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Updated: 22 जुलाई, 2017 06:20 PM
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हाल के दिनों में देशद्रोह के मामलों पर चर्चा हो तो सबसे पहले कन्हैया कुमार का ही चेहरा सामने आता है. फरवरी 2016 में कन्हैया कुमार को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेजा गया. तब जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष रहे कन्हैया पर संसद हमले के दोषी अफजल गुरु की बरसी पर छात्रों की रैली में शामिल होने का आरोप लगा था.

बिहार के रहने वाले कन्हैया कुमार के खिलाफ मामला दिल्ली में होने के कारण देशद्रोह का केस दिल्ली पुलिस ने दर्ज किया. हैरानी की बात तो ये है कि देशद्रोह के मुकदमों के मामले में बिहार नंबर 1 आया है. सबसे ज्यादा ताज्जुब की बात तो ये है कि इस मामले में आखिरी पायदान पर जम्मू कश्मीर है.

देशद्रोह के मामले

नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के अनुसार पिछले तीन साल में देशद्रोह के आरोप में कुल 165 गिरफ्तारियां हुईं. आंकड़ों के हिसाब से देखें तो इतने बड़े देश में इसे मामूली ही कहा जाएगा. हैरानी तब होती है जब इसे डिटेल में देखते हैं.

2016 में दिल्ली में देशद्रोह के आरोप में चार लोग गिरफ्तार किये गये. यानी कन्हैया के अलावा राजधानी में तीन और गिरफ्तारियां हुईं. इसी तरह पंजाब में 10, हरियाणा में 15 और झारखंड में 18 लोग गिरफ्तार किये गये. इन्हें भी किसी भी रूप में कोई असामान्य बात नजर नहीं आती.

security forcesदेशद्रोह के मामले ऐसे कैसे?

ब्यूरो के मुताबिक बिहार में 2014 से 2016 के बीच तीन साल में 68 लोग गिरफ्तार किये गये. दूसरी तरफ, जम्मू-कश्मीर में जहां से अक्सर पाकिस्तान समर्थक नारे लगाने और ऐसी ही खबरें आती रहती हैं वहां सिर्फ एक केस दर्ज हुआ. ये केस भी 2015 में रजिस्टर हुआ, यानी 2014 और 2016 में कोई केस नहीं दर्ज हुआ.

क्या है पेंच?

कन्हैया के मामले में दिल्ली पुलिस की कितनी फजीहत हुई थी, सबने देखा ही. तब केंद्र की मोदी सरकार भी विपक्ष के निशाने पर रही. विपक्ष का आरोप था कि कन्हैया के मामले में दिल्ली पुलिस ने कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी दिखाई. तब के दिल्ली पुलिस कमिश्नर भी ऐसी वजहों से खासे चर्चित रहे. बिहार में महागठबंधन वाली नीतीश कुमार की सरकार है और जम्मू-कश्मीर में भी बीजेपी-पीडीपी गठबंधन की महबूबा मुफ्ती की सरकार है. आखिर क्या पेंच है कि जम्मू कश्मीर में तीन साल में सिर्फ एक केस दर्ज होता है और बिहार में 68 लोग पकड़े जाते हैं?

झारखंड में नक्सल समस्या है और हरियाणा के मामले में बताया जा रहा है कि जाट आंदोलनकारियों के खिलाफ लगा था.

बिहार में जो मामले दर्ज किये गये हैं वो आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस की गठबंधन सरकार के शासन [2014 और 2015] के हैं. खास बात ये है कि इन मामलों में 53 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर हुई और सिर्फ दो को सजा हो पाई.

लेकिन देशद्रोह के मामले में जम्मू कश्मीर का आखिरी पायदान पर होना सोचने को मजबूर करता है. हो सकता है वहां AFPSA लागू होने के कारण ऐसे केसों की कैटेगरी बदल जाती हो, लेकिन सिर्फ एक केस होना शायद ही किसी के गले उतर पाये.

कहीं ऐसा तो नहीं कि बिहार पुलिस भी दिल्ली पुलिस जैसी दिलचस्पी दिखा रही हो - और ऐसे मामलों के जरिये विरोधियों को निशाना बनाया जा रहा हो. वैसे दुनिया भर में देखा जाता है कि विरोधियों को कुचलने के लिए सरकारें ऐसे कड़े कानूनों का दुरुपयोग करती हैं. वैसे देशद्रोह के मामले में 53 में से सिर्फ दो को सजा हो पाना भी कुछ ऐसा ही इशारा करता है. हार्दिक पटेल को तो देशद्रोह के मामले में न सिर्फ जेल जाना पड़ा बल्कि गुजरात से बाहर लंबा वक्त भी गुजारना पड़ा.

कहीं न कहीं इन सभी मामलों में कोई न कोई लोचा जरूर है - और ये गहरे शोध का विषय हो सकता है. सिर्फ कानून के छात्रों के लिए ही नहीं, बाकियों के लिए भी.

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