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Updated: 09 मार्च, 2020 05:56 PM
धीरेंद्र राय
धीरेंद्र राय
  @dhirendra.rai01
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लखनऊ में दंगाइयों के फोटो और पते वाले बैनर हटाने का आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया है. 19 दिसंबर को लखनऊ में हुए हिंसक प्रदर्शन को लेकर 53 लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज हुए थे, और उनसे डेढ़ करोड़ रुपए की सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की भरपाई का आदेश यूपी सरकार ने दिया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) का यह आदेश ऐसे समय में आया है, जब योगी आदित्यनाथ सरकार (Yogi Adityanath UP govt) ने CAA protest के नाम पर दंगा कर रहे लोगों के खिलाफ सख्त रुख अपनाया हुआ है. शुरुआती दौर में जो उपद्रव हुआ, उस पर यूपी पुलिस ने लाठीचार्ज से लेकर गोली चलाने तक गुरेज नहीं किया. इसके बाद जब-जब जहां जहां किसी ने सार्वजनिक जगहों को प्रदर्शन का ठिकाना बनाना चाहा, यूपी सरकार ने उसे दबा दिया. अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विधानसभा में डंके की चोट पर कहते हैं कि कानून से खिलवाड़ करने की छूट हम किसी को नहीं देंगे. और जब वे ये बात कहते हैं तो उनकी आवाज में दृढ़ विश्वास साफ दिखाई देता है.

अब आइए रुख करते हैं दिल्ली का. संसद में नागरिकता संशोधन कानून पास होने के बाद से ही दिल्ली में अलग अलग जगहों पर विरोध प्रदर्शन जारी हैं. इन प्रदर्शनों में सबसे प्रमुख है शाहीन बाग प्रोटेस्ट (Shaheen Bagh protest). नोएडा और फरीदाबाद को कनेक्ट करने वाली प्रमुख सड़क इस प्रदर्शन के कारण जाम है. इस प्रदर्शन की विशेषता यह रही कि महिलाओं और बच्चों को इसका चेहरा बनाया गया. नतीजा यह हुआ कि पुलिस ने इस धरने का हटाने की कभी गंभीर कोशिश की ही नहीं. जब धरना नहीं हटा तो नेताओं ने इसे राजनीति का हथियार बना लिया. प्रधानमंत्री मोदी से लेकर हर पक्ष-विपक्ष के भाषणों में शाहीन बाग को जगह मिली. लेकिन इस राजनीतिक खेल में CAA protest का यह ठिकाना कब धार्मिक नफरत का स्रोत बन गया, सरकार इसका अंदाज लगाने में फेल रही. सरकार की नाकामी का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि ढाई महीने से चल रहे CAA protest के बावजूद दिल्ली में हिंदू-मुस्लिम दंगे हो जाते हैं. 50 से ज्यादा लोगों की जान चली जाती है. और पीछे रह जाती है सिर्फ और सिर्फ धार्मिक नफरत.

योगी आदित्यनाथ का फैसला विवादास्पद, लेकिन सही

यूपी में CAA के विरोध में जब जब उपद्रव हुए, योगी आदित्यनाथ खामोश नहीं रहे. उन्होंने अपने बयानों से साफ जाहिर कर दिया कि वे इस विरोध प्रदर्शन के खिलाफ हैं. खासतौर पर उपद्रव के. उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि सीसीटीवी फुटेज को देखकर दंगाइयों की पहचान करेंगे, और उनसे हर्जाना वसूलेंगे. शुरुआत में लगा कि प्रदेश के मुखिया होने के नाते वे दंगा शांत करने के लिए शायद चेतावनी भर दे रहे हैं. लेकिन जब लोगों के घर नोटिस पहुंचने लगे तो यूपी सरकार की दृढ़ता का अंदाजा लोगों को हो गया. नतीजा ये हुआ कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन के लिए भी लोगों ने घरों से निकलना बंद कर दिया. पता नहीं कब दंगा भड़क जाए, और उनका चेहरा सीसीटीवी में आ जाए. इसे योगी सरकार की दहशत ही कहा जाएगा, लेकिन इसके नतीजे में उत्तर प्रदेश को अमन मिल गया. अब भले इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश से दंगाइयों की तस्वीर वाले बैनर लखनऊ से हट जाएं, लेकिन योगी आदित्यनाथ का सख्त रवैया तो स्थापित हो ही गया.

Yogi Adityanath UP govtयोगी आदित्यनाथ के फैसले से पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच का भ्रम टूट गया है.

