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Updated: 01 जनवरी, 2019 02:20 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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21वीं सदी तक कई ऐसी गुफाएं और प्राचीन शहरों की खोज की जा चुकी है जिन्हें देखकर आश्चर्य होता है कि उस जमाने में लोग कैसे रहते होंगे. जमीन के नीचे गुफाओं में रहने वाले प्राचीन लोगों की बातें तो होती थीं, लेकिन अगर मैं आपसे कहूं कि आज भी ऐसा एक शहर मौजूद है जहां जमीन के नीचे लोग रहते हैं. ये गुफाओं वाला शहर हर तरह की सुख सुविधा से लेस है.

iChowk.in अपनी ट्रैवल सीरीज 'अजीब शहर: अनोखा जीवन' में ऐसे ही शहरों के बारे में बताएगा जहां लोग एकदम चरम परिस्थितियों में रहते हैं. इसी कड़ी में आज बता रहे हैं एक ऐसे शहर के बारे में जहां दूधिया पत्थर (Opal) की खदाने हैं और वो शहर जमीन के नीचे बसा हुआ है. ये शहर है ऑस्ट्रेलियाई रेगिस्तान का शहर कूबर पेडी (Coober pedy).

ये दक्षिणी ऑस्ट्रेलियाई रेगिस्तान में स्थित एक छोटा सा शहर हैये दक्षिणी ऑस्ट्रेलियाई रेगिस्तान में स्थित एक छोटा सा शहर है

कूबर पेडी को पहली बार देखने में लगता है कि जैसे किसी फिल्म का सेट हो. सैंडस्टोन (बलुआ पत्थर) से बनी हुई जमीन, दूर तक पेड़ और पौधों की हरियाली न दिखे. जमीन भूरी और लाल रंग की दिखे और जमीन के नीचे लोगों की पार्टी चल रही हो. कूबर पेडी में लोगों का बसना भी कुछ ऐसे ही शुरू हुआ. 1 फरवरी 1915 को यहां पहला ओपल मिला था और इस शहर का इतिहास उसी के बाद अस्तित्व में आया. ऐसा नहीं है कि इस शहर में जमीन के ऊपर कोई बिल्डिंग ही नहीं है, लेकिन फिर भी अधिकतर लोग जमीन के नीचे ही रहना पसंद करते हैं.

 घरों को जमीन खोदकर बनाया जाता है. किसी बड़े से पत्थर के नीचे घर बने होंगे. घरों को जमीन खोदकर बनाया जाता है. किसी बड़े से पत्थर के नीचे घर बने होंगे.

इसका सबसे बड़ा कारण है यहां का मौसम. कूबर पेडी में हमेशा बहुत गर्मी रहती है. सालाना एवरेज तापमान यहां का 27.5 डिग्री सेल्सियस है. जहां दुनिया के अधिकतर हिस्सों में दिसंबर से फरवरी के बीच सर्दियां पड़ती हैं वहीं कूबर पेडी में ये निष्ठुर गर्मियों का मौसम रहता है. तापमान 47 डिग्री पार कर जाता है. ऐसे समय में लोगों के अंडरग्राउंड घर काम आते हैं. हालांकि, शेड में भी तापमान 35 डिग्री तक रहता है, लेकिन फिर भी ये काफी गर्म है और यहां के लोगों के लिए रात ज्यादा बेहतर समय होता है.

जमीन के नीचे बने घरों में सभी सुविधाएं हैं.जमीन के नीचे बने घरों में सभी सुविधाएं हैं.

वैसे तो इस इलाके में बारिश काफी कम होती है. औसत बारिश सालाना 130 मिली मीटर के आस-पास होती है इसलिए जमीन के नीचे बने घरों को कोई दिक्कत नहीं होती. पर 1929, 1973 और 2014 में यहां 24 घंटे में ही इतनी बारिश हुई थी कि माहौल खराब हो गया था और बाढ़ जैसे हालात बन गए थे. 2014 में तो 24 घंटे में ही सालाना बारिश का कोटा पूरा हो गया था. यहां 115 मिलीमीटर बारिश हो गई थी और पूरा शहर बाढ़ की चपेट में था. जमीन के अंदर बने घरों में ज्यादा दिक्कत थी.

जमीन के नीचे लोगों की जिंदगी-

कूबर पेडी में लोगों की जिंदगी बेहद सरल है. खेल-कूद और पार्टियों जैसे काम रात में ज्यादा किए जाते हैं. यहां की अर्थव्यवस्था ओपल की खदानों और सैलानियों पर निर्भर करती है. यहां की जनसंख्या बेहद कम है. डिस्ट्रिक्ट काउंसिल के मुताबिक करीब 3500. 60% लोग यूरोपीय हैं, पर इतने कम लोगों में भी करीब 45 देशों के लोग मिल जाएंगे. अब समझ लीजिए कि यहां कितनी विविधता है.

