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Updated: 11 सितम्बर, 2015 08:24 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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विश्व हिन्दी सम्मेलन के शुरू होते ही हिन्दी जगत में हलचल मची हुई है, हिन्दी सम्मेलन खुद ही हिन्दी साहित्यकारों, लेखकों और हिन्दी में योदगदान देने वाले लोगों की नाराज़गी का शिकार हो रहा है, वहीं हिन्दी भाषा का विरोध करने वाले भी पीछे नहीं हैं, 10 सितम्बर से उन्होंने भी ट्विटर पर #Stop Hindi Imperialism हैशटैग के ज़रिए हिन्दी के विरोध में अपनी आवाज़ बुलन्द कर रखी है. 15 अगस्त पर जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिन्दी में भाषण दिया तो इस खेमे के लोगों ने #Stop Hindi Imposition हैशटैग के ज़रिए भी इस मुद्दे पर जी भरकर अपनी भड़ास निकाली थी पर फिर से ये लोग हिन्दी के पीछे पड़ते दिखाई दे रहे हैं. इनका कहना है कि भाषा में समानता का अधिकार हो.

पूरी दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश है जहां सबसे ज्यादा भाषाएं बोली जाती हैं. विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों का देश भारत सिर्फ एक या दो भाषाओ का नहीं बल्कि 461 भाषाओं का घर है, पर इनमें से 14 विलुप्त हो गईं. पर लोगों की सुविधा के लिए भारतीय संविधान में 22 भाषाओं को आधिकारिक भाषाओं का दर्जा दिया गया. जिसमें सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा हिन्दी ही है. देश के 41% लोग हिन्दी बोलते और समझते हैं. पर याद नहीं पड़ता कि भारत में पहले कभी भाषा को लेकर कोई विवाद हुआ हो.

हिन्दी विरोधी लोगों का कहना है कि हिन्दी राष्ट्र भाषा नहीं है फिर हिन्दी का बोलबाला क्यों? पर आंकड़ों के हिसाब से तो ये सिद्ध है कि हिन्दी भाषा को भारत के सबसे ज़्यादा लोग समझते हैं. फिर भी हिन्दी छोड़कर अंग्रेजी भाषा को स्वीकार किया गया क्योंकि अंग्रेज़ी दुनिया भर में बोली जाती है. बोलबाला किसका है ये साफ ज़ाहिर है, भारत सिर्फ भारत नहीं इंडिया भी है. भारत का प्रशासन अंग्रेजी में बात करता है, यहां के न्यायालयों में इंसाफ भी अंग्रेजी में दिया जाता है, प्रशासनिक और व्यवसायिक परीक्षाओं में भी अंग्रेजी अनिवार्य है, प्रवेश परीक्षाओं में अंग्रेजी की परीक्षा देनी पड़ती है, अंग्रेजी न समझने वालों को अनपढ़ समझा जाता है, अंग्रेजी को भारत में हमने अपने इष्ट की तरह सम्मान दे रखा है, सरताज बना रखा है. पर क्या पहले कभी #Stop English Imposition या फिर #Stop English imperialism जैसा कुछ सुनने में आया?

ये सवाल हिन्दी विरोधी उन सभी लोगों के लिए है कि जो भाषा देश भर में सबसे ज़्यादा बोली जाती है, उसका सम्मान किए जाने पर इतना बवाल क्यों? भारत से प्यार करने वाले लोग ये बवाल अंग्रेजी के लिए क्यों नहीं करते? जिस भाषा 'हिन्दी' को दुनिया के अलग अलग देशों में रहने वाले लोग सीख रहे हों क्या वो भाषा संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा है? क्या हिंदी भारतीय न्यायालय, प्रशासन, शिक्षा, रोजगार पर कोई अधिकार रखती है? दुनिया भर के देश हमारे देश को किस नाम से जानते हैं- इंडिया या भारत? क्या देश विदेश में भारतीय दूतावास व उच्चायोग अपना काम हिन्दी में करते हैं? पर फिर भी हिन्दी से बैर क्यों?

भारत में सबको अपनी बात कहने की पूरी आज़ादी है और ये सोशल मीडिया वो मंच है जहां लोग खुलकर अपनी बात कहते हैं. पर जिस मंच को देश की समस्याओं पर चर्चा करने का मंच होना चाहिए था वो आज किसी को भी नीचा दिखाने और बहसबाज़ी का अड्डा बन गया है. विचार रखने की संवतंत्रता की हद ये है कि देश के प्रधानमंत्री को भी नहीं बक्शा गया. हिन्दी भाषा पर किए गए उनके ट्वीट पर लोगों ने उनका भी जमकर उपहास किया. तो क्या ये बेहतर ये नहीं होगा कि सोशल मीडिया का उपयोग किया जाए, दुरुपयोग नहीं?

बात अगर सभी भाषाओं को बराबर सम्मान देने की. तो उसके लोगों को भाषाओं को सम्मान दिलाने की ज़िम्मेदारी स्वयं लेनी होगी. प्रदेश के उच्चाधिकारियों को इस ओर कदम उठाने होंगे. देश के लोगों को भी खुशी होगी जब देश की विभिन्न भाषाओं का सम्मान भी उसी तरह होगा जैसा कि हिन्दी को मिलता है.

(यहां मैं साफ कर दूं कि मैं अंग्रेजी भाषा की विरोधी नहीं, मुझे भारत की दूसरी भाषाएं भी उतनी ही प्यारी हैं जितनी हिन्दी, लेकिन मैंने सुना था कि- हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्तां हमारा.. और इसीलिए हिन्दी का सम्मान करती हूं)

 

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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