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Updated: 10 मई, 2016 06:50 PM
कुमारी स्नेहा
कुमारी स्नेहा
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सुर्ख लाल, गुलाबी और उजला रंग अब जेएनयू से उतरने लगा है. महीना अमलतास और गुलमोहर के फूलों का आ चुका है. नजरें जेएनयू के जिस दिशा में भी मुड़े वह अमलतास के फूलों पर टिक सी जाती है. सड़कों पर हर तरफ पीले फूल बिछे हुए हैं.

इस महीने में अमलतास का फूल अपनी सौंदर्य की पराकाष्ठा पर होता है. आस-पास के पेड़, जिनकी शाखों और टहनियों से पतझड़ ने फूल और पत्तियां नोच ली, उनके लिए अमलतास का खिलना जैसे उनका मजाक उड़ाने जैसा लगता है. लेकिन इन अमलतास और गुलमोहर के खिलने के मौसम के बीच जेएनयू में भूख हड़ताल और प्रदर्शन का दौर जारी है.

बसंत के शुरू होते ही जिस विवाद ने जेएनयू को घेरा था, वह पतझड़ के जाने के बाद भी समाप्त नहीं हुआ है. जेएनयू के प्रशाषनिक ब्लॉक (आजादी स्क्वॉयर) के चारों तरफ अमलतास के बड़े-बड़े पेड़ मौजूद हैं. इन पेड़ों के नीचे दोनों वामपंथ और दक्षिणपंथ की विचारधारा से ओतप्रोत स्टूडेंट्स बीते कई दिनों से भूख हड़ताल पर बैठे हुए हैं. वैसे इन दोनों विचारधाराओं में जमीन और आसमान का अंतर है लेकिन जेएनयू के इस कैंपस में ये दोनों धाराएं अमलतास के पेड़ के नीचे तैनात हैं. एक तरफ दक्षिणपंथ भगवा लहराकर सवाल कर रहा है कि क्या देश में भारत माता की जय बोलना अपराध है? तो दूसरी तरफ क्रांति के प्रतीक लाल रंग के बीच स्मृति ईरान होश में आओ, वीसी वापस जाओ, संघी सरकार मुर्दाबाद, फांसीवाद हो बर्बाद के नारे लग रहे हैं.

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 जेएनयू में अमलतास के पीले फूल

दोनों ही विचारधाराओं के स्टूडेंट्स ने अपने-अपने मान्य महापुरुषों की तस्वीरें भी लगा रखी है. इन दोनों के बीच भगत सिंह ही एक ऐसे महापुरुष हैं जिनकी तस्वीर दोनों खेमों में लगी हुई है. हालांकि वामपंथ और दक्षिणपंथ के भगत सिंह में अंतर काफी बड़ा है. जहां वामपंथ के भगत सिंह की तस्वीर अंग्रेजी हैट में है तो दक्षिणपंथ के भगत सिंह पगड़ी में नजर आते हैं. दोनों ही खेमों में स्टूडेंट्स के चेहरों पर आशा और निराशा के भाव एक साथ देखे जा सकते हैं. जैसे-जैसे शाम होने लगती है स्टडेंट्स का जमावड़ा अपनी-अपनी विचारधारा के मंच पर होने लगता है और उन्हें बांधे रखने के लिए क्रांति गीत का सिलसिला भी शुरू हो जाता है.

यहां पर दक्षिणपंथी गुट के स्टूडेंट्स कैमरे के सामने मोदी सरकार का जयकारा करने से नहीं चूकते लेकिन वही स्टूडेंट्स यह स्वीकारने में भी नहीं हिचकते हैं कि केन्द्र सरकार बेकार में ही यूनिवर्सिटीज के पीछे पड़ी हुई है. वहीं, वामपंथी गुट के स्टूडेंट्स इस बात को स्वीकार रहे हैं कि कन्हैया ने अकेले ही सारी की सारी लोकप्रियता को अपने नाम करने की ललक दिखाई है. यहां बड़ी संख्या ऐसे स्टूडेंट्स की भी है जिन्होंने जिंदगी के कई पड़ाव पर आंदोलनों में हिस्सा लिया है और आज उन्हें जेएनयू के इस आंदोलन से बड़ी उम्मीदें हैं. ऐसे स्टूडेंट्स चाहते हैं कि यह आंदोलन कैंपस से बाहर निकले और देश के कोने-कोने में फैलकर व्यवस्था को बदलने में कारगर हो. हालांकि, उनका भी मानना यही है कि क्रांति की लौ अभी इतनी लाल नहीं है लिहाजा ऐसा होना दूर की कौड़ी नजर आ रहा है.

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 धरना पर कन्हैया कुमार

इन सब के बीच अमलतास का पेड़ चुपचाप अपने सुनहरे पीले रंगों की ताजगी फिजा में बिखेरते हुए दोनों धाराओं की बातों को आत्मसात कर रहा है. ठीक राही मासूम रजा के उस नीम के पेड़ की तरह, जिसने अपनी जिंदगी में हर अच्छे-बुरे पल देखे थे और बाद में बुधिया के गुस्से का शिकार भी हो गया. लेकिन इस अमलतास के पेड़ के लिए राहत यह है कि हर कोई आने-जाने वाला इसकी तस्वीर खींचकर सोशल साइट्स या अपने मोबाइल के कवर पेज पर जरूर लगाता है. यह अमलतास सिर्फ सुंदर ही नहीं जेएनयू की तरह जिद्दी भी बहुत है. जब इस मौसम में सारे फूल मुरझाने लगते हैं तब वह ठाठ से धूप के सामने खड़ा रहता है और इसकी खूबसूरती के सामने क्रांति का वह लाल रंग भी फीका दिखने लगता है.

लेखक

कुमारी स्नेहा कुमारी स्नेहा @100006424236549

लेखक पत्रकार हैं

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