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Updated: 17 नवम्बर, 2017 07:22 PM
शरत प्रधान
शरत प्रधान
 
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सुप्रीम कोर्ट ने जबसे अयोध्या विवाद को बातचीत के जरिए हल करने का सिफारिश की है, भाजपा और उसके सहयोगी ज्यादा ही मुखर हो गए हैं. विवाद में पार्टी की जरुरत से ज्यादा दिलचस्पी संदेह उत्पन्न करती है. लेकिन इस मामले में जो सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात है वो ये कि शिया वक्फ बोर्ड इस मु्द्दे पर नए पैरोकार बनकर उभरे हैं.

6 दिसंबर 1992 को हिंदु कारसेवकों द्वारा राम जन्मभूमि का दावा करके 16वीं सदी में बनी बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था. तब से लेकर आजतक बाबरी मस्जिद मामला कई कोर्ट में रहा लेकिन शिया वक्फ बोर्ड कभी सामने नहीं आया. लेकिन आज अचानक से शिया वक्फ बोर्ड न सिर्फ मस्जिद पर अपना दावा ठोक रहा है बल्कि कोर्ट के बाहर बातचीत के जरिए विवाद का हल खोजने के मुद्दे पर भी तत्परता से शामिल हो रहा है.

बाबरी मस्जिद को मुगल बादशाह बाबर के सेना प्रमुख मीर बाक़ी ने बनाया था. शिया वक्फ बोर्ड दावा कर रही है कि मीर बाक़ी शिया था इसलिए ये मस्जिद भी शियाओं की थी न कि बाबर की जो सुन्नी मुसलमान था. हैरानी की बात तो ये है कि शिया वक्फ बोर्ड को बीजेपी का पूरा समर्थन भी मिल रहा है. कई टीवी चैनल पर बहस के दौरान भाजपा प्रवक्ता वक्फ बोर्ड के पक्ष में खड़े हो रहे हैं.

मजे की बात तो ये है कि आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर भी इस बहती गंगा में उतर चुके हैं और कोर्ट के बाहर विवाद को सुलझाने के लिए आगे आ रहे हैं. शिया वक्फ बोर्ड प्रमुख वसीम रिजवी की तरह श्रीश्री रविशंकर भी बाहरी हैं और अब अचानक से रामजन्मभूमि विवाद में बिना फीस के वकील बनने में लग गए हैं. हालांकि उनकी तरफ से विवाद का निपटारा करने की पहल को बीजेपी उसी गर्मजोशी से अपना रही है जैसे शिया वक्फ बोर्ड के पहल को अपनाया.

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शिया वक्फ बोर्ड मस्जिद पर दावा इस तर्क के साथ कर रही है कि क्योंकि 40 के दशक में ही लोअर कोर्ट ने मस्जिद पर सुन्नी वक्फ बोर्ड का हक़ होने से मना कर दिया था. तो जाहिर है कि मस्जिद शिया वक्फ बोर्ड के हिस्से में जाएगी. वैसे रिजवी भी कोई दूध के धुले नहीं हैं. बाबरी मुद्दे में मध्यस्थता करने के पहले वो समाजवादी पार्टी आजम खान के करीबी रहे हैं. और आजम खान, मुलायम सिंह और अखिलेश यादव सरकार की कैबिनेट का प्रमुख हिस्सा रहे हैं. प्रमुख शिया मौलाना काल्बे जावाद ने रिजवी पर वक्फ बोर्ड में आर्थिक अनियमितता का आरोप लगाया था. साथ ही इस मामले में राज्य सरकार द्वारा सीबीआई जांच भी शुरू करवा दी. ये जांच अभी भी चल ही रही है.

वहीं श्रीश्री रविशंकर के इस पहल से न तो विश्व हिन्दू परिषद् और न ही निर्मोही अखाड़ा बहुत प्रभावित हैं. इसके पहले भाजपा नेता सुब्रमण्यन स्वामी भी मामले की सुनवाई में तेजी लाने के उद्देश्य से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुके हैं.

आर्ट ऑफ लीविंग संस्थापक रविशंकर और भाजपा के बीच की निकटता साथ ही बीजेपी और शिया वक्फ बोर्ड के बीच की दोस्ती को देखकर किसी को भी शक हो जाएगा. इनके बीच के नए बने ये रिश्ते दाल काली होने का संकेत दे रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अयोध्या के मुद्दे को फिर से हवा देने के पीछे बीजेपी की मंशा निकट के विधानसभा चुनावों और इसी महीने उत्तरप्रदेश में होने वाले निकाय चुनावों में जीत हासिल करना है.

एक तरफ जहां मुस्लिम नेताओं ने कह दिया है कि अगर कोर्ट का फैसला उनके खिलाफ जाता है तो वो बाबरी मस्जिद पर अपना दावा छोड़ देंगे. लेकिन वहीं हिन्दू नेताओं ने साफ कर दिया है कि चाहे कोर्ट का फैसला उनके पक्ष में हो या फिर खिलाफ, राम मंदिर वहीं बनेगा. कोर्ट के आदेश के बाद मुसलमानों के पास अपना दावा छोड़ने का एक कारण होगा. वहीं दूसरी ओर कोर्ट के बाहर सेटलमेंट करने पर काशी विश्वनाथ मंदिर और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि को लेकर मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी.

ये दोनों ही मंदिर विश्व हिन्दू परिषद् के एजेंडे में सालों से हैं. एक तरफ जहां भाजपा नेता इन तीर्थस्थानों पर बात करने से बचते हैं तो वहीं इनके सहयोगी अपनी मांगों को सामने रखने में बिल्कुल नहीं हिचकते. ऐसे में भाजपा द्वारा कोर्ट के बाहर सेटलमेंट करने की जल्दबाजी पर शक होना लाजमी है.

(DailyO से साभार)

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लेखक

शरत प्रधान शरत प्रधान

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक मामलों के जानकार हैं.

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