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Updated: 08 मार्च, 2016 07:24 PM
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एक छोटे से द्वीप ने दुनिया की तीन परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों को कोर्ट में ला खड़ा किया है. इन तीनों देशों पर परमाणु हथियारों की दौड़ पर रोक न लगाने का आरोप लगा है. इस द्वीप ने इन तीनों देशों के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र संघ की अंतर्राष्ट्रीय अदालत में केस दायर किया है. इन तीनों देशों का नाम है भारत, पाकिस्तान और ब्रिटेन और इस द्वीप का नाम है मार्शल द्वीप. आइए जानें आखिर क्यों भारत, पाकिस्तान और ब्रिटेन को कोर्ट में घसीट रहा है मार्शल द्वीप.

क्या है मार्शल द्वीप का इतिहासः

प्रशांत महासागर में स्थित मार्शल ज्वालामुखी द्वीपों और प्रवाल द्वीपों की एक विशाल श्रृंखला है. यह एक संप्रभु देश है और 1991 से संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य है. मार्शल द्वीप का इतिहास इस विवाद और इस केस की वजह है. इस द्वीप को सबसे पहले 15वीं सदी में खोजा गया था. इसका नाम ब्रिटिश खोजी जॉन मार्शल के नाम पर पड़ा. इसके बाद यहां स्पेनिश से लेकर अंग्रेज तक आते रहे पहले विश्व युद्ध में इसे जापान ने जीता लेकिन दूसरे विश्व युद्ध में इस पर अमेरिका ने अपना कब्जा जमा लिया और यहीं से शुरू हुई इस द्वीप के साथ जुड़ी एक भयावह दास्तां.

अमेरिका ने इस द्वीप को परमाणु बम परीक्षण का अड्डा बना लिया. 1946 से 1958 के बीच मार्शल द्वीप पर अमेरिका ने करीब 67 परमाणु परीक्षण किए. इतना ही नहीं 1954 में अमेरिका ने यहां हाइड्रोजन बम का भी परीक्षण किया, जोकि हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम से हजार गुना ज्यादा शक्तिशाली था. मार्शल द्वीप को अमेरिका से 1979 में आजादी मिली और 1986 में यह स्वतंत्र देश बना. 1991 में इसे संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता मिली. 2013 में आई वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक इसकी जनसंख्या 52,634 है. हालांकि मार्शल द्वीप अब एक स्वंतत्र देश है लेकिन अभी भी इसके डिफेंस पर अमेरिका का नियंत्रण है.

आखिर क्यों मार्शल द्वीप ने किया केसः

अमेरिका द्वारा इतनी बड़ी संख्या में किए गए परमाणु परीक्षणों ने मार्शल द्वीप को खतरनाक रेडिएशन का घर बना दिया. जिसके परिणामस्वरूप यहां के कई नागरिकों की मौत हुई, बच्चे विकलांगता के साथ पैदा हुए और हजारों लोगों कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी की चपेट में आ गए.

परमाणु परीक्षणों के कारण अपने देश की दुर्दशा को देखते हुए ही 2014 में मार्शल द्वीप ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर करने वाले अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन के अलावा इस संधि पर हस्ताक्षर न करने वाले चार देशों भारत, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया और इजराइल सहित कुल नौ देशों के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में केस दायर किया. मार्शल द्वीप ने इन देशों द्वारा परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) की संधियों को न मानने का आरोप लगाया था.

इस संधि के तहत परमाणु शक्ति विहीन देशों ने परमाणु हथियार हासिल करने की होड़ न शुरू करने और परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों द्वारा इसके बदले में और परमाणु हथियार न बनाकर धीरे-धीरे परमाणु हथियारों से मुक्ति की दिशा में बढ़ने का वायदा किया था. लेकिन मार्शल द्वीप का कहना है कि एनपीटी पर हस्ताक्षर के बावजूद इन देशों द्वारा इन संधियों का पालन नहीं किया गया है. हालांकि नौ देशों में से सिर्फ तीन देशों, भारत, पाकिस्तान और ब्रिटेन के ही मामले की सुनवाई अभी भी इसलिए चल रही है क्योंकि इन्हीं तीन देशों ने ही अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में लाए गए इस केस के प्रति जवाब देने की प्रतिबद्धता दिखाई थी.

इस द्वीप पर 40-50 के दशक में किस कदर परमाणु परीक्षण किए गए इसका अंदाजा यहां स्थित बिकनी प्रवाल द्वीप से लगाया जा सकता है. अमेरिका ने जुलाई 1946 में यहां 23 परमाणु धमाके किए थे. बिकनी प्रवालद्वीप पर हुए पहले धमाके के 5 दिन बाद ही लुइस रियर्ड ने एक स्विमसूट डिजाइन पेश किया जिसे बिकनी के नाम से जाना गया. बिकनी के डिजाइन के जरिए परमाणु राष्ट्रों से भी इस बिकनी की तरह ही अपने परमाणु हथियारों में भी कटौती करने की अपील की गई थी. अमेरिका द्वारा किए गए इतने परमाणु परीक्षणों ने बिकनी प्रवाल द्वीप पर रह रहे हजारों लोगों को विस्थापित कर दिया था.

ये घटना दिखाती है कि ताकतवर देशों द्वारा परमाणु हथियारों की अंधी दौड़ छोटे देशों के लिए कितनी घातक हो सकती है. सवाल तो ये है कि मार्शल द्वीप की ये कोशिश परमाणु हथियारों की रेस में दौड़ रहे इन बेलगाम देशों पर कितनी लगाम कस पाएगी?

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