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Updated: 03 मई, 2017 12:32 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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मेट्रो का सफर, सफर में महिलाएं और उस सफर को मुश्किल बनाती घूरती नजरें. सिर्फ घूरना ही क्यों, लड़के अपने अंदाज़ में फबतियां कसें, अजीब तरह से हंसें और महिलाएं चाहकर भी कुछ कर न सकें. खचाखच भरे कंपार्टमेंट में पुरुषों की भीड़ के बीच महिलाएं खुद को बचाती हुई निकलें तो वो किसी जंग जीतने से कम नहीं होता. और उसपर आपका शरीर किसी मनचले से छूकर निकल जाए तो फिर देखिए उसके चेहरे की रंगत. ये नजारे मेट्रो में बड़े आम हैं. यकीन करें, सफर करते वक्त महिलाएं जो झेलती हैं, उसे शायद शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. बस ये समझ लें कि बेहद असहज सी स्थिति होती है.

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ये हाल तो है हमारे देश की महिलाओं का, अब जरा अंदाजा लगाइए कि अगर कोई विदेशी महिला सफर कर रही हो तो उसके साथ किस तरह पेश आते होंगे लोग.

बहरहाल दिल्ली मेट्रो का एक वीडियो देखिए और अंदाजा लगाइए कि क्या हुआ होगा इस विदेशी महिला के साथ जो वो अपने कपड़े तक उतारने के लिए मजबूर हो गई. ये वीडियो इस समय वायरल है, लेकिन समाज के सामने कई सवाल भी छोड़ता है-

अफ्रीकी मूल की दो महिलाएं मेट्रो में सफर कर रही थीं और उनकी बहस वहां खड़े लड़कों से होती दिखाई दे रही है. वजह पता नहीं, हालांकि वीडियो अपलोड करने वालों ने सीट न मिलना, झगड़े की वजह बताया. महिलाएं हिंदी नहीं समझतीं, फिरभी लड़के हिंदी में ही बहस किए जा रहे हैं, वो भी बराबर लड़ रही हैं, गालियां भी दे रही हैं. जाहिर है इतनी भीड़ में उन्हें एक भी शख्स ऐसा नहीं मिला जो उन्हें समझ या समझा पाता.

उनकी मनोस्थिति समझी जा सकती है. सैकड़ों में भी अकेली, मन में कहीं न कहीं डर का भाव, खुद को सुरक्षित रखने की जद्दोजहद, ठीक वैसी जैसी यहां की महिलाओं की होती है. ऐसे में उन्हें ये लगा कि शायद वो लड़के उनसे फाइट करना चाहते हैं. एक महिला ने कहा भी कि 'क्या तुम सब मिलकर एक औरत को मारोगे'. इसके बाद वो लड़ने की नीयत से अपनी टी-शर्ट उतार देती है और कहती है 'आओ लड़ो'. बाद में एक शख्स ने उनसे कहा कि 'शांत हो जाएं कोई आपसे फाइट नहीं करना चाहता.' तब मामला शांत हुआ.

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जाहिर है, विदेशियों का सफर भी उतना ही असहज होता होगा जितना भारतीय महिलाओं का होता है. बल्कि विदेशियों को तो वस्तु ही समझता जाता होगा. उनका खुलकर मजाक उड़ाना, उनके रंग पर कमेंट करना बहुत आम है, क्योंकि वो कहां हमारे देश की भाषा समझते हैं. लेकिन अपमान और असहजता की भाषा दुनिया की हर महिला समझ लेती है, चाहे वो किसी भी कोने से क्यों न हो. यहां क्या हुआ, ये तो प्रत्यक्षदर्शी ही बता सकते हैं, लेकिन महिला होने के नाते इन अफ्रीकी महिलाओं की मनोस्थिति समझी जा सकती है. ऐसे में ये उम्मीद करना कि हमारे देश के लोग विदेशियों को मेहमान समझेंगे और उन्हें सहज महसूस कराएंगे, शायद बेमानी है. क्योंकि महिलाएं कहीं की भी हों कुछ लोगों के लिए मात्र इंटरटेनमेंट का साधन ही होती हैं. पर ऐसे में भी अगर उनका मुंहतोड़ जवाब देने के लिए ये महिला लड़ने तैयार हो गई तो उसके जज्बे के लिए मेरी ओर से तालियां !

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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