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Updated: 24 अप्रिल, 2019 08:52 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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चुनावों का मौसम आते ही एक शब्द हवा में घूमने लगता है- विनेबिलिटी (Winnability), यानी जीतने की क्षमता. किसी भी चुनाव में सबसे पहले यही देखा जाता है कि आखिर कौन-कौन से उम्मीदवार हैं जो जीत दिला सकते हैं. भाजपा भी इस बात का एनालिसिस अच्छे से करती है. लेकिन ये कहना गलत होगा कि किसी को टिकट देना है या नहीं ये सिर्फ उसकी जीत पर निर्भर करता है. और भी कई फैक्टर हैं, जो पार्टी को ये तय करने में मदद करते हैं कि किसे टिकट देना चाहिए.

लोकसभा चुनावों के इस दौर में फिलहाल इसी बात को लेकर बहस हो रही है कि भाजपा अपने कुछ सांसदों के टिकट क्यों काट रही है? उदित राज और विजय सांपला ताजा उदाहरण हैं. विजय सांपला तो केंद्रीय राज्यमंत्री भी थे, लेकिन भाजपा ने उनका टिकट भी काट दिया. तो क्या ये लोग जीतने के काबिल नहीं थे या फिर कोई और वजह है?

भाजपा, उदित राज, विजय सांपला, लोकसभा चुनाव 2019विजय सांपला और उदित राज का टिकट भाजपा ने काट दिया है.

उदित राज, कभी डॉक्टर कभी चौकीदार

भाजपा ने उत्तर पश्चिम दिल्ली से मौजूदा सांसद उदित राज का टिकट काट दिया है. पेशे से डॉक्टर उदित राज ने पीएम मोदी के कैंपेन 'मैं भी चौकीदार' के बाद ट्विटर पर अपने नाम के आगे चौकीदार लगाया था. मंगलवार को सुबह 11 बजे उन्होंने अपने नाम के आगे से चौकीदार हटा दिया, लेकिन शाम होते-होते इरादा बदल कर 4 बजे दोबारा चौकीदार लगा लिया, और अब तो उन्होंने भाजपा को छोड़कर कांग्रेस की सदस्यता ले ली है. उदित राज के रवैये से एक बात तो साफ है कि वह सिर्फ टिकट के लिए राजनीति में हैं. जो पार्टी टिकट देगी, उसके साथ हो लेंगे.

टिकट कटने पर विजय सांपला नाराज

जब भाजपा ने विजय सांपना का टिकट काटा तो उन्होंने ट्विटर पर अपनी नाराजगी जताते हुए पार्टी को खूब कोसा. उन्होंने अपने बहुत सारे काम गिनाए और तंज करते हुए ये भी कहा कि अगर ऐसा करना ही मेरी गलती है तो मैं आने वाली पीढ़ियों को समझा दूंगा कि ये गलती ना करें. खैर, पार्टी में उनकी अनबन तो थी नहीं. यानी साफ है कि उनका टिकट इसीलिए काटा गया है क्योंकि उनके जीतने की उम्मीदें कम थीं.

यूपी के 6 सांसदों के काटे टिकट

उदित राज या विजय सांपला ही नहीं हैं, जिनके टिकट कटे हैं, बल्कि सिर्फ यूपी में ही 6 भाजपा नेताओं के टिकट काट दिए गए हैं. इनमें शाहजहांपुर से कृष्ण राज, आगरा से राम शंकर कठेरिया, हरदोई से अंशुल वर्मा, बाबूला चौधरी, अंजू बाला और सत्य पाल सिंह भी शामिल हैं. अब ये बहस भी शुरू हो गई है कि भाजपा ने आखिर क्या सोचकर इनके टिकट काटे.

टिकट देने से पहले पार्टियां करती हैं पूरा कैल्कुलेशन

चुनाव में ऐसे उम्मीदवार को मैदान में उतारा जाता है जो जीत सके, लेकिन सिर्फ जीत ही एक पैमाना नहीं होता किसी उम्मीदवार को चुनने का. चलिए जानते हैं किसी उम्मीदवार को टिकट देने से पहले किन बातों का ध्यान रखा जाता है.

- सबसे अहम बात तो ये कि उम्मीदवार जीत सकता है या नहीं. हारने वाले को टिकट नहीं दिया जाता, बशर्तें उसके हारने से भी फायदा हो.

- अगर किसी के जीतने की संभावनाएं कम हों, लेकिन उसका टिकट काटने से किसी खास समुदाय के वोट इधर-उधर होने की आशंका होती है तो भी उसे टिकट दे दिया जाता है.

- अगर कहीं वोटिंग का आधार ही धर्म या जाति हो तो भले ही उस इलाके के सांसद ने कैसे भी काम किया हो, वहां इसी हिसाब से उम्मीदवार चुना जाता है कि किस जाति का दबदबा अधिक है. हो सकता है कि मौजूदा सांसद को ही दोबारा टिकट मिल जाए या उसे हटाकर किसी दूसरे को टिकट दे दिया जाए.

- ये भी ध्यान दिया जाता है कि किसी का टिकट काटने से बाकी के उम्मीदवार बागी तेवर तो नहीं अपना लेंगे. ऐसा हो सकता है कि किसी सांसद का पार्टी के अन्य सांसदों पर प्रभाव हो.

उदित राज खुद को दलित नेता कहते हुए ये कहते हैं कि वह दलितों के लिए बहुत काम करते हैं. हालांकि, भाजपा को ये दिख गया था दिल्ली की उत्तर पश्चिम सीट पर उन्होंने कुछ खास काम नहीं किया है, जिसकी वजह से भाजपा के खिलाफ वोटिंग हो सकती थी. यही वजह है कि भाजपा ने यहां से हंसराज हंस को मैदान में उतार दिया है. वैसे यहां की जनता के सामने हंसराज हंस तो सिर्फ नाम है, असल चेहरा तो नरेंद्र मोदी का है, जिस पर लोग वोट देंगे. हां अगर उदित राज यहां होते तो उनसे नाराज लोग बेशक भाजपा के खिलाफ वोट दे देते. ठीक इसी तरह से भाजपा ने पंजाब के होशियारपुर से विजय सांपला का भी टिकट काट दिया है, क्योंकि इस बात उनकी जीत के चांस बहुत कम थे.

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