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Updated: 27 अगस्त, 2018 06:25 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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जब कभी चर्चा मांसाहार की होती है तो बहुत से लोग मुंह-नाक सिकोड़ने लगते हैं. मांस न खाने वाले ज्‍यादातर लोग इसकी वजह जीव हत्या को बताते हैं. वे जीव हत्या का पाप अपने सिर नहीं लेना चाहते. इसी कड़ी में मेनका गांधी ने जिस अहिंसा मीट की बात की है, वो तो किसी जीव की हत्या किए बिना ही तैयार हो जाएगा. इसे लैब में जो तैयार किया जाना है. अब सवाल ये उठता है कि अगर लैब में बने इस मांस को बनाने में किसी जीव को नहीं मारा गया तो क्या वह मांस खाने के लिए हर कोई तैयार हो जाएगा? क्या शाकाहारी भी?

मेनका गांधी, मीट, विज्ञान, बीफअहिंसा मीट की तकनीक को कई चुनौतियों का सामना करना होगा.

लैब में बना है, तो क्या शाकाहारी भी खाएंगे?

जिस तरह से लैब में तैयार इस मीट को अहिंसा मीट का नाम दिया गया है, उससे साफ होता है कि इसे बिना किसी तरह की हिंसा के हासिल किया जा सकता है. यानी इस मीट के लिए किसी जीव को मारना नहीं होगा. उसकी कुछ कोशिकाओं को लैब में विकसित करके मांस तैयार कर लिया जाएगा. अगर जीव की हत्या ही नहीं होगी तो क्या मांस हर कोई खा सकेगा? क्या शाकाहारी लोग भी मांस को स्वीकार करेंगे? आखिर दूध भी तो गाय-भैंस-बकरी के शरीर से निकाल कर पिया जाता है, जिसके लिए कोई हिंसा नहीं की जाती, तो फिर अहिंसा मीट में क्या बुराई है?

हिंदुओं को दिक्कत नहीं होगी?

गाय का मांस खाना हिंदू धर्म में गलत माना जाता है. माना जाता है कि इनसे हमें दूध मिलता है, इसलिए गाय की हत्या नहीं करनी चाहिए. गाय का गोबर और मूत्र काफी फायदे मंद होता है. यही वजह है कि गाय को हिंदू धर्म में माता की जगह दी गई है. सवाल ये है कि क्या बीफ से नफरत करने वाला हिंदू, लैब में बनने वाले बीफ को खा लेगा? तार्किक तौर पर देखा जाए तो इसमें बुराई क्या है, क्योंकि बिना गो-वध के बीफ को लैब में तैयार किया गया है. यानी गौमाता एक दम सुरक्षित हैं. उन पर कोई आंच तक नहीं आई है. यदि लैब में तैयार मांस से भी भावनाएं आहत होती हैं, तो अहिंसा मीट बनाने की तकनीक को भारत तक पहुंचने की राह में सबसे बड़ा रोड़ा तो यही होगा.

मुस्लिमों के साथ भी होगी ऐसी दिक्कत?

जो सवाल हिंदू धर्म के लोगों के संदर्भ में था, वही सवाल मुस्लिम धर्म के लोगों के संदर्भ में भी है. जिस तरह हिंदुओं के लिए बीफ खाना पाप है, उसी तरह मुसलमानों के लिए पोर्क हराम है. अगर लैब में पॉर्क तैयार किया जाए तो क्या मुस्लिम धर्म के लोग उसे खाएंगे? पॉर्क न खाने के पीछे तर्क होता है कि सुअर हमेशा गंदगी में रहते हैं, जिसके चलते उनका मांस नहीं खाना चाहिए. लेकिन अगर पॉर्क को लैब में बनाया जाएगा तो गंदगी का तो कोई सवाल ही पैदा नहीं होता. ऐसे में किसी भी मुस्लिम भाई को लैब का पॉर्क खाने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए, क्योंकि वह पाक साफ मांस होगा. लेकिन बीफ की तरह ही पॉर्क से जुड़ी भावनाएं इस लैब निर्मित मीट की तकनीक को चुनौती दे सकती हैं.

क्या है ये अहिंसा मीट?

अहिंसा मीट को तैयार करने में किसी जीव की हत्या नहीं होती है. इसे सिर्फ स्टेम सेल की मदद से लैब में ही विकसित किया जा सकता है. इसके लिए जिस जीव का मीट बनाना है, उसका स्टेम सेल लेकर एक पेट्री डिश (एक छोड़ा डिब्बे जैसा) में रखा जाता है. इसमें अमीनो एसिड और कार्बोहाइड्रेड डाला जाता है और आर्टिफीशियल अनुकूल वातारण मुहैया कराया जाता है. एक स्टेम सेल एक लाख करोड़ स्टेम सेल बनाने की क्षमता रखता है. इसी तरह लैब में एक स्टेम सेल से मीट का पूरा टुकड़ा तैयार कर लिया जाता है. नीचे दिया गया वीडियो आपको इसकी प्रक्रिया को अच्छे से समझा देगा.

विज्ञान ने लैब में ही मीट बनाने में सफलता तो पा ली है, लेकिन इसे खाने के लिए लोगों को तैयार करने में कितनी सफलता मिलती है, ये देखना दिलचस्प होगा. एक सर्वे के मुताबिक करीब 66 फीसदी मांसाहारी लोग लैब में बनाए मीट को स्वीकार करने की बात कह चुके हैं, लेकिन इसके सही परिणाम तो तभी पता चलेंगे, जब ये मीट भारतीय बाजार में पहुंचेगा. विदेशी बाजारों में तो बीफ या पोर्क खाना आम बात है, लेकिन जब भारत जैसे देश में मांस को लेकर तरह-तरह के विचार हैं. बीफ और पोर्क को लेकर तो कुछ ज्‍यादा ही. इस मीट से पहले इसीलिए एक बड़ी बहस पक रही है.

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#मेनका गांधी, #मीट, #विज्ञान, Maneka Gandhi, Lab Grown Meat, Ahimsa Meat

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