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Updated: 21 अप्रिल, 2015 02:15 PM
राजदीप सरदेसाई
राजदीप सरदेसाई
  @rajdeep.sardesai.7
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राहुल गांधी वापस आ गए हैं - और इसीलिए मीडिया में बचकानी हरकतें होने लगी हैं. इस तरह के जो भी काम हम करते हैं उसमें (लेखक भी शामिल है) किसी के "भाषण की समीक्षा" भी शामिल है. कल मैंने राहुल को 10 में से 6 अंक दिए, और फिर सोचने लगा: क्या यह कोई इम्तिहान है जिसे हमारे नेताओं को हर दिन पास करना होगा, और क्या हम इसी तरह उन सांसदों की भी परीक्षा लेंगे जो संसद में इस पर बोलते हैं? ईमानदारी से कहें तो राजनीतिज्ञों की जांच-परख का एक ही तरीका है और वो है बैलट बॉक्स. बाकी चारों तरफ जो शोर है वह 24x7 मीडिया सर्कस का हिस्सा है. और ये वही सर्कस है जो पिछले 11 वर्षों से राहुल का पीछा कर रहा है.

मैं 2004 का चुनाव कवर कर रहा था - जब पहली बार वो मैदान में उतरे थे. यह पत्रकारिता के कॅरियर में मेरे सबसे तकलीफदेह अनुभवों में से एक था. अमेठी की धूल भरी गर्मी में हमने एक साए की तरह उनका पीछा किया और उनकी सुरक्षा में लगे डरावने एसपीजी के जवान लगातार हमें पीछे धकेलते रहे. पत्रकारों का धूप में तपना शायद राहुल को भी भा रहा होगा जब उनका कारवां आंखों से ओझल हो जाता रहा. हम तीन दिनों तक उनका पीछा करते रहे और नाम मात्र की उनकी साउंड बाइट ले पाए. साफ तौर पर देखें तो बस थोड़ा सा बदलाव हुआ है. अब भी हम उनके लैंड क्रूजर का यूं ही पीछा करते हैं. हमारा स्वाभिमान तार तार हो रहा होता है फिर भी हम राहुल के एक एक शब्द के लिए आपस में धक्का देते और खाते रहते हैं.

इस वक्त, मैं ये कहने का दुस्साहस करूंगा कि उनके काम की समीक्षा का वक्त आ गया है. 11 साल में, तीसरी बार हाथ हिलाते और मुस्कुराते हुए 23 मिनट के भाषण से उनके भविष्य का आकलन तो नहीं किया जा सकता. यही वक्त है जब हम मुद्दों को लेकर राहुल के नजरिए, सार्वजनिक बहसों में उनकी हिस्सेदारी और वोटर के साथ उनके रिश्ते को दूसरे नेताओं की तरह परखें. महज दिखावे के आधार पर उन्हें तौलना न तो उनके साथ न्यायसंगत है और न ही पत्रकार के तौर पर हमारे लिए. जब हम राजनीति में नरेंद्र मोदी का आकलन दो दशकों के उनके ट्रैक रिकॉर्ड से करते हैं तो हमें राहुल के लिए भी वही पैमाने अपनाने चाहिए. हां, हमें हमारी राजनीति में अधिक उत्साह की जरूरत है, लेकिन अचानक एक नेता की आक्रामक भाषा के बहकावे में नहीं आना चाहिए जो किसी रहस्यमय उपन्यास के किरदार जैसा हो. सच कहूं तो, हमें उनकी अनुपस्थिति के बारे में बात करनी चाहिए जब वो 56 दिन की छुट्टी पर चले गए. सवाल उठता है कि ऐसा करने के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण बजट का वक्त ही क्यों चुना. राजनीति के प्रभुत्व से प्रभावित होने के बजाय कठिन सवाल पूछने का वक्त आ गया है.

पुनश्च: कल रात मैंने 9 बजे के समाचार बुलेटिन में कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया का इंटरव्यू किया. प्रतिक्रिया देते वक्त वो आक्रामक और झगड़ालू नजर आए. इस बात ने मुझे उनसे यह सवाल पूछने के लिए प्रेरित किया कि क्या वे कांग्रेस के अगले नेता नहीं हो सकते हैं? उनकी प्रतिक्रिया ठेठ थी: हम सभी राहुल के नेतृत्व में काम करके खुश हैं. मुझे लगता है उनके पास कहने के लिए बहुत कम विकल्प हैं: कांग्रेस में सर्वोच्च पद प्रथम परिवार के लिए 'आरक्षित' है. बाकी हम नेताओं या पत्रकारों को बस कतार में रहकर अपनी बारी का इंतजार करना होगा.

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लेखक

राजदीप सरदेसाई राजदीप सरदेसाई @rajdeep.sardesai.7

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक

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