New

होम -> समाज

 |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 04 सितम्बर, 2015 06:41 PM
कावेरी बामज़ई
कावेरी बामज़ई
  @KavereeBamzai
  • Total Shares

क्या कोई है जिसने शीना बोरा की डायरी के अंश पढ़े हैं, जिन्हें एक अखबार ने छापा था, बिना उस दर्द का अहसास किए हुए? 

किशोरावस्था में जी रही एक अकेली लड़की, सबकी उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करती है- चाहे गणित की ट्यूशन हो, साइंस की कोचिंग क्लास हो या फिर स्कूल में की जाने वाली मेहनत, जिस दिन से हम बच्चों को समाज के बीच डालते हैं सभी बच्चे ऐसा ही करते हैं न? अपने पिता के ध्यान के लिए रोते हैं? उनके कारोबार पर उसकी सलाह को तुरन्त खारिज किया जाता और कहा जाता कि वो खुद का ही ध्यान रखे तो बेहतर है.  

अपनी मां के लिए घृणा, और मां की दूसरी शादी पर अपने नाना नानी के साथ असहमतिः 'और अब उलकी शादी एक बूढ़े आदमी के साथ हो गई (पीटर मुखर्जी). उनका ये कदम नाना नानी के लिए भले ही बहुत अच्छा और सही होगा लेकिन मेरे लिए नहीं. मैं उनसे नफरत करती हूं. वो नरक में जाएंगी. मैं बहुत दुखी हूं, बहुत आंसू बहने हैं, लेकिन कब, कहां और किसके सामने?

हम अपने बच्चों के जीवन में इतना जहर घोलते हैं और जब वो हमारे बनाए हुए नियमों के हिसाब से नहीं चलते तब हम परेशान होते हैं. किशोरों के अंदर तो खासकर एक डिटेक्टर लगा होता है. किशोरावस्था में अपने अधिकारों के प्रति उनका एक खास नजरिया होता है- कुछ किशोर बहुत आसानी से झूठ बोलना सीख लेते हैं और बहुत अच्छी तरह खेल खेलते हैं, कुछ जो ऐसा नहीं कर पाते, वो इसे परेशान करने वाला, मुश्किल और असंभव कहते हैं. कुछ सिस्टम को अपने हिसाब से बदल लेते हैं, और कुछ बदलने को राज़ी नहीं.

कुछ माता-पिता अपने बच्चों को शारीरिक रूप से छोड़ देते हैं, जैसा कि इंद्राणी मुखर्जी और सिद्धार्थ दास ने किया, शीना की तरह अपनी जाति, अपनी अर्थव्यवस्था के बारे में, अपना जन्मदिन किसी के साथ मनाने के लिए परेशान होने के लिए छोड़ देते हैं. (इससे ज़्यादा मार्मिक क्या हो सकता है कि खुद के जन्मदिन पर वो खुद ही को जन्मदिन की बधाई दे और ये लिखे- लेकिन मैं खुश नहीं हूं, ऐसा लग रहा है जैस मेरे जीवन में कुछ नहीं है, कुछ भी नहीं. मेरा भविष्य मुझे अंधकारमय लगता है, अवसाद ने मुझे चारों ओर से घेर लिया है. बहुत बुरा जीवन है ये. मैं अपनी मां से नफरत करती हूं, वो मां नहीं डायन है)

कुछ लोग बच्चों को भावनात्मक रूप से छोड़ देते हैं. अच्छे ग्रेड मिलने पर, अच्छे कॉलेज में दाखला मिलने पर, अच्छी नौकरी मिलने पर या इतराने लायक पति या पत्नी मिलने पर हम उन्हें इनाम देते हैं, लेकिन हमारे निर्धारित किए गए मानकों के हिसाब से अगर वो सफल नहीं होते तो हम उन्हें अनदेखा करते हैं.

हम अपने बच्चों को असफल बनाते हैं और सोचते हैं कि उन्होंने हमें असफल कर दिया.

क्या हम ज़रा भी सोचते हैं कि हमारे बच्चे किस परिस्थिति से गुजरते हैं, पढ़ाई में, करियर में, रिश्तों में कितनी प्रतिस्पर्धा का सामना करते हैं? हम उन्हें कोचिंग क्लास देकर, खास वर्कशॉप देकर, स्कूल में दाखिला दिलाने की अच्छी खासी जद्दोजहद के साथ सफलता के लिए तैयार करते हैं, और तब अगर वो असफल हो जाते हैं तो हमें समझ नहीं आता कि अब उनके साथ क्या करें.

उनके गुस्से और आक्रोश का क्या?

माता-पिता के रूप में हम इंद्राणी और सिद्दार्थ नहीं हैं इसके लिए हमें खुद को बधाई नहीं देनी चाहिए. बल्कि इसके बजाय हमें आत्मविश्लेषण करना चाहिए कि कैसे हम सबमें एक इंद्राणी और एक सिद्धार्थ हैं. और डरी हुई और अकेली शीनाओं को पहचानना चाहिए जो हमारे बच्चों में बसती है.

 

#इंद्राणी मुखर्जी, #पीटर मुखर्जी, #शीना बोरा, इंद्राणी मुखर्जी, पीटर मुखर्जी, शीना बोरा

लेखक

कावेरी बामज़ई कावेरी बामज़ई @kavereebamzai

लेखिका इंडिया टुडे ग्रुप में एडिटर-एट-लार्ज हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय