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Updated: 17 जनवरी, 2021 05:45 PM
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स्पेशल मैरिज एक्ट (Special Marriage Act) को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है. इस नए आदेश के मुताबिक, अब शादी करने वाले जोड़े को 30 दिन पहले नोटिस देने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी. अंतर-धार्मिक विवाह (Inter-Faith Marriages) में आने वाली रुकावटों को दूर करने में इस फैसले को एक बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है. इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत शादी से 30 दिन पहले नोटिस देने को स्वतंत्रता और निजता के अधिकार का उल्लंघन बताया है. 'प्यार पर लगे इस पहरे' को न्यायमूर्ति विवेक चौधरी की एकल पीठ ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए वैकल्पिक करार दे दिया.

क्या था मामला

इलाहाबाद हाईकोर्ट में अभिषेक कुमार पांडे नाम के एक शख्स ने याचिका दायर कर कहा- साफिया सुल्ताना नाम की लड़की ने उससे हिंदू धर्म अपनाकर शादी की और इसके बाद उसने अपना नाम सिमरन रख लिया. इससे लड़की के पिता खुश नहीं थे और उन्होंने जबरन लड़की को कैद कर रखा था. वहीं, कोर्ट के आदेश पर सिमरन के पिता ने अदालत में हाजिर होकर शादी को मंजूरी दे दी. इसी सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 दिन के नोटिस वाले नियम पर संज्ञान लिया. बाद में फैसला सुनाते हुए इसे वैकल्पिक करार दे दिया.

सुनवाई में हाईकोर्ट की टिप्पणियां

जस्टिस विवेक चौधरी ने अपने आदेश में कहा कि इस नियम से शादी करने वाले जोड़े के निजता के अधिकार का हनन होता है. साथ ही युगल की अपने जीवनसाथी के चुनाव करने की स्वतंत्रता भी प्रभावित होती है. सुनवाई के दौरान लड़की ने कहा- शादी के बाद 30 दिनों के लिए जारी नोटिस में कोई भी व्यक्ति आपत्ति दर्ज करा सकता है. इसके चलते उसने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी नहीं की. हाईकोर्ट ने इस पर संज्ञान लेते हुए कहा कि अगर शादी करने वाला जोड़ा पहचान, उम्र और सहमति पर प्रमाण प्रस्तुत कर सकते हैं तो किसी भी आपत्ति को ना मांगा जाए. शादी करने वाला जोड़ा नहीं चाहता कि उनकी कोई जानकारी सार्वजनिक हो, तो ऐसा बिल्कुल ना किया जाए. ऐसा करना युवा पीढ़ी के साथ अन्याय करने बराबर है.

हाईकोर्ट ने आदेश में कहा कि शादी करने वाले जोड़े विवाह अधिकारी को लिखित में अनुरोध कर सकते हैं कि वह विवाह संबंधी नोटिस का प्रकाशन चाहते हैं या नहीं. अब यह वैकल्पिक होगा. अगर जोड़ा नोटिस का प्रकाशन नहीं कराना चाहता है, तो विवाह अधिकारी को 30 दिन के अंदर विवाह संपन्न कराना होगा. हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में यह भी स्पष्ट किया है कि विवाह अधिकारी के पास यह अधिकार होंगे कि वह पक्षकारों की पहचान, उम्र व उनकी वैध सहमति के बारे में जांच करें. किसी भी प्रकार का संदेह होने पर विवाह अधिकारी उचित विवरण और प्रमाण मांग सकता है.

यूपी सरकार का धर्मांतरण रोधी कानून

यहां दिलचस्प मामला ये है कि बीते साल 24 नवंबर को उत्तर प्रदेश सरकार 'लव जिहाद' और धर्मांतरण के रोकने के लिए 'उत्‍तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपविर्तन प्रतिषेध अध्‍यादेश, 2020' लेकर आई थी. इस कानून में शादी के लिए छल से, प्रलोभन देकर या बलपूर्वक धर्मांतरण कराए जाने पर अधिकतम 10 वर्ष कारावास और 50 हजार तक जुर्माने का प्रावधान किया गया है. साथ ही धर्म परिवर्तन करने से 60 दिन पूर्व जिला मजिस्ट्रेट को सूचना देनी होगी. वहीं, अब इस फैसले के आ जाने के बाद ऐसे जोड़े शादी करने के बाद भी धर्म परिवर्तन करने को लेकर सूचना दे सकते हैं.

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