सा दर्द होता है. आगे चलकर गंभीर होने पर काम करने के दौरान लोगों को जोड़ों में भयानक दर्द का सामना करना पड़ता है.

किन्हें हो सकती हैं बीमारी?

डॉक्टरों के अनुसार, अन्य बीमारियों की तरह ही कोरोना संक्रमण के दौरान स्टेरॉयड का ज्यादा इस्तेमाल करने की वजह से लोग एवैस्कुलर नेक्रोसिस का शिकार बन रहे हैं. कोरोना संक्रमित लोगों को स्टेरॉयड के सही इस्तेमाल को लेकर डॉक्टरों ने पहले भी कई चेतावनियां जारी की हैं. वहीं, विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि एवस्कुलर नेक्रोसिस का शिकार होने वाले लोगों में आर्थराइटिस (Arthritis) की बीमारी से जूझ रहे मरीज सर्वाधिक हैं.

क्या है इलाज?

विशेषज्ञों का मानना है कि बोन डेथ से पीड़ित मरीजों में से करीब 60 फीसदी को कूल्हे यानी हिप जाइंट में एवस्कुलर नेक्रोसिस की शिकायत सामने आ रही है. हालांकि, इसका शरीर के अन्य जोड़ों को भी निशाना बनाने का खतरा रहता है. साथ ही ये शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है. अगर कोरोना संक्रमण से उबर चुका मरीज आर्थराइटिस से पीड़ित नहीं है और उसके बाद भी उसे शरीर के जोड़ों में दर्द महसूस हो रहा है, तो तत्काल किसी आर्थोपेडिक डॉक्टर से सलाह लें. इस बीमारी का पता मरीज की एमआरआई करने पर ही चलता है. अगर शुरुआती दौर में ही लक्षणों पर नजर रखी जाए, तो दवाओं के जरिये इलाज संभव है. लेकिन, बीमारी के गंभीर हो जाने पर बोन रिप्लेसमेंट सर्जरी तक करानी पड़ सकती है.

लेखक

आईचौक आईचौक @ichowk

इंडिया टुडे ग्रुप का ऑनलाइन ओपिनियन प्लेटफॉर्म.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय