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Updated: 23 मई, 2016 05:37 PM
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अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा जब इस हफ्ते जापान के शहर हिरोशमा पहुंचेंगे तो वह पद पर रहते हुए हिरोशिमा जाने वाले पहले राष्ट्रपति होंगे. जाहिर सी बात है कि किसी अमेरिकी राष्ट्रपति की उस शहर की यात्रा जिसे खुद अमेरिकियों ने परमाणु बम के हमले से तबाह कर दिया था, काफी महत्वपूर्ण है. चर्चा ओबामा की इस यात्रा की भी है और सबसे ज्यादा चर्चा तो इस बात की है कि क्या अमेरिका 1945 में दो जापानी शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाण बम गिराने के लिए जापान से माफी मांगेगा? तो जवाब है नहीं.

ये हम नहीं बल्कि खुद ओबामा ने कहा है. इस यात्रा के शुरू होने के पहले एक जापानी चैनल को दिए इंटरव्यू में जब ओबामा से पूछा गया कि क्या वे हिरोशिमा पर अमेरिका द्वारा परमाणु बम गिराए जाने के लिए माफी मांगेंगे तो उन्होंने कहा, नहीं. ओबामा की इस यात्रा से लंबे समय से आ रही हिरोशिमा के लिए अमेरिकी माफी मांगने की चर्चा फिर से जोरों पर है. सवाल ये कि क्या अमेरिका को जापान पर परमाणु बम गिराने के लिए माफी मांगनी चाहिए? और क्या अमेरिका इसके लिए कभी माफी मांगेंगा? आइए कोशिश करें इसके जवाब तलाशने की.

अमेरिका क्यों माफी नहीं मांगना चाहता जापान से?

जिस घटना को मानव इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक माना जाता हो उसके लिए न तो कभी अमेरिका ने माफी मांगी और न ही अब अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा मांगेंगे. इसकी वजह ये है कि अमेरिका और वहां के लोगों का मानना है कि अमेरिका ने जापान पर परमाणु हमला करके अपने लाखों नागरिकों की जानें बचाई और अपने नागरिकों की रक्षा के लिए उठाया गया यह कदम सही था. उनका ये भी मानना है कि अगर अमेरिका ये कदम नहीं उठाता तो जापान द्वितीय विश्व युद्ध की इस जंग को जारी रखता और इससे दोनों ही देशों के और भी ज्यादा नागरिक मारे जाते.

लेकिन ये दोनों ही तर्क खोखले नजर आते हैं. 6 अगस्त 1945 को हिरोशिमा और उसके तीन दिन बाद 9 अगस्त को नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों में लगभग सवा दो लाख लोगों की मौत हुई. हिरोशिमा में इससे 1 लाख 40 हजार और नागासाकी में 74000 लोगों की मौत हुई. इतना ही नहीं इस बम के घातक प्रभाव के कारण लाखों लोग हमेशा के लिए अपाहिज हो गए. इन शहरों में आज भी उस परमाणु बम के रेडिएशन के कारण कई बच्चे अपाहिज पैदा होते हैं और वहां की वनस्पतियों तक में रेडिएशन का असर अब भी नजर आता है.

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बराक ओबामा पद पर रहते हुए हिरोशिमा जाने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं

यानी इस बम से लोगों की जिंदगियां बचाने का अमेरिकी दावा झूठा है क्योंकि अगर लड़ाई आगे भी जारी भी रहती तब भी शायद उससे इतने लोग नहीं मरते जितना इस घातक बम की वजह से एक ही झटके में काल के गाल में समा गए. 1946 में अमेरिकी सरकार की खुद की रिपोर्ट में कहा गया था कि अगर अमेरिका परमाणु हमला न भी करता तो सिर्फ हवाई हमलों से भी जापान को आत्मसमर्णण कराया जा सकता था. वैसे भी अगर अमेरिका को जापान को आत्मसमर्पण कराना ही था तो उसे बम सैन्य ठिकानों या किसी बाहरी इलाके में गिराना चाहिए था न कि आम नागरिकों के ऊपर.

अमेरिका को खतरा जापानी सैनिकों से था तो उन्हें ही निशाना बनाया जा सकता था, इसके लिए लाखों मासूमों को मौत के घाट उतारना निश्चित तौर पर अमेरिका का गैर जिम्मेदराना रवैया था.

कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक अमेरिका हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराकर किसी शहर के ऊपर इस बम का टेस्ट करना चाहता था. उसने जापान की राजधानी टोक्यो पर हमला इसलिए नहीं किया क्योंकि वहां वह पहले ही काफी बमबारी हो चुकी थी. ऐसे में परमाणु बम से होने वाली तबाही और पहले से हुई तबाही में अंतर कर पाना मुश्किल होता. एक और जापानी शहर क्योटो पर भी परमाणु बम गिराने की योजना इसलिए टाली गई क्योंकि वहां एक टॉप अमेरिका अधिकारी, सेक्रेटरी ऑफ वॉर हेनरी स्टिमसन ने अपना हनीमून मनाया था और वे नहीं चाहते थे कि शहर की सांस्कृतिक धरोहरों को नुकसान पहुंचाया जाए. इसलिए हिरोशिमा और नागासाकी को चुना गया.

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अमेरिका द्वारा 1945 में जापानी शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों से सवा दो लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे

अमेरिका का माफी न मांगने का रवैया शर्मनाक!

जापान पर परमाणु बम गिराने के आदेश पर मुहर लगाने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन से लेकर वर्तमान राष्ट्रपति ओबामा तक किसी ने भी जापान से कभी माफी नहीं मांगी. ओबामा का कहना है कि वे इसलिए माफी नहीं मांगेंगे क्योंकि ये समझना जरूरी है कि युद्ध के दौरान नेता को हर तरह के फैसले लेने होते हैं. यानी ओबोमा का मानना है कि अमेरिका ने हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराकर गलत नहीं किया और ये युद्ध के समय की जरूरत थी.

लेकिन अमेरिका को ये समझने की जरूरत है कि किसी भी युद्ध के दौरान कोशिश यही की जाती है कि सैन्य ठिकानों पर हमला किया जाए न कि आम नागरिकों को निशाना बनाया जाए. अमेरिका ने जिस तरह बिना परमाणु बम हमले का परिणाम जाने उसे एक आबाद शहर पर गिरा दिया उससे उसकी मानसिकता पता चलती है. उस पर अमेरिका का ये तर्क कि ये फैसला युद्ध की मांग थी, बेहद शर्मनाक है.

ब्रिटेन से लेकर जर्मनी तक कई देश अपने देश द्वार अतीत में की गई गलतियों के लिए माफी मांग चुके हैं. इससे इन देशों का मान घटा नहीं इसलिए अगर अमेरिका भी अपना अड़ियल रवैया छोड़कर हिरोशिमा और नागासाकी के लिए अपने किए पर शर्मिंदा होते हए माफी मांग लेगा तो शायद इस हमले में मारे गए लोगों की आत्मा को थोड़ी सी शांति मिल जाएगा.

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