केंद्र सरकार का रुख कानूनन सही, लेकिन फैसला गले की हड्डी

शाहीन बाग प्रोटेस्ट को मीडिया और लिबरल बुद्धिजीवियों ने सिर आंखों पर बैठाए रखा. प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से समर्थन भी दिया. जो CAA की बहस में नहीं उलझना चाहते हैं, उन्होंने इसे 'प्रोटेस्ट करने की आजादी' वाली कैटेगरी में रखा. केंद्र की सरकारें और दिल्ली पुलिस ऐसे कई 'शांतिपूर्ण' धरना प्रदर्शन को पूर्व में कुचलती आई हैं, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. शाहीन बाग प्रदर्शन में प्रमुख रूप से महिलाओं और बच्चों की हिस्सेदारी रही, और उन पर कार्रवाई करके केंद्र सरकार अलोकप्रियता का बोझ नहीं उठना चाहती थी. इसका नतीजा ये हुआ है कि पिछले तीन महीने से नोएडा और फरीदाबाद के बीच आने जाने वाले लोगों को असुविधा उठानी पड़ रही है. इतना ही नहीं, ये पहली बार हुआ है कि इतने लंबे वक्त तक सड़क जाम करने वाला प्रदर्शन जारी रहा है.

शाहीन बाग ने ऐसे प्रेरणास्रोत का काम किया है, जिसकी मिसाल लेकर दिल्ली के जाफराबाद में कुछ लोग धरना देने जा रहे थे. और फिर उसकी आड़ में दंगे पर उतर आए. और दिल्ली पुलिस और उस पर नियंत्रण रखने वाली केंद्र सरकार मुंह देखती रह गई. नतीजा ये हुआ कि दो दिन गली-कूंचों में हुए खूनखराबे ने 50 से ज्यादा लोगों की जान ले ली.

न्यायपालिका की देरी कानूनन है, लेकिन गलत है

लखनऊ में दंगाइयों की तस्वीरें बैनर पर लगाने को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने न सिर्फ स्वत: संज्ञान लिया, बल्कि रविवार को छुट्टी वाले दिन भी इसकी सुनवाई की. इसके बाद सोमवार को राज्य सरकार को ये बैनर हटाने का आदेश जारी किया. यानी अदालत ने राज्य सरकार के एक कदम का विश्लेषण करके तुरत-फुरत न्याय कर दिया. अब आइए, उस मामले की तरफ बढ़ते हैं जो इस झगड़े की जड़ है. केंद्र सरकार ने 12 दिसंबर 2019 को नागरिकता संशोधन कानून पास किया था. राष्ट्रपति की मुहर के बाद यह कानून अमल में आ गया. लेकिन इस कानून की संवैधानिक व्याख्या का जिम्मा सुप्रीम कोर्ट के पास है. और सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अब तक कोई फैसला नहीं सुनाया है. यानी प्रदर्शनकारियों को इस कानून को असंवैधानिक कहने की छूट हासिल है. इतना ही नहीं, पूरी दुनिया इस कानून पर टिप्पणी कर रही है.

सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों के सड़क घेरने की बात पर ऐतराज जताया है, लेकिन प्रदर्शन करने को लोगों का हक कहा है. इस न्याय से कुछ हो न हो, नोएडा और फरीदाबाद के बीच आने जाने वालों को दुख-दर्द बरकरार है.

निष्कर्ष: दिल्ली में सरकार, पुलिस, प्रदर्शनकारी और न्यायपालिका के बीच गफलत की स्थिति है. बावजूद इसके कि सभी अपनी अपनी जगह कानूनन सही हैं. नतीजे में हो ये रहा है कि दिल्ली में तनाव बरकरार है. एक बड़ा दंगा हो चुका है. और टकराव की स्थिति हर वक्त कायम है. वहीं यूपी में योगी आदित्यनाथ सरकार के रुख से कम से कम पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच गफलत की कोई स्थिति नहीं है. प्रदर्शनकारी जानते हैं कि जरा सी हद लांघने पर सूबे की सरकार किसी भी हद तक चली जाएगी. नतीजा ये है कि राज्य में अमन कायम है. टकराव की स्थिति नहीं है. और सबसे बड़ी बात किसी की जान नहीं जा रही है.

जहां तक बात, दंगाइयों के बैनर लगाने की है. ये सरासर गलत है. यदि किसी बेगुनाह का पोस्टर लगा है, तो उल्टे योगी सरकार से हर्जाना वसूला जाना चाहिए. लेकिन, अगर यदि कोई दंगा फैलाने का दोषी है तो उसकी सजा तो इस सार्वजनिक लानत-मलानत से ज्यादा बड़ी होनी चाहिए.

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लेखक

धीरेंद्र राय धीरेंद्र राय @dhirendra.rai01

लेखक ichowk.in के संपादक हैं.

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