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Updated: 21 अक्टूबर, 2019 06:21 PM
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महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनाव (Maharashtra and Haryana assembly elections) हो रहे हैं. जिससे भी पूछो वो यही कहेगा कि भाजपा ही जीतेगी. यानी भाजपा का जीतना तय ही समझिए. लेकिन ऐसा नहीं है कि भाजपा चिंता मुक्त हो गई है. भले ही महाराष्ट्र और हरियाणा में भाजपा बेहद मजबूत स्थिति में है, लेकिन फिर भी ये दोनों ही राज्यों के चुनाव कई मामलों में उसके लिए बेहद अहम हैं. इसकी एक बड़ी वजह ये है कि ये चुनाव अब तक के चुनावों से कुछ अलग है. जैसे इसमें विपक्ष दूर-दूर तक कहीं दिख नहीं रहा और ऊपर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवारों के नाम भी पहले से ही जाहिर कर दिए गए हैं. दरअसल, मोदी सरकार अब तक अधिकतर चुनावों में ये रणनीति अपनाती थी कि वह मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित ही नहीं करती थी और पूरा चुनाव पीएम मोदी के चेहरे पर लड़ा जाता था. ऐसी एक-दो नहीं, बल्कि 5 वजहें हैं, जिसके चलते महाराष्ट्र और हरियाणा का चुनाव भाजपा के बहुत ही अहम है.

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1- अपरंपरागत मुख्यमंत्रियों की असली परीक्षा होगी

बात भले ही देवेंद्र फडणवीस की हो या फिर मनोहर लाल खट्टर की, 2014 के विधानसभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए इनके नामों की घोषणा होना हर किसी के लिए एक सरप्राइज था. दोनों का ही राजनीति में ऐसा दबदबा नहीं था, जिसे देखते हुए ये लगे कि इन्हें मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है. हालांकि, भाजपा ने इन्हें मुख्यमंत्री बनाया और लोगों ने उन्हें ये सोचते हुए स्वीकार कर लिया कि नरेंद्र मोदी तो हैं ही. लेकिन इस बार बात कुछ अलग है. इस बार पहले से ही तय है कि भाजपा जीतती है तो फिर से यही लोग मुख्यमंत्री बनेंगे. ऐसे में दोनों के लिए ही ये विधानसभा चुनाव किसी परीक्षा की घड़ी से कम नहीं हैं. पिछली बार लोगों ने मोदी के चेहरे पर वोट दिया था, इस बार मोदी के साथ-साथ राज्य के मुख्यमंत्री के चेहरे भी सामने दिख रहे हैं, जो बेशक सबको पसंद नहीं हैं. भाजपा को भी डर है कि कहीं मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसी हाल ना हो जाए. मोदी लहर तो तब भी थी, अब भी है, लेकिन 2014 में सिर्फ मोदी थे, अब सबको पता है कि फडणवीस या खट्टर को ही सीएम बनाया जाएगा.

2- धारा 370 और तीन तलाक खत्म होने के बाद पहला चुनाव

पहले बात धारा 370 की. मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव में वादा किया था कि अगर भाजपा जीत जाती है तो वह जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटा देगी, जिसके चलते राज्य को विशेषाधिकार मिला हुआ है. मोदी सरकार ने अपना वो वादा तो पूरा कर दिया है, लेकिन इसे लेकर लोगों की राय अलग-अलग दिख रही है. राजनीति में भाजपा समर्थक इस कदम को एकजुट करने वाला बता रहे हैं, जबकि विरोधी इसे बांटने वाला फैसला बता रहे हैं. सोशल मीडिया पर तो इस फैसले का इस्तेमाल कर के सांप्रदायिक फायदे भी उठाए जा रहे हैं और हिंदू-मुस्लिम के बीच खाई बनाने की कोशिशें हो रही हैं. ऐसा नहीं है कि इस फैसले पर दोराय सिर्फ सियासी गलियारे तक सीमित है, बल्कि आमजन भी इसे लेकर दो धड़ों में बंटे हुए दिखते हैं. महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपनी इस उपलब्धि को जोर-शोर से प्रचारित किया है, लेकिन ये देखना दिलचस्प होगा कि जनता इसे कैसे लेती है और सरकार का ये कदम वोटों में बदल पाता है या नहीं.

वहीं दूसरी ओर, मोदी सरकार ने तीन तलाक खत्म कर के भी मुस्लिम महिलाओं का दिल जीता है. 2014 से पहले तक मुस्लिम समुदाय में भाजपा की लोकप्रियता बहुत ही कम थी, लेकिन 5 सालों में मोदी सरकार ने मुस्लिम समुदाय से जुड़ने में काफी हद तक सफलता पाई. पीएम मोदी समेत भाजपा के सभी नेता तीन तलाक के खिलाफ बोलते रहे. मुस्लिम महिलाओं को ट्रिपल तलाक खत्म होने से काफी राहत मिली. अब कम से कम मुस्लिम महिलाओं के बीच तो भाजपा लोकप्रिय हो ही गई है, लेकिन ये देखना होगा कि ट्रिपल तलाक के खिलाफ कानून बनाए जाने के बाद होने वाला महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव में लोग मोदी सरकार को कितने नंबर देते हैं.

3- लोकसभा चुनाव के बाद पहला टेस्ट

लोकसभा चुनाव में लोगों ने भाजपा या कांग्रेस नहीं देखी, बल्कि पीएम मोदी का चेहरा देखा. लोगों को ये सोचकर वोट डालना था कि पीएम मोदी को वापस सत्ता में लाना है या कुर्सी से उतारना है. पीएम मोदी का प्रचंड बहुमत से जीतना ये साफ कर गया कि लोग एक बार फिर पीएम मोदी को ही केंद्र में देखना चाहते हैं. लेकिन हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में लोग पीएम मोदी के लिए अपना लगाव तो दिखाएंगे, लेकिन ये भी याद रखेंगे कि उनके वोट से राज्य की सत्ता पर कौन काबिज होना वाला है. लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी प्रचंड बहुमत से जीते थे, लेकिन ये चुनाव इस बात का टेस्ट होंगे कि अभी तक लोग भाजपा को ही सबसे अच्छा मानते हैं या फिर उनका मन बदल गया है. इतना ही नहीं, ये चुनाव विरोधी पार्टियों के लिए भी एक टेस्ट है कि लोकसभा चुनाव के बाद से अब तक उन्होंने खुद को बेहतर बनाया है या फिर उनकी हालत अभी भी पहले जैसी ही है.

4- आर्थिक मंदी के बीच पहला मतदान

देश-विदेश की सभी रेटिंग एजेंसियों ने भारत में आर्थिक मंदी होने की वजह से ग्रोट रेट घटा दी है. बेरोजगारी काफी अधिक है, मंदी है, ऊपर से जीडीपी ग्रोथ रेट घटकर 5 फीसदी पर आ गई है. विरोधी पार्टियों इन सबको मोदी सरकार के खिलाफ हथियार बनाकर इस्तेमाल कर रही हैं और इसी बीच हरियाणा और महाराष्ट्र में चुनाव हुए हैं. मोदी सरकार की तारीफों के पुल बांधने वालो की कमी नहीं है, लेकिन एक बड़ा समूह ऐसे लोगों का भी है जो मोदी सरकार को घेरता रहता है. अब आर्थिक मंदी के बीच ही दो राज्यों में चुनाव हो रहे हैं और जनता के पास अपना गुस्सा या खुशी जाहिर करना का हथियार होता है वोट. देखना दिलचस्प होगा कि जनता अपनी खुशी जाहिर करती है या गुस्सा दिखाती है.

5- बिना विपक्ष के चुनाव में एक अलग किस्म की चुनौती

बात भले ही महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की हो या फिर हरियाणा विधानसभा चुनाव की. एक बात तो लगभग तय है कि भाजपा जीतेगी. ऐसे में बहुत से लोग ये सोच सकते हैं कि भाजपा को चिंतामुक्त रहना चाहिए, लेकिन ऐसी स्थिति में भी भाजपा के सामने एक अलग किस्म की चुनौती है. चुनौती ये कि जीत का अंतर कितना बड़ा होगा? दो राज्यों के विधानसभा चुनाव, जहां विपक्ष कैंपेन तक करता नहीं दिख रहा है, अगर वहां भाजपा चंद सीटों से जीतती है, तो बेशक ये जीत भाजपा की हार जैसी होगी. भाजपा के सामने इन दोनों ही राज्यों में विपक्ष लगभग ना के बराबर है. मजबूती से कोई भाजपा के खिलाफ लड़ता नहीं दिख रहा है, ना ही ऐसे वादों की कोई झड़ी दिख रही है, जैसे हर चुनाव में सभी पार्टियां जरूर करती हैं. ऐसे में लोगों की भाजपा से उम्मीदें और अधिक बढ़ गई हैं और इसी के साथ भाजपा की चुनौती भी बढ़ गई है. दोनों ही राज्यों में भाजपा को प्रचंड बहुमत से जीतना, तभी नाक बचेगी.

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