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Updated: 27 जनवरी, 2018 02:00 PM
प्रवीण शेखर
प्रवीण शेखर
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वर्ष 2018 निश्चित रूप से लालू प्रसाद के लिए शुभ नहीं है. नए साल के पहले हफ्ते में और आखिरी सप्ताह में, लालू को 90 के दशक के चारा घोटाले के दो अलग-अलग मामलों में दो बार सजा सुनाई गई है.

पहले, 6 जनवरी को, उन्हें देवघर खजाने के मामले में सीबीआई न्यायाधीश शिवपाल सिंह द्वारा साढ़े तीन साल की सजा सुनाई गई थी और बुधवार को सीबीआई न्यायाधीश एसएस प्रसाद ने उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा और अन्य व्यक्ति सहित लालू को चौबासा खजाने के मामले में पांच साल की सजा सुनाई. 2013 में, लालू को एक और चारा घोटाले मामले में सजा सुनाई गई थी.

तेजस्वी यादव, बिहार, नीतीश कुमार, लालू यादव

कुल मिलकर तीन मामलों में 13.5 साल की जेल की सजा सुनाई गयी है और सीबीआई अदालतों में अभी तीन अन्य मामले लंबित हैं. 69 साल के करिश्माई नेता के राजनीतिक भविष्य अन्धकार में होने की आशंका है सम्भवना है अगर उनको उच्च न्यायालयों से कोई राहत नहीं मिलती है. 6 जनवरी के फैसले के खिलाफ रांची उच्च न्यायालय फरवरी 2 को आरजेडी सुप्रीमो की जमानत याचिका पर सुनवाई करेगी.

आरजेडी ने आरएसएस, भाजपा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर लालू को फंसाने और राजनीतिक तौर पर खत्म करने का आरोप लगाया है.

लालू के छोटे बेटे और विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया “ये षडयंत्र आरएसएस और भाजपा द्वारा रचा गया था और इसके अलावा नीतीश ने इसमें सभी प्रमुख भूमिका निभाई है. हम न्याय पाने के लिए उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में जाएंगे.” उपमुख्यमंत्री और भाजपा नेता सुशील मोदी ने कहा, "लालू को तीन अलग-अलग न्यायाधीशों द्वारा सजा सुनाई गई है. किसी भी व्यक्ति भाजपा और आरएसएस पर षडयंत्र रचने का आरोप कैसे लगा सकता है. यह कोई राजनीतिक आदेश नहीं, बल्कि न्यायिक आदेश है.अब इस नई सजा के बाद, लालू के वारिस तेजसवी पर एक बड़ी जिम्मेदारी गिर पड़ी है गई- आरजेडी को एकजुट रखने का और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं, जो की तजसवी जैसे छोटे नेता के नीचे काम करने में सहज महसूस नहीं करते, पर कैसे कब्ज़ा रखा जाये.

आरजेडी नेताओं, हालांकि उनमें से कोई भी लालू की अनुपस्थिति से उनके सक्रिय राजनीति पर प्रभाव की नीतिगत आकलन करने के लिए आगे नहीं आ रहे है, निजी तौर पर स्वीकार करते हैं कि मध्य 90 के दशक की एक अलग स्थिति थी जब लालू पहली बार 1997 में पार्टी का भार और सरकार अपनी पत्नी राब्री देवी को सौंप कर जेल गए थे.

उस समय लालू की राजनितिक परिस्थितियां कुछ और ही थी. लालू उस समय एक बड़े लोकप्रिय नेता थे और उनको आम जनता की बड़े पैमाने पर सहानुभूति थी. लेकिन अब परीतस्थितियाँ काफी बदल चुकी हैं खासकर जब उन्हें पुराने और साथ ही नए मामलों की श्रृंखला में कोर्ट ने सजा सुनाई है और उनके परिवार के कई सदस्य को इनमे शामिल होने में दोषी ठहराया है. आरजेडी अब नेतृत्व संकट का सामना कर रहा है. लालू पर अब पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को नज़रअंदाज़ करने का और अपने परिवार को प्राथमिकता देने का आरोप लगने लेगा था. बहुत जल्द पार्टी गंभीर संकट में होगी और पार्टी को अपना अस्तित्व बचाने में काफी मुश्किल का सामना करना पड़ेगा. अब लालू पर ये आरोप लगाया जाता है की उनका सिर्फ एक ही योगदान है की उन्होंने सिर्फ अपने परिवार के प्रगति और उत्थान के लिए काम किया है.

ये तो तय है की लालू का वो अंदाज और उनके करिश्माई जादू फीके पड़ने लगे हैं. अब देखना ये होगा की तेजस्वी अपने पिता के 90 की दशक वाले तेवर और राजनितिक कुशाग्रता दोहराने में सफल हे सकेंगे या नहीं और आरजेडी को एक नयी दिशा और दशा देने में सफल हो पाएंगे या नहीं.

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लेखक

प्रवीण शेखर प्रवीण शेखर @praveen.shekhar.37

लेखक इंडिया ग्रुप में सीनियर प्रोड्यूसर हैं

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