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Updated: 21 दिसम्बर, 2015 04:53 PM
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'सरहदों पर बहुत तनाव है क्या,

कुछ पता तो करो चुनाव है क्या'

प्रसिद्ध शायर राहत इन्दौरी साहब की ये लाइनें शायद हमेशा ही इस देश के लिए सटीक बनी रहेंगी. ज्यादा दिन नहीं हुए जब बिहार चुनावों के दौरान कैसे धर्म विशेष के प्रति बढ़ती असहिष्णुता के मुद्दे ने पूरे देश को अपनी गिरफ्त में ले लिया था. चुनाव खत्म होते ही असहिष्णुता अचानक कहां काफूर हो गई पता ही नहीं चला.

इस देश में न तो चुनाव खत्म होंगे और न ही शायद तनाव क्योंकि यहां धर्म से बड़ा कोई नशा नहीं है और राजनीति करने वालों को अच्छी तरह पता है कि इसका अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कैसे करना है. शायद यही वजह है कि अब जबकि एक और सूबे में चुनाव की आहट आने लगी है तो वहां तनाव की आशंका भी बढ़ने लगी है. भारतीय राजनीति की दिशा और दशा बदलकर रख देने वाले अयोध्या में एक बार फिर से राम मंदिर निर्माण मुद्दे को लेकर सरगर्मियां बढ़ रही हैं. मंदिर निर्माण के अपने पुराने संकल्प को लेकर विश्व हिंदू परिषद अब वहां पत्थर लेकर पहुंच रहा है. इनकी मंशा 2017 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनावों में बीजेपी को फायदा पहुंचाने की है. लेकिन बिहार चुनावों में बीजेपी की करारी हार को देखते हुए कहीं ये दांव बीजेपी को उल्टा न पड़ जाए.

तो बीजेपी हारेगी यूपी के चुनाव?

ये सारी कयावद यूपी में 2017 में होने वाले विधानसभा चुनावों के करीब आने पर वोटों के धुव्रीकरण करने की कोशिशों का नतीजा है. बीजेपी लंबे समय से यूपी की सत्ता से बाहर रही है और अब हिंदूवादी संगठन केंद्र के बाद राज्य में भी बीजेपी को सत्ता वापस दिलाने की कोशिशों में जुट गए हैं. लोकसभा चुनावों में तो काशी ने ही बीजेपी की नैय्या पार लगा दी थी लेकिन अब जब मामला राज्य स्तर के चुनावों का है तो अयोध्या से ज्यादा वोट खींचने वाला मुद्दा शायद ही कोई और हो. लेकिन बिहार चुनावों में बीफ बैन जैसे मुद्दों को भुनाने की कोशिश पार्टी को काफी महंगी पड़ी थी और उसे जबर्दस्त शिकस्त झेलनी पड़ी थी. मुस्लिमों के साथ-साथ हिंदू वोटरों ने भी बीजेपी से किनारा कर लिया था. अब अगर बीजेपी राम मंदिर का मुद्दा उछालकर यूपी चुनाव जीतने की कोशिश करेगी तो उसका हश्र बिहार जैसा ही हो सकता है क्योंकि वोटर बीजेपी के इस हिंदुत्व कार्ड के सच को पहले ही अच्छी तरह समझ चुके हैं.

रामलला की चिंता या चुनावों की?

इस सवाल का जवाब तो अयोध्या में रहने वाला हर नागरिक आसानी से दे देगा. यहां के लोगों को अच्छी तरह पता है कि कैसे राजनीतिक पार्टियों ने इस मुद्दे का इस्तेमाल चुनाव जीतने के लिए किया और सत्ता के शिखर तक पहुंचीं हैं. हाल के वर्षों में खासकर बीजेपी के केंद्र की सत्ता से बाहर होने के बाद विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठनों के लिए यह मुद्दा ठंडे बस्ते में चला गया था. बस 6 दिसंबर के दिन मंदिर निर्माण को होने वाली रस्म अदायगी वाली सभाओँ और भाषणों के अलावा कहीं कुछ और नजर नहीं आता था. लेकिन जैसे ही बीजेपी मोदी के नेतृत्व में धमाकेदार अंदाज में सत्ता में वापस लौटी इन संगठनों में भी जोश भर गया और काफी दिन तक शांत रहने के बाद राम मंदिर निर्माण का मुद्दा पूरी शिद्दत के साथ इन संगठनों की प्राथमिकता लिस्ट में टॉप पर लौट आया.

राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास ने तो इन पत्थरों के अयोध्या पहुंचने के बारे में यहां तक कह डाला कि उन्हें मोदी जी की तरफ से संकेत मिल गया है कि जल्द ही यहां राम मंदिर का निर्माण होगा. नृ्त्य गोपाल दास ने ये बयान यह जानते हुए दिया है कि यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और सरकार चाहकर भी इसमें कुछ नहीं कर सकती. लेकिन ऐसे बयानों से लोगों का ध्यान आसानी से खींचा जा सकता है. जिसका दीर्घकालिक फायद 2017 में होने वाले चुनावों में उठाने की कोशिश है. नहीं तो विश्व हिंदू परिषद को अचानक ही वहां पत्थर पहुंचाने की क्यों सूझी. आप जानकर शायद हैरान होंगे लेकिन वीएचपी के पूर्व अध्यक्ष अशोक सिंघल ने एक बार कहा था, अयोध्या में राम मंदिरा निर्माण के लिए 2.25 लाख क्यूबिक फीट पत्थरों की जरूरत है और इनमें से 1.25 लाख क्यूबिक फीट पत्थर पहले से ही अयोध्या स्थित वीएचपी के कार्यालय में पड़े हैं.

अपनी साख चमकाने की भी कोशिश?

दरअसल इसके पीछे अपनी धार खो चुके विश्व हिंदू परिषद द्वारा अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा वापस पाने की कोशिश भी नजर आती है. कभी देश के सबसे ताकतवर हिंदूवादी संगठनों में शुमार रहे वीएचपी का रुतबा अशोक सिंघल के स्वास्थ्य में गिरावट के साथ घटता चला गया. प्रवीण तोगाड़िया ने वीएचपी की कमान तो संभाली लेकिन वह महज धर्म विशेष के खिलाफ जहर उगलने वाले नेता बनकर रह गए. माना जाता है कि तोगाड़िया के ऐसे बयानों से मोदी काफी नाराज होते थे. यही वजह है कि गुजरात में मोदी राज के उदय के पहले छाए रहने वाले तोगाड़िया की उपस्थिति भी मोदी के सत्ता में आने के बाद सिमटती चली गई. इतना ही नहीं हाल ही में नाथूराम गोडसे के बलिदान दिवस के आयोजन को लेकर वीएचपी संघ से भी टकरा चुकी है. ऐसे में तेजी से घटती अपनी लोकप्रियता को बढ़ाने और फिर से खुद को सबसे ताकतवर हिंदू संगठनों की जमात में लाने के लिए राम मंदिर निर्माण से बढ़िया मुद्दा शायद ही वीएचपी को मिल सकता है.

खैर, राम मंदिर मुद्दे के गर्माने पर अयोध्या के लोग समझ गए हैं कि चुनाव आ रहे हैं!    

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