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Updated: 09 दिसम्बर, 2018 04:50 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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हिंदुस्तान में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो ये सोचते हैं कि होमोसेक्शुएलिटी एक बीमारी है या दिमागी तौर पर होने वाली समस्या जिसके कारण पुरुष और महिलाएं समलैंगिक बन जाते हैं. पर क्या ये वाकई ऐसी समस्या है जिसका इलाज जरूरी है? या फिर सवाल को फिर से दोहराते हैं कि क्या ये वाकई कोई समस्या है?

समलैंगिकता पर जहां इतना विवाद चल रहा है, अब सुप्रीम कोर्ट ने भी समलैंगिंक संबंधों को वैध करार दे दिया है पर भारत में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जिनका ये सोचना है कि समलैंगिकता सिर्फ और सिर्फ दिमागी या शारीरिक बीमारी है और जिसे किसी भी तरह की तकनीक से ठीक किया जा सकता है. अब मानसिक बीमारी समलैंगिकों में तो नहीं है, पर उन लोगों की सोच का क्या करें जो ये मानते हैं कि समलैंगिकता किसी भी तरह से ठीक की जा सकती है.

इसका एक उदाहरण राजधानी दिल्ली में सामने आया है जहां एक डॉक्टर होमोसेक्शुएलिटी ठीक करने का दावा भी कर रहा था और बाकायदा उसके इलाज के लिए मोटी फीस भी ले रहा था. इस वाहियाद हरकत के लिए वो इलेक्ट्रिक शॉक और हार्मोन्स का प्रयोग कर रहा था. डॉक्टर का दावा था कि इससे गे और लेस्बियन लोग ठीक हो जाते हैं. (लाख सर्च करने के बाद भी ये नहीं पता चला कि आखिर ये डॉक्टर कहां से पढ़ा था.)

जस्ट डायल से ली गई तस्वीर.जस्ट डायल से ली गई तस्वीर.

अंधविश्वासी डॉक्टर या खुद एक रोगी?

डॉक्टर पी के गुप्ता को दिल्ली हाई कोर्ट ने पेश होने का आदेश दिया है. असल में डॉक्टर गुप्ता को दो साल पहले ही दिल्ली मेडिकल काउंसिल की तरफ से प्रैक्टिस न करने का आदेश दे दिया था. उन्हें प्रैक्टिस करने की मनाही थी, लेकिन फिर भी वो उसी काम को करते रहे. DMC के आदेश के बाद भी प्रैक्टिस करने के कारण अब डॉक्टर गुप्ता कानूनी तौर पर मुजरिम हैं.

मजिस्ट्रेट अभिलाश मल्होत्रा का कहना है कि जो ट्रीटमेंट डॉक्टर गुप्ता द्वारा दिए जाते थे ये कंवर्जन थैरेपी के तहत होते थे. मैं आपको बता दूं कि ये थैरेपी साइंस द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है और न ही इसे किसी भी देश का संविधान वैधानिक मानता है. ये वो थैरेपी होती है जिससे एक इंसान की सेक्शुअल ओरिएंटेशन बदलने की कोशिश की जाती है. ये खास तौर पर पौराणिक मान्यताओं से जुड़ी थ्योरी है. यहां तक कि कई लोग इसे आत्माओं और आध्यात्म से जोड़कर भी देखते हैं और इसका इलाज करते हैं.

इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट के तहत इस डॉक्टर को 1 साल तक की जेल हो सकती है. डॉक्टर गुप्ता का लाइसेंस कैंसिल होने के बाद भी वो अपनी प्रैक्टिस कर रहे थे और साथ ही साथ सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद भी उन्हें इससे कोई दिक्कत नहीं थी.

सबसे पहले नाज़ फाउंडेशन (भारत) की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अंजली गोपालन ने सबसे पहले इस बारे में मेडिकल काउंसिल को जानकारी दी थी, ये 2015 की बात है जब इस डॉक्टर के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई गई थी.

