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Updated: 17 अगस्त, 2016 12:11 AM
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यूपी के 'सबसे भरोसेमंद परिवार' में चार साल तक सब ठीक-ठाक ही रहा - पर, अब शायद नहीं है. परिवार पर खतरा मंडरा रहा है वो भी तब जब चुनाव सिर पर है. ये खतरा अस्तित्व का नहीं बल्कि कुछ और है. मुलायम को लग रहा है कि कोई इसकी साजिश रच रहा है - और साजिश के पहले शिकार हुए हैं - मुलायम के भाई शिवपाल यादव.

परिवार को बचाने के लिए मुलायम को खुद फ्रंटफुट पर आना पड़ा है - आशंका है कुछ नहीं किया गया तो परिवार बिखर जाएगा और पार्टी टूट जाएगी.

किसकी साजिश?

मुलायम सिंह ने हाल ही में कार्यकर्ताओं को समझाया था कि यूपी में उनका परिवार ऐसा है जिस पर लोग भरोसा करते हैं - और इसकी मिसाल उन्होंने 2014 में सूबे की पांच सीटों पर पूरे परिवार की जीत को बताया हैं. एक ऐसी जीत जिसमें पूरा परिवार लोक सभा पहुंच गया, लेकिन पूरी पार्टी जहां तहां लुढ़क गयी. लेकिन ये परिवार संकट में है. ये संकट किसी साजिश से आया है.

अब सवाल ये है कि समाजवादी परिवार में साजिश रचनेवाला बाहर का है, या अंदर का ही कोई शख्स है? साजिशकर्ता अकेला है या ऐसे लोगों का कोई समूह है? अगर कोई साजिश कर रहा है तो उसका टारगेट परिवार है या पार्टी?

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अंदर की बात तो मुलायम ही बेहतर जानते होंगे, लेकिन शिवपाल के धमकी भरे बयान के पीछे किसी साजिश की गंध आ रही है. अब शिवपाल यादव के खिलाफ साजिश हो रही है तो वो कौन हो सकता है?

जाहिर है साजिश वही कर रहा होगा जिसके भविष्य के लिए शिवपाल खतरा नजर आ रहे होंगे. या फिर शिवपाल किसी की राह में बाधा बन रहे होंगे. अव्वल तो शिवपाल का सीधा झगड़ा भतीजे अखिलेश यादव से ही है. शिवपाल जब भी पार्टी के लिए कुछ करना चाहते हैं - अखिलेश न सिर्फ टांग अड़ा देते हैं, बल्कि ऐसा किक मारते हैं कि उनका प्रोजेक्ट खड़ा होने के पहले ही ढेर हो जाता है.

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हाथ और साथ दोनों बरकार रखने की चुनौती...

2012 में बाहुबली नेता डीपी यादव को पार्टी में लाने का मामला हो या 2016 में कौमी एकता दल के विलय के जरिये माफिया डॉन मुख्तार अंसारी का. शिवपाल यादव कहते हैं कि अधिकारी उनकी सुनते नहीं. शिवपाल के मुताबिक ये अधिकारी भी ऐसे हैं जिन्होंने घटिया काम करने वाले ठेकेदार पाल रखे हैं. तो शिवपाल किस ओर इशारा कर रहे हैं? आखिर उनके विभाग के अधिकारियों को कौन मना कर सकता है कि वो उनकी बात न सुनें?

मुख्यमंत्री तो अखिलेश यादव ही हैं - तो क्या शिवपाल ये संकेत दे रहे हैं कि अधिकारी सीएम ऑफिस के इशारे पर उन्हें अनसुना कर रहे हैं? क्या मुलायम सिंह भी शिवपाल के शक से इत्तेफाक रखते हैं?

रूठा है तो मना लेंगे

मुलायम परिवार इतना बड़ा है तो सदस्यों का रूठना और फिर मान जाना एक सतत प्रक्रिया होगी. कभी कोई रूठता होगा, फिर कोई मना लेता होगा. अब मुलायम के एक भाई रामगोपाल यादव के बर्थडे के मौके पर ही शिवपाल यादव रूठ गये थे. अमर सिंह ने उनके दिल की बात सुन ली और फिर क्या था, हाथ पकड़ कर सीधे वहीं पहुंचे जहां महफिल थी. कसर बस इतनी रह गयी कि केक कट चुका था.

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शिवपाल से पहले मुलायम के बेटे अखिलेश तो जोर से ही रूठ गये थे. कई दिन तक सैफई महोत्सव सूना सूना रहा और स्थानीय सुर्खियों में छाया रहा. बेटे को मनाने के लिए मुलायम को कदम पीछे खींचने पड़े और समाजवादी पार्टी से सस्पेंड किये गये बच्चों को घर वापस बुलाना पड़ा.

मुलायम की मुश्किल

मुलायम सिंह की मौजूदा मुश्किल ये है कि एक तरफ भाई है तो दूसरी तरफ बेटा. मुलायम की सक्रियता कम होने के बाद संगठन और सत्ता इन्हीं दोनों के हवाले है. भाई की जिम्मेदारी संगठन है तो बेटे की जिम्मेदारी सत्ता है.

संगठन और सत्ता के बेहतर तालमेल से ही समाजवादी परिवार चलता है, लेकिन तालमेल में कमी के कारण परिवार की जड़ें हिलने लगी हैं. शिवपाल की नाराजगी को लेकर मुलायम काफी गंभीर हैं. मुलायम को लगता है कि शिवपाल नाराज हुए तो पार्टी टूट जाएगी - और पार्टी टूट जाएगी तो सत्ता का क्या होगा? सत्ता नहीं रहेगी तो परिवार का क्या होगा? परिवार कमजोर नजर आया तो लोगों का भरोसा टूट जाएगा - और किसी का भरोसा तोड़ना तो बहुत ही गलत बात होगी. फिर तो परिवार के मुखिया का चिंतित होना लाजिमी है.

क्या मुलायम भी मानते हैं कि शिवपाल जो कर रहे हैं वो बिलकुल ठीक है? फिर तो अखिलेश जो कर रहे हैं वो उन्हें गलत मानना पड़ेगा.

ऐसा तो नहीं कि कौमी एकता दल विवाद का खुमार अभी खत्म नहीं हुआ है - और मुलायम भी उससे अपनी मौलाना मुलायम वाली छवि के लिए चिंतित हैं. ऐसा भी तो हो सकता है कि टिकट बंटवारे के सीजन में न सुनने के नाम पर अधिकारियों का कंधा इस्तेमाल किया जा रहा हो. सही भी है, संगठन की जिम्मेदारी संभालनेवाला अगर पार्टी में किसी की एंट्री न करा सके - मनमाफिक किसी को टिकट न दिला सके तो उस पर क्या गुजरेगी?

2012 में मुलायम सिंह ने बेटे अखिलेश को सीएम बनाने के लिए भाई को मना लिया था, क्या 2017 के खातिर अब वो भाई के लिए बेटे को मनाएंगे?

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