सोनिया गांधी की ‘डिनर डिप्लोमेसी’ के सियासी मायने
सोनिया गांधी ने डिनर का आयोजन किया. डिनर का एक बड़ा उद्देश्य था, उन लोगों को जोड़ना है जो भाजपा के खिलाफ हैं ताकि आने वाले समय में ये चुनाव में भाजपा को हरा सकें.
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जब से पूर्वोत्तर के तीन राज्यों त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड में भाजपा गठबंधन की सरकार बनी है तब से विपक्षी पार्टियों में बेचैनी होना स्वाभाविक ही थी. इसी बेचैनी के स्वरूप भाजपा का विजयी रथ रोकने के लिए करीब करीब सारे विपक्षी दल गैर भाजपा मोर्चा बनाने की कवायद में जुट गए और इस मुहिम का शुभारम्भ तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने किया. इसके बाद तो जैसे कांग्रेस को छोड़कर सारे विपक्षी नेतागण एक सुर में चंद्रशेखर राव की पहल का स्वागत करने में जुट गए हैं.
कहा जा रहा है कि सोनिया का डिनर एक बड़ी सियासी चाल है कांग्रेस का डिनर डिप्लोमेसी अहम क्यों
वैसे तो डिनर डिप्लोमेसी भारत की राजनीति में कोई नई बात नहीं है लेकिन तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव की भाजपा के खिलाफ तीसरे मोर्चे के विकल्प की छेड़ी तान से यह अहम बन गयी है. एक तरफ जहां गैर भाजपा पार्टियां एकजुट हो रही थीं वहीं कांग्रेस इसमें पिछड़ते नज़र आ रही थी. ऐसे में पूर्वोत्तर के तीनों राज्यों में हार से हताहत और के चंद्रशेखर राव द्वारा तीसरे मोर्चे के गठन के प्रयास से आहत कांग्रेस पार्टी को कुछ ना कुछ कदम उठाने ही थे. वैसे भी राजनीति के रण में सियासी समीकरण बनते-बिगड़ते रहते हैं, मगर वक्त के साथ राजनीतिक पार्टियों की बदलती रणनीति सबसे महत्वपूर्ण होती है. और हुआ वही. कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सभी विपक्षी दलों के नेताओं को 13 मार्च को रात्रिभोज पर आमंत्रित किया है. इस डिनर में सोनिया गांधी द्वारा उन दलों को खासतौर से बुलाया जा रहा है जो न तो यूपीए और न ही एनडीए का हिस्सा हैं
बताया जा रहा है कि सोनिया के इस डिनर में तेलुगू देशम पार्टी भी शामिल हो सकती है
डिनर में तेलुगू देशम पार्टी भी शामिल हो सकती है
वैसे तो तेलुगू देशम पार्टी भाजपा गठबंधन एनडीए में है. लेकिन काफी दिनों से आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग कर रही थी और अब उसने केंद्र सरकार से अलग होने का फैसला भी कर लिया है. ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि वो सोनिया द्वारा दिए जाने वाला रात्रि - भोज में शामिल हो सकती है और आने वाले दिनों में राजग से भी अपने को अलग कर लेगी.
शायद सोनिया गांधी को यह अहसास हो चुका है कि बगैर विपक्षी दलों के गठबंधन के भाजपा को हराना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. वैसे भी कांग्रेस अब मात्र तीन राज्यों - पंजाब, मिजोरम और पुडुचेरी में ही सिमट कर रह गयी है. और अब उसके पास कर्नाटक में बस करो या मरो की स्थिति है. इसके अलावा सोनिया गांधी को पता भी है कि अगर गैर -भाजपाई और गैर- कांग्रेसी किसी तीसरे मोर्चा का गठन होता है तो उसका सियासी नुकसान भी कांग्रेस को उठाना पड़ेगा. खासकर 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए ये नुक्सान बड़ा भारी साबित होगा.
शायद सोनिया गांधी इस डिनर डिप्लोमेसी के जरिए विपक्षी दलों के तीसरे मोर्चे के भरसक गठन के प्रयास को हाईजैक करने के साथ - साथ उनको यह संदेश देना चाहती हैं कि अखिल भारतीय स्तर पर कांग्रेस ही एकमात्र पार्टी है जो आगामी आम चुनावों में मोदी - शाह द्वारा चालित भाजपा को चुनौती दे सकती है.
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