उसके बाद से ही गुप्ता के खिलाफ कार्यवाही हो रही है. डॉक्टर गुप्ता एक सिटिंग के 4500 रुपए लेते थे और 15 मिनट की काउंसलिंग देते थे. उसके बाद वो फैसला लेते थे कि मरीज (सिर्फ उनके हिसाब से) को कैसी थैरेपी देनी है. हद तो तब थी जब DMC ने डॉक्टर को नोटिस भेजा और डॉक्टर ने ये कहकर उसका जवाब नहीं दिया कि वो काउंसिल के साथ रजिस्टर नहीं हैं और उन्हें कोई मतलब नहीं कि वो जवाब दें नोटिस का. यानी चोरी ऊपर से सीना जोरी.

ये तो थे पढ़े लिखे डॉक्टर की बात, लेकिन राजधानी में ही ऐसे कई तथाकथित 'क्लीनिक' हैं जो इसी तरह का दावा करते हैं कि वो सेक्स संबंधित समस्याओं को सुलझा देंगे.

नोएडा में ऐसे ही एक फर्जी क्लीनिक की तस्वीरनोएडा में ऐसे ही एक फर्जी क्लीनिक की तस्वीर

यहां भी सरसों का तेल, कुछ जड़ीबूटियां, कुछ मंत्रों से समलैंगिकता को ठीक करने का दावा करते हैं.

अब सोचने वाली बात ये है कि क्या वाकई एक डॉक्टर और एक फर्जी क्लीनिक एक जैसी सोच रख सकते हैं? डॉक्टर जिस तरह की काउंसलिंग करते थे उससे उनके पास आने वाले मरीजों में होमोसेक्शुएलिटी को लेकर चिंता और साथ ही साथ डिप्रेशन जैसी समस्याएं भी होती थीं. पर एक डॉक्टर ऐसा कैसे कर सकता है? क्या उन्हें मेडिकल की पढ़ाई में यही पढ़ाया जाता है?

क्या कहता है WHO होमोसेक्शुएलिटी के बारे में-

दरअसल, होमोसेक्शुएलिटी को लेकर 1990 के दशक तक WHO की तरफ से निर्धारित गाइडलाइन्स में भी होमोसेक्शुएलिटी को कभी मानसिक तो कभी शारीरिक रोगों की कैटेगरी में रखा गया था. 17 मई 1990 को WHO द्वारा जारी किए गए इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिसीज (ICD-10) पेपर में इसे बीमारियों की श्रेणी से हटाया गया. उसके पहले कई रिसर्च इसे मानसिक बीमारी मानती हैं और कई इसे नहीं मानती. ICD 11 में तो खास तौर पर इस सब्जेक्ट पर बात हुई और WHO के बुलेटिन में समलैंगिकता को बीमारियों की श्रेणी से हटाए जाने की बात हुई. यहां पढ़ें ICD 11 

अब समलैंगिकता की परिभाषा में बीमारी नहीं है. अब ये परिभाषा शारीरिक इच्छाओं से जुड़ी है-

Homosexuality is romantic attraction, sexual attraction or sexual behavior between members of the same sex or gender. As a sexual orientation, homosexuality is "an enduring pattern of emotional, romantic, and/or sexual attractions" to people of the same sex. It "also refers to a person's sense of identity based on those attractions, related behaviors, and membership in a community of others who share those attractions

'समलैंगिकता का अर्थ किसी व्यक्ति का समान लिंग के लोगों के प्रति यौन और रोमांसपूर्वक रूप से आकर्षित होना है. एक यौन अभिविन्यास की तरह समलैंगिकता भी भावनात्मक, रोमांटिक, और शारीरिक आकर्षणों से जुड़ी है. बस ये समान लिंग के लोगों से जुड़ती है. इसे किसी व्यक्ति की पहचान से भी जोड़कर देखा जा सकता है.'

तो इसका मतलब समलैंगिकता की परिभाषा में भी कहीं भी ये नहीं लिखा कि वो बीमारी है. फिर भी पता नहीं क्यों डॉक्टर, नीम, हकीम आदि इसे ठीक करने पर लगे रहते हैं. सोचने वाली बात है कि क्या वाकई समलैंगिकता बीमारी है या इसका इलाज करने की सोचने वाले लोग बीमार हैं?

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श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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