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Updated: 16 दिसम्बर, 2015 08:13 PM
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ISIS के खिलाफ लड़ाई में रूस के आक्रामक रवैये के आगे यूरोप के बाद अमेरिका को भी झुकना पड़ा है. अब वह रूस के साथ मिलकर यह लड़ाई लड़ेगा. अमेरिका के इस रुख ने सीरिया में राष्‍ट्रपति असद की सत्‍ता को मजबूत किया है.

सीरिया में जारी लड़ाई अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच सकती है. इसे आतंकी संगठन ISIS के खात्मे की शुरुआत कहा जा सकता है क्योंकि दुनिया की दो सबसे बड़ी महाशक्तियों अमेरिका और रूस ने अपने मतभेