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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 02 फरवरी, 2023 08:53 PM
अशोक भाटिया
अशोक भाटिया
 
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जम्मू कश्मीर में इस साल गर्मियों में विधानसभा चुनाव होगा या चुनाव टला रहेगा? यह लाख टके का सवाल है, जिसका जवाब कायदे से चुनाव आयोग के पास होना चाहिए लेकिन ऐसा लग नहीं रहा है कि उसके पास जवाब है. चुनाव का फैसला आयोग को नहीं, बल्कि सरकार को करना है. इसकी वजह यह है कि सुरक्षा कारण बता कर सरकार चुनाव टाले रह सकती है. चुनाव से जुड़ी लगभग सारी तैयारियां पूरी हो गई हैं. सीटों के आरक्षण का काम हो गया है. अब मतदाता सूची के पुनरीक्षण का काम हो रहा है और चुनाव आयोग आयोग चाहे तो अगले कुछ दिन में किसी भी समय चुनाव की घोषणा कर सकता है. भाजपा के नेताओं ने भी कुछ समय पहले बहुत साफ संकेत दिए थे कि मई में विधानसभा का चुनाव हो जाएगा. पार्टी के महासचिव तरुण चुघ ने पिछले दिनों जम्मू कश्मीर में पार्टी के नेताओं को चुनाव के लिए तैयार रहने को कहा था.

वैसे देखा जाय तो जम्मू-कश्मीर में परिसीमन का काम भी पूरा हो चुका है. सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता वाले परिसीमन आयोग ने 5 मई 2022 को जम्मू और कश्मीर के लिए परिसीमन आदेश को अंतिम रूप दिया. इस आयोग में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा और जम्मू-कश्मीर के राज्य चुनाव आयुक्त के के शर्मा भी शामिल थे. 2011 की जनगणना के आधार पर यहां विधानसभा और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन का काम पूरा किया गया हैं. उसके बाद चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में संशोधन का काम भी पूरा कर लिया है. अब अगर केंद्र सरकार सुरक्षा हालात को लेकर संतुष्ट दिखेगी तो जल्द ही जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं. केंद्र सरकार सुरक्षित माहौल में चुनाव सुनिश्चित करने के लिए राज्य प्रशासन और स्थानीय नेताओं से लगातार फीडबैक ले रही है.

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इस बार जम्मू और कश्मीर में असेंबली चुनाव बदले-बदले माहौल में होगा. पूर्ण राज्य से केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद यहां कोई विधानसभा चुनाव नहीं हुआ है. परिसीमन के बाद जम्मू क्षेत्र और कश्मीर घाटी दोनों में ही सियासी समीकरण बदल गए हैं. आखिरी बार जम्मू-कश्मीर में 2014 में विधानसभा चुनाव हुआ था, जब लद्दाख भी उसका हिस्सा था. बीते 3 साल में जम्मू और कश्मीर का भौगौलिक नक्शा तो बदला ही है, निर्वाचन क्षेत्रों की तस्वीर भी बदल गई है. सत्ता के सारे समीकरण इस बार नए होंगे. अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के हटने के बाद से ये पहला विधानसभा चुनाव होगा. 

भाजपा  के साथ ही पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, और कांग्रेस भी जम्मू-कश्मीर के सियासी दंगल को जीतने के लिए तैयारियों में जुटी हैं. सभी दलों की सक्रियता काफी बढ़ गई है. इस बार यहां पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस से अलग हुए गुलाब नबी आजाद की डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी पहले से मौजूद सूरमाओं का गणित बिगाड़ सकती है. पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस जल्द चुनाव चाहती है. ये तीनों ही दल भाजपा पर चुनाव में जानबूझकर देरी करने का आरोप लगाते रहे हैं. वहीं भाजपा कहते रही है कि सुरक्षा हालात अनुकूल होने पर ही चुनाव राज्य की बेहतरी के लिए सही होगा. 

भाजपा के लिए आगामी जम्मू-कश्मीर विधानसभा का चुनाव जीतना साख का सवाल होगा. भाजपा  की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर का नक्शा बदल डाला था. आगामी चुनाव नतीजों को सियासी बहस में अनुच्छेद 370 हटाने और लद्दाख को अलग कर दो केंद्र शासित प्रदेश बनाने के फैसले पर जम्मू-कश्मीर का जनादेश माना जाएगा. इस लिहाज से भाजपा चाहेगी कि जम्मू-कश्मीर की सत्ता को वो हासिल करे. 

गौरतलब है कि भाजपा  पहली पार 2015 में यहां की सरकार में हिस्सेदार बनी थी. 2014 के विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा वोट हासिल कर भाजपा  ने दिखा दिया था कि वो अब जम्मू-कश्मीर की सियासत में दमदार खिलाड़ी बन चुकी है. 2008 के चुनाव में भाजपा को 12.45% वोट शेयर के साथ 11 सीटें मिली थी. इसके अगले चुनाव में भाजपा  का जनाधार काफी बढ़ा. वो 10 फीसदी वोट शेयर बढ़ाने में कामयाब हुई. 2002 में भाजपा महज एक सीट जीत पाई थी. वहीं 1996 में भाजपा  को 8 सीटें मिली थी. पहली बार 1987 के चुनाव में भाजपा  यहां 2 सीट जीतने में कामयाब हुई थी. भाजपा की पकड़ जम्मू क्षेत्र में अच्छी है, लेकिन उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती कश्मीर घाटी में जनाधार बढ़ाने की है. पिछली बार यानी 2014 के चुनाव में भाजपा को कश्मीर घाटी से एक भी सीट नहीं मिली थी. भाजपा जम्मू क्षेत्र की 37 में से 25 सीटें जीतने में कामयाब रही थी.   

जम्मू-कश्मीर की राजनीति में हमेशा से ही पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस बड़ी ताकत रही है. 2014 के पहले इन्हीं तीनों दलों का दबदबा रहा था. ये तीनों ही दल अकेले बहुमत नहीं मिलने पर एक-दूसरे के साथ मिलकर सरकार बनाते रहे हैं. 2008 में हुए चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस और  कांग्रेस ने मिलकर सरकार बनाई और एनसी नेता उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने. वहीं 2002 में पीडीपी और कांग्रेस ने मिलकर सरकार बनाई और पीडीपी नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद और कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद तीन-तीन साल के लिए मुख्यमंत्री रहने पर सहमत हुए. 1996 में स्पष्ट बहुमत के साथ एनसी नेता फारूख़ अब्दुल्ला ने सरकार बनाई. 

संभावना जताई जा रही थी कि भाजपा को रोकने के लिए आगामी चुनाव में पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस साथ मिलकर चुनाव लड़ सकते हैं. हालांकि अगस्त 2022 में ही नेशनल कॉन्फ्रेंस ने साफ कर दिया है कि वो चुनाव में पीडीपी के साथ कोई गठबंधन नहीं करने वाली है. ये भी सच्चाई है कि मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद कश्मीर के लोगों में पीडीपी की पैठ कम हुई है. पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती एवं एनसी नेता उमर अब्दुल्ला भी ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुए एवं कांग्रेस के पक्ष में कसीदे भी  पढ़े .

जम्मू-कश्मीर में 1972 में आखिरी बार कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत हासिल हुआ था और उसने अकेले दम पर यहां सरकार बनाई थी. ऐसे 2002 में बनी सरकार में वो पीडीपी के साथ हिस्सेदार थी. जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस जुलाई 2008 से सत्ता से बाहर है. उसके लिए इस बार मुश्किलें और भी बढ़ गई हैं. राज्य में पार्टी के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद अब कांग्रेस से अलग होकर खुद की पार्टी के जरिए जम्मू-कश्मीर की सियासत में पकड़ बनाना चाह रहे हैं. उनके पार्टी से अलग होने से इस बार कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है. हालांकि कांग्रेस को राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से फायदा मिलने की आस है.

ये यात्रा जनवरी में ही जम्मू-कश्मीर पहुंचेगी. यात्रा श्रीनगर में ही खत्म होगी. कांग्रेस नेता राहुल गांधी इस यात्रा के दौरान 8 दिन यहां बिताएंगे. अब देखना होगा कि इस यात्रा से कांग्रेस के पक्ष में कितना माहौल बन पाता है. कांग्रेस के लिए खोई सियासी जमीन को दोबारा हासिल करना आसान नहीं होगा. अगर राहुल गांधी इस यात्रा के जरिए जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस,एनसी और पीडीपी को मिलाकर नया गठबंधन बनाने की संभावना को जगा पाते हैं, तो फिर इससे भाजपा  की मुश्किलें बढ़ सकती हैं.  

