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Updated: 23 सितम्बर, 2015 07:45 PM
अभिषेक पाण्डेय
अभिषेक पाण्डेय
  @Abhishek.Journo
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भारत में हर वर्ष लाखों की संख्या में इंजीनियरिंग ग्रैजुएट्स निकलते हैं और इस हिसाब से इसे दुनिया में सबसे ज्यादा तकनीकी शिक्षा से लैस प्रतिभाओँ वाला देश होना चाहिए लेकिन मामला इसके बिल्कुल उलट है. रिपोर्ट्स के मुताबिक देश के 80 फीसदी से ज्यादा इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स नौकरी के लायक ही नहीं है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ टेक्निकल एजुकेशन (तकनीकी शिक्षा की निगरानी करने वाला), AICTE ने अगले कुछ वर्षों में देश में इंजीनियरिंग की सीटों की संख्या 40 फीसदी तक घटाने पर विचार कर रही है.

हालांकि AICTE की यह कोशिश अच्छी तो है लेकिन सवाल तो ये उठता है कि पिछले कई सालों से लाखों की संख्या में अयोग्य इंजीनियरों की फौज खड़ी करने के लिए कौन जिम्मेदार हैं? AICTE को यह फैसला लेने में इतना वक्त क्यों लगा और क्या इन 'नकली' इंजीनियर्स को तैयार करने के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा मिलेगी? आइए जानें भारत में अयोग्य इंजीनियर पैदा करने की फैक्ट्रीज को खड़ा करने का सच.

करीब 6 लाख सीटें घटाएगी AICTE

AICTE की योजना अगले कुछ वर्षों में अंडरग्रेजुएट इंजीनियरिंग सीटों की संख्या करीब 40 फीसदी तक घटाने की है. AICTE का कहना है कि वह देश की मौजूदा लगभग 17 लाख इंजीनियरिंग सीटों को घटाकर इसे 10 से 11 लाख सीटों तक लाएगा. इसका मकसद इंजीनियरिंग शिक्षा के स्तर में गिरावट और उसकी खाली सीटों की समस्या से निपटना है.

‘नकली’ इंजीनियर तैयार करने की हजारों फैक्ट्रियां

भारत में पिछले एक दशक के दौरान इंजीनियरिंग कॉलेजों की संख्या इस कदर बढ़ी है कि वर्तमान में देश में करीब 3470 इंजीनियरिंग कॉलेज हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के 70 फीसदी कॉलेज बेहद ही घटिया क्वालिटी की शिक्षा उपलब्ध करा रहे हैं. इन कॉलेजों से हर साल लाखों की संख्या में निकलने वाले ग्रैजुएट्स के पास नाम की इंजीनियरिंग की डिग्री तो होती है लेकिन उनके पास नौकरी पाने के लिए जरूरी काबिलियत बिल्कुल भी नहीं होती है. ऐसे छात्र इंजीनियरिंग जैसा अच्छा कोर्स करके भी बेरोजगारों की संख्या में इजाफा ही करते दिखाई देते हैं. वजह उनकी बेहद ही खराब गुणवत्ता वाले कॉलेजों से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना होती है.

पैसे के लालच में देश का कबाड़ा

हजारों की संख्या में खुलने वाले प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेजों का एकमात्र उद्देश्य अपनी जेबें भरना होता है. ये कॉलेज नाम के इंजीनियरिंग कॉलेज तो होते हैं लेकिन इनमें दी जाने वाली शिक्षा का स्तर दोयम दर्जे का होता है. इनके पास न तो जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर होता है और न ही बढ़िया टीचर्स. ऐसे कॉलेजों को खोलने में ताकतवर नेता और मंत्री से लेकर, माफिया और ठेकेदारों का पैसा लगा होता है. कई बार तो ये लोग इन कॉलेजों के जरिए अपनी ब्लैक मनी को वाइट करने की कोशिश करते हैं. साथ ही ऐसे कॉलेज कमाई का बड़ा जरिया होते हैं. इनमें निवेश एक बार कॉलेज को बनाने में ही करना होता है लेकिन कमाई हर साल बढ़ती चली जाती है. इन प्राइवेट कॉलेजों में ऐडमिशन के नाम पर एक-एक छात्र से लाखों की फीस वसूली जाती है. लेकिन शिक्षा के नाम पर काबिलियत के बजाय उन्हें चार साल बाद सिर्फ डिग्री पकड़ा दी जाती है, जो किसी काम की नहीं होती है.

सरकार और AICTE भी उतने ही जिम्मेदार

रिपोर्ट्स के मुताबिक इंजीनियरिंग के अंडरग्रेजुएट लेवल कोर्स में ऐडमिशन लेने वालों की संख्या पिछले एक दशक के दौरान बहुत ही तेजी से बढ़ी है. वर्ष 2006-07 में इंजीनियरिंग सीटों की संख्या 6,59,717 थी जोकि 2010 में 12 लाख और 2015 में 16 लाख 70 हजार से ज्यादा हो गई है. इन सीटों की संख्या में हुई बेतहाशा बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदार हजारों की संख्या में कुकुरमुत्ते की तरह उग आए प्राइवेट कॉलेज हैं. कई इंजीनियरिंग कॉलेज तो एक से दो कमरे वाले होते हैं और कई बार तो सिर्फ बाहर से कॉलेज का एक बोर्ड तो लगा दिया जाता है लेकिन अंदर कॉलेज नाम की कोई चीज होती ही नहीं है. अब ऐसे कॉलेज डिग्री बांटकर मालामाल तो बन सकते हैं लेकिन योग्य इंजीनियर कभी नहीं बना सकते. हैरानी तो इस बात की है कि इंजीनियरिंग कॉलेज के लिए जरूरी मानदंडों को पूरा न कर पाने के बावजूद कैसे इन कॉलेजों को AICTE से मान्यता मिल जाती है. इसका मतलब तो यह है कि ऐसे बेकार इंजीनियरों की फौज खड़ी करने के लिए जितने जिम्मेदार ये प्राइवेट कॉलेज हैं, उतनी ही जिम्मेदार सरकारें और एआईसीटीई भी है.

इंजीनियरिंग सीटों की संख्या कम करना एक अच्छा कदम है लेकिन साथ ही सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि देश में मौजूद बाकी इंजीनियरिंग कॉलेज अगर आईआईटी जैसी शिक्षा उपलब्ध नहीं करा सकते तो कम से कम शिक्षा का स्तर इतना तो उठाएं कि इन कॉलेजों से निकलने वाले इंजीनियरों को बेकार न करार दिया जाए.

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लेखक

अभिषेक पाण्डेय अभिषेक पाण्डेय @abhishek.journo

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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