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Updated: 07 मार्च, 2017 02:23 PM
शुभम गुप्ता
शुभम गुप्ता
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1 अप्रैल 2016 ये ही वह तारीख है जब बिहार में शराब बंदी कर दी गई थी. नीतीश कुमार की बतौर एक मुख्यमंत्री के रूप में बहुत तारीफ भी हुई थी. हर किसी ने उनके इस फैसले को सराहा. मगर शराब बंदी के बाद क्या सब कुछ बदल गया? क्या बिहार में बहार लौट आई? क्या इतने सालों से जो लोग नशे के कारण मर रहे थे, वो अब नहीं मर रहे है? बात इस वक्त शराब की हो रही है...

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बिहार में जब से शराब बंदी हुई है कई जगहों पर अवैध शराब भी पकड़ी गई. खैर, नीतीश कुमार ने पूरी लगन से इस फैसले पर अमल किया. उन्होंने प्रशासन को भी सख्त रखा. मगर जिसे नशा करना ही हो वो कोई ना कोई रास्ता ढूंढ ही लेता है. अब बिहार में गांजे की बहार है. यहां गांवों से लेकर शहरों तक लोग अब गांजे के नशे में चूर होते जा रहे हैं.

अगर नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के आंकड़े पर नज़र डालें तो साल 2016 में 496 किलो गांजा जब्त हुआ था जबकि साल 2017 सिर्फ़ फ़रवरी माह में ही 6884 किलो गांजा जब्त हो चुका है. बिहार में गांजा तीन जगहों से आता है. ओडीशा के नवरंगपुर, मलकानगिरी, जयपुर, फुलगामी, ब्रह्मपुर, रामगढ़ से जो गांजा बिहार आता है जिसे आंध्रा कहा जाता है. त्रिपुरा से आने वाले गांजे को मणिपुरी कहा जाता है. रायपुर, छत्तीसगढ़ से भी गांजा बिहार आता है.

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यानी शराब बंदी तो हो गई मगर नशा बंदी नहीं हो पाई. मगर क्या इसमें सरकार दोषी है? नहीं नीतीश कुमार ने शराब बंदी कर ये दर्शाया है कि उनकी मंशा अच्छी है. वरना दिल्ली में केजरीवाल के आने के बाद तो शराब दुकानों के खुलने में बढ़ोत्री हुई है.

अब ये तो लोगों को भी सोचना होगा कि क्या उनका फर्ज नहीं बनता कि वो बिहार में सच में बहार लेकर आएं. यही नहीं बिहार में कई एकड़ अफिम की खेती भी नष्ट हुई है. अगर अफिम की खेती के आंकड़े पर एक नज़र डालें तो वर्ष 2013 में 37 एकड़ अफिम की खेती को नष्ट किया गया. वहीं 2014 में 24 एकड़, 2015 में 13.49 एकड़, 2016 में 374 एकड़ और 2017 में 65 एकड़ अफिम की खेती को नष्ट किया गया.

शराब एक ऐसा नशा है जब इंसान इसे पीने के बाद तुरंत ही होश खो बैठता है मगर गांजा और अफिम कुछ सालों के बाद इंसान की दिमागी स्थिति को कमज़ोर करने लगते हैं. मगर जिस तरह से सरकार ने शराब को लेकर सख्ती दिखाई है कुछ उसी तरह गांजे और अफिम को लेकर भी दिखानी होगी.

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लेखक

शुभम गुप्ता शुभम गुप्ता @shubham.gupta.5667

लेखक आज तक में पत्रकार हैं.

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