गोल्फ खेलने के लिए घास भी अलग से लानी पड़ती हैगोल्फ खेलने के लिए घास भी अलग से लानी पड़ती है

लोकल गोल्फ कोर्स यहां बहुत लोकप्रिय है. इसे अधिकतर रात में ही खेला जाता है. पर कभी-कभी ठंडे दिनों में भी लोग इसका मजा लेते हैं. क्योंकि यहां पेड़-पौधों का जीवन बहुत कम है इसलिए यहां गोल्फ कोर्स में सिर्फ बंजर जमीन ही है. रात में गोल्फ चमकदार बॉल से खेला जाता है.

ये शहर कमजोर दिल वालों के लिए नहीं है. गर्मियों में घरों के अंदर भी तापमान 40 पहुंच सकता है. अगर आपको लगता है कि यहां कोई पेड़ मिल जाएगा जिसके नीचे आप खड़े हो जाएंगे तो ऐसा भी नहीं है. क्योंकि यहां कोई ऐसा पेड़ दूर-दूरतक नहीं दिखेगा. जो हैं भी वो छांव देने लायक नहीं.

कूबर पेडी में घास को बचाने के लिए ऐसे निशान दिखना आम बात है.कूबर पेडी में घास को बचाने के लिए ऐसे निशान दिखना आम बात है. साथ ही ऐसा इसलिए भी है क्योंकि जहां भी घास है ऐसा हो सकता है कि उसके आस-पास खुदाई हुई हो और गड्ढे हों.

यहां तो घास भी रॉयल्टी की तरह है, कूबर पेडी में गोल्फ खेलने के लिए घास के चौकोर गत्ते दिए जाते हैं. कुछ समय पहले यहां के बाशिंदों ने पेड़ लगाने की मुहिम चलाई थी और उसका नतीजा है कि यहां अब कुछ पेड़ दिखने लगे हैं नहीं तो उसके पहले शहर का सबसे बड़ा पेड़ था मेटल का बना हुआ स्टैचू.

इसके बनने के 100 साल बाद भी ये शहर ओपल माइनिंग के लिए दुनिया की सबसे अच्छी जगह मानी जाती है. दुनिया में दूधिया पत्थर की 70 प्रतिशत खेप यहीं से पहुंचाई जाती है. यहां का लगभग हर इंसान इसी खदान से कमाई करता है. यहां दूधिया पत्थरों से बने मोती भी पाए जाते हैं. पर अकेले यही नहीं है कूबर पेडी की जमीन के नीचे.

 कई घर एक साथ झुंड में हो सकते हैं, इन घरों के दरवाजे कुछ ऐसे दिखते हैं. कई घर एक साथ झुंड में हो सकते हैं, इन घरों के दरवाजे कुछ ऐसे दिखते हैं.

यहां सिर्फ अंडरग्राउंड घर नहीं बल्कि अंडरग्राउंड होटल भी हैं जो सैलानियों के आकर्षण का केंद्र बने रहते हैं. जमीन के नीचे सिर्फ एक या दो कमरों का घर नहीं बल्कि पूरा शहर ही है. अलग-अलग बिल्डिंग और घरों के अंदर सभी सुविधाएं मौजूद हैं. आलम तो ये है कि लोगों ने अलमारियां भी अपने हिसाब से डिजाइन कर ली हैं जी हां, जमीन में गड्ढा करके अगर कोई बुकशेल्फ बना ले तो चौंकिएगा मत क्योंकि ये कूबर पेडी के लोगों का जीवन है. यहां तक कि कूबर पेडी में ऐसा घर भी है जहां जमीन के नीचे स्विमिंग पूल बना हुआ है.

पर कैसे बनाए गए घर?

सबसे जरूरी सवाल ये था कि अंडरग्राउंड घर बनाते समय कैसे तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा, कैसे उन्हें सुरक्षित रखा जाएगा कि कहीं ऊपर चलने वाले लोग, गाड़ियां या पास ही होने वाली माइनिंग से घर की छत गिर न जाए. इन्हें बनाने के लिए भी न सिर्फ इंजीनियरिंग बल्कि पुराने जमाने के शहरों से भी प्रेरणा ली गई है. घरों को बनाने के लिए सैंड स्टोन में धमाका कर गड्ढा बनाया जाता है, फिर हर कमरा गोलाकार डिजाइन किया जाता है. ये कुछ-कुछ वैसा ही है जैसे 1963 में तुर्की में मिला प्राचीन शहर Derinkuyu (Cappadocia, Turkey) ये शहर पूरा का पूरा जमीन के नीचे बसाया गया था, इसमें चर्च से लेकर दुकानों तक सभी कुछ था और इस शहर को टूरिस्ट स्पॉट की तरह अभी भी सही हालत में रखा गया है.

पहले सुदूर इलाका होने के कारण कूबर पेडी में बिजली की समस्या रहती थी, लेकिन अब उस शहर के लिए अपनी विंड मिल और सोलर प्रोजेक्ट है. इसलिए उसकी समस्या भी नहीं बची. अंडरग्राउंड होने के कारण यहां के लोगों को एयरकंडीशन या किसी भी तरह के क्लाइमेट कंट्रोल की जरूरत नहीं रहती है.

कूबर पेडी कुछ अलग है, आज के जमाने में भी पुराने तरीकों का इस्तेमाल कर घरों को बनाया गया है और उन्हें सहेज कर रखा गया है.

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श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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