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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 28 सितम्बर, 2018 04:20 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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लंबे इंतजार के बाद आखिरकार उन महिलाओं को राहत मिल गई, जो भगवान अयप्पा के दर्शन के लिए सबरीमाला जाना चाहती थी. अब तक सबरीमाला में महिलाओं का प्रवेश निषेध था. केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से50 साल तक की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के अपने फैसले में मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक हटा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने द्वारा दिए गए फैसले में कहा है कि महिलाएं कहीं से भी पुरुषों  से कमतर नहीं हैं. मंदिर में उनके प्रवेश पर लगी रोक भेदभाव को जन्म देती है.

ज्ञात हो कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ जिसमें जस्टिस आर एफ नरीमन, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदू मल्होत्रा हैं, ने आठ दिनों तक सुनवाई करने के बाद,1 अगस्त को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

सबरीमाला, मंदिर, सुप्रीम कोर्ट, फैसला सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को महिलाओं के मद्देनजर एक बड़ा फैसला माना जा रहा है

फैसले पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्ना ने अपना मत प्रकट करते हुए कहा कि भगवान अयप्पा के श्रद्धालु हिंदू हैं. आप अपनी रोक से एक अलग धार्मिक प्रभुत्व बनाने की कोशिश न करें. किसी भी शारीरिक एवं बॉयोलाजिकल कारण को रोक का आधार नहीं बनाया जा सकताहै.  सबरीमाला मंदिर की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों को जरूरी धार्मिक क्रियाकलाप के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती. सीजेआई दीपक मिश्रा ने ये भी माना कि महिलाएं पुरुषों से कहीं से भी कमजोर नहीं हैं अतः शरीर के आधार पर उनके साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता.

वहीं मंदिर में महिलाओं पर लगी रोक के सन्दर्भ में जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने अपनी अलग राय पेश की है. जस्टिस  इंदु मल्होत्रा ने कहा कि धार्मिक परंपरा को केवल समानता के अधिकार के आधार पर परीक्षण नहीं कर सकते. धार्मिक रूप से कौन सी परिपाटी जरूरी है इसका फैसला श्रद्धालुओं करें न कि कोर्ट. साथ ही इंदु मल्होत्रा ने ये भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया फैसला केवल सबरीमाला मंदिर तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि इसका व्यापक असर भी होगा. इंदु मल्होत्रा का मत था कि गहरी आस्था वाले धार्मिक भावनाओं के मुद्दों पर सामान्य रूप से किसी को भी दखल नहीं देना चाहिए.

बहरहाल इस ऐतिहासिक फैसले के बाद चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है. फैसले के बाद समाज दो वर्गों में विभाजित होता नजर आ रहा है जिसमें एक वर्ग ऐसा है जो कोर्ट के फैसले के साथ है तो वहीं दूसरा वर्ग इसका विरोध कर रहा है. आइये एक नजर डालते हैं ट्विटर पर और देखते हैं कि इस मुद्दों पर लोगों का क्या कहना है.

बीजेपी महिला मोर्चा से जुड़ी प्रीती गांधी इस फैसले से खुश नहीं हैं. प्रीती ने ट्वीट करते हुए कहा है कि, महिलाएं मंदिर में क्यों नहीं जा सकती इसका कारण है. भगवान अयप्पा को एक ब्रह्मचारी की तरह पूजा जाता है.अपनी वरीयताओं को सिर्फ एक बिंदु सिद्ध करने के भगवान पर थोपना सही नहीं है.  

There is a reason why women are not allowed inside the temple. Lord Ayyappa is worshipped in the form of a 'brahmchari' at Sabarimala. Forcing our preferences on a god who is an eternal celibate just to prove a point is certainly not the way to go about. #SabarimalaVerdict

— Priti Gandhi (@MrsGandhi) September 28, 2018

ट्विटर यूजर अजीत भी इस फैसले से खुश नहीं हैं और माना है कि हिंदू और हिंदुत्व के लिए आज बुरा दिन हैं.

ट्विटर यूजर श्रीजीत ने अपने ट्वीट में लिखा है कि ऐसे फैसले और कुछ नहीं बस हिंदू मान्यताओं के साथ छेड़छाड़ हैं. आखिर क्यों केवल हिंदू मान्यताओं के साथ छेड़छाड़ की जा रही है?

@ProfMK_ भी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से इत्तेफाक नहीं रखते और माना है कि इसका लिंग भेद से कोई लेना देना नहीं है. यहां बात नियमों की है जिसका पालन किया जाएगा.

मानिनी के अनुसार ये महिलाओं की जीत नहीं है. इससे भारत के हर हिंदू को नुकसान है.

वीआर प्रसाद ने भी अपने ट्वीट के जरिये एक साथ कई सवालों को खड़ा कर दिया है.

दुर्गा रामदास के अनुसार अब जबकि हिंदू मान्यताओं के साथ छेड़छाड़ की जा रही है ये अपने आप में दुखद है कि केरल की कोई भी महिला इसके विरोध में नही आई.

हीरा मेहता इस फैसले से खुश हैं और इसे एक ऐतिहासिक फैसला मानते हुए कहा है कि यदि महिलाओं को परिवर्तन देखना है तो उन्हें खुद आगे आना होगा.

आदर्श ने अपने ट्वीट से प्रश्न उठाएं हैं कि आखिर ऐसी क्या वजह है जिसके चलते कोर्ट को इस तरह का फैसला देना पड़ा.

अनूप के ट्वीट करते हुए कहा है कि अब जबकि हिंदू महिलाओं को उनका हक मिल गया है देखना दिलचस्प होगा कि मुस्लिम और ईसाई महिलाओं को उनका हक कब मिलता है. आखिर कब मुस्लिम महिलाएं मस्जिद में नमाज पढ़ पाएंगी? कब हम ईसाई महिलाओं को पोप बनते हुए देख पाएंगे.

अशोक कुमार ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि, एक तरफ स्त्री को देवी के रूप में पूजते हैं, दूसरी तरफ मंदिर जाने पर रोक लगाते हैं.

गौरतलब है कि महिलाओं का एक समूह ऐसा भी था जिसने ये कहा था कि यदि फैसला उनके हक में भी आ जाता है तो उन्हें कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता. अपनी श्रद्धा और विश्वास के चलते वो मंदिर में प्रदेश नहीं करेंगी. यदि हमें इस बात को समझना हो तो हम इसे एक ट्वीट के जरिये बहुत ही आसानी के साथ समझ सकते हैं.

सोशल मीडिया पर लोग भले ही लोग इस फैसले का विरोध कर रहे हों या फिर इसके समर्थन में हों. मगर इस फैसले में महिलाओं के मद्देनजर जो भी बातें कोर्ट ने कहीं वो कहीं न कहीं उन्हें बल देंगी. कहना गलत नहीं है कि भले ही फैसले को लेकर लोग अदालत की आलोचना में जुट गए हों मगर देखा जाए तो महिला सशक्तिकरण और बराबरी के भाव के मद्देनजर ये एक बड़ा और बेहद ऐतिहासिक फैसला है जिसका देश के प्रत्येक नागरिक को स्वागत करते हुए सुप्रीम कोर्ट को सम्मान देना चाहिए.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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