जम्मू-कश्मीर में आखिरी बार विधानसभा चुनाव 2014 में 25 नवंबर से 20 दिसंबर के बीच 5 फेज में हुआ था. नतीजों में किसी भी पार्टी को बहुमत हासिल नहीं हुआ था. मुफ्ती मोहम्मद सईद की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी 28 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी. उसे 22.7% वोट मिले. भाजपा  सबसे ज्यादा वोट (23%) पाने के बावजूद 25 सीट ही जीत पाई. वहीं उस वक्त की सत्ताधारी पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) महज़ 13 सीट (20.8% वोट) ही जीत पाई. एनसी के साथ सरकार में शामिल कांग्रेस सिर्फ 12 सीट (18% वोट) ही जीत पाई. हालांकि चुनाव के पहले कांग्रेस ने फारूख अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस से नाता तोड़कर सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे.  

चुनाव नतीजों के बाद सरकार बनाने को लेकर नेशनल कॉन्फ्रेंस ने भाजपा के साथ सरकार बनाने की कोशिश की, लेकिन दोनों पार्टियों के बीच बात नहीं बनी. इसके बाद नेशनल कांफ्रेस ने सरकार बनाने के लिए बिना शर्त पीडीपी को समर्थन देने का प्रस्ताव दिया. पीडीपी प्रमुख मुफ्ती मोहम्मद सईद ने इसे ठुकरा दिया. करीब दो महीने की बातचीत के बाद जम्मू-कश्मीर में एक नए गठबंधन का उदय हुआ. न्यूनतम साझा कार्यक्रम के आधार पर पीडीपी और भाजपा ने मिलकर सरकार बनाई. एक मार्च 2015 को पीडीपी नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री और भाजपा  नेता निर्मल कुमार सिंह उप मुख्यमंत्री बनें. शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए थे. ये पहली बार था जब जम्मू-कश्मीर में भाजपा  सरकार का हिस्सा बनी थी. 

जनवरी 2016 में पीडीपी नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद का निधन हो गया. इसके बाद भाजपा-पीडीपी गठबंधन में दरार आ गई और वहां गवर्नर रूल लगा दिया गया. हालांकि बाद में मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी और पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलीं. उसके बाद वे अप्रैल 2016 में जम्मू-कश्मीर की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं. जून 2018 आते-आते तक पीडीपी और भाजपा  के बीच कई मुद्दों पर तनातनी बढ़ते गई. हिजबुल मुजाहिदीन आतंकी बुरहान वाणी को सुरक्षा बलों ने 8 जुलाई 2016 को मार गिराया था. उसके बाद घाटी में तनाव बढ़ गया. मई 2018 में महबूबा मुफ्ती ने केंद्र सरकार से घाटी में रमजान के दौरान सीज़फायर की घोषणा करने की मांग की. हालांकि केंद्र सरकार ने 17 जून को हालात को देखते हुए एकतरफा सीज़फायर  से इंकार कर दिया. इसके दो ही दिन बाद भाजपा ने पीडीपी से नाता तोड़ लिया और जम्मू-कश्मीर में गवर्नर रूल लगा दिया गया. 20 दिसंबर 2018 से वहां राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. 31 अक्टूबर 2019 को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बन गए.  

अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर पर नरेंद्र मोदी सरकार ने ऐतिहासिक फैसला लिया. राष्ट्रपति के आदेश से जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाला अनुच्छेद 370 हटा दिया गया. इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पांच अगस्त 2019 को राज्य सभा में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019 पेश किया. इसी दिन ये विधेयक पारित हो गया. इसके अगले दिन यानी 6 अगस्त को लोक सभा से ये विधेयक पारित हुआ. जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के जरिए जम्मू-कश्मीर राज्य का बंटवारा कर दो केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख बनाने का प्रावधान किया गया. जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 35ए को भी हटा दिया गया. राष्‍ट्रपति ने 35ए हटाने की मंजूरी दी. जम्मू कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 35ए राज्य के लोगों की पहचान और उनके विशेष अधिकारों से संबंधित था. इसके खत्म होने से राज्य के स्थायी निवासियों की दोहरी नागरिकता भी खत्म हो गई.

31 अक्टूबर 2019 से देश का नक्शा बदल गया. इस दिन से ही भारत के नक्शे पर दो नए केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख अस्तित्व में आ गए. जम्मू-कश्मीर विधानसभा के साथ केंद्र शासित प्रदेश बना. वहीं लद्दाख बिना विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश बना. जम्मू और कश्मीर का अपना झंडा और अपना संविधान की व्यवस्था खत्म हो गई. सूबे से दोहरी नागरिकता खत्म हो गई. संसद से पारित कानून अब जम्मू-कश्मीर में सीधे लागू होने लगे. जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल पांच साल कर दिया गया. जो पहले छह साल का था. पुनर्गठन के बाद जम्मू और कश्मीर की विधान परिषद समाप्त हो गई. जम्मू-कश्मीर को लोक सभा की पांच सीटें आवंटित की गई.  वहीं राज्य सभा की चार सीटें जम्मू-कश्मीर  के हिस्से आई. 

नवंबर 2022 में जम्मू-कश्मीर के लिए जारी संशोधित मतदाता सूची के मुताबिक यहां 7 लाख 72 हजार 872 वोटर बढ़े हैं. वोटर लिस्ट में जोड़ने के लिए 11 लाख से ज्यादा आवेदन आए थे. सूची से कुछ मतदाताओं के नाम हटाए भी गए हैं. मसौदा सूची के मुकाबले पंजीकृत मतदाताओं में 10.19% का इजाफा हुआ है. जम्मू-कश्मीर के इतिहास में ये पहली बार हुआ है. हर पार्टियों की नजर इन नए मतदाताओं पर होगी. ये इतनी बड़ी संख्या है, जो किसी का खेल बना सकते हैं, तो किसी का बिगाड़ भी सकते हैं.

वैसे जानकारों का कहना है कि भाजपा को बहुत यकीन था कि डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी कांग्रेस को इतना नुकसान कर देगी कि कांग्रेस अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाएगी. यह भी लग रहा था कि कश्मीर में पूरी तरह से आजाद पर निर्भर कांग्रेस की यात्रा को राज्य में बहुत अच्छा रिस्पांस नहीं मिलेगा और यात्रा फेल हो जाएगी. लेकिन उलटा हुआ. आजाद की पार्टी से जुड़े कांग्रेस के तमाम बड़े नेता कांग्रेस में वापस लौट गए. इसके बाद राहुल की यात्रा जब जम्मू कश्मीर पहुंची तो पूरे रास्ते यात्रा का लोगों ने स्वागत किया. यात्रा के समापन कार्यक्रम में भारी बर्फबारी के बावजूद लोग राहुल गांधी का भाषण सुनने पहुंचे. राहुल ने भी मौके के अनुकूल बहुत मार्मिक भाषण दिया.

उन्होंने कश्मीरी लोगों, सुरक्षा बलों और सेना के जवानों व उनके परिवारों से अपने को जोड़ा. उन्होंने कश्मीर की अपनी यात्रा को अपने घर की यात्रा बताया और याद दिलाया कि उनके पूर्वज कश्मीर से निकल कर ही इलाहाबाद गए थे. सो, एक तरफ कांग्रेस की जड़ मजबूत हुई है और उसे लोगों का समर्थन मिला है तो दूसरी ओर राज्य की प्रादेशिक पार्टियों का समर्थन भी उसको मिला है. ऐसे में अगर विधानसभा चुनाव की घोषणा होती है तो जम्मू क्षेत्र में भी भाजपा के लिए लड़ाई बहुत आसान नहीं रह जाएगी. अगर कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी तीनों मिल कर लड़ते हैं और साथ में सीपीआई भी शामिल रहती है तो गठबंधन का पलड़ा भारी रहेगा. जबकि भाजपा को हर हाल में चुनाव जीतना है और हिंदू मुख्यमंत्री बनाना है. अगर उसे लगता है कि ऐसा नहीं हो पाएगा तो तय मानें कि चुनाव टला रहेगा.

लेखक

अशोक भाटिया अशोक भाटिया

अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक एवं टिप्पणीकार पत्रकारिता में वसई गौरव अवार्ड – 2023 से सम्मानित, वसई पूर्व - 401208 ( मुंबई ) फोन/ wats app 9221232130 E mail – vasairoad.yatrisangh@gmail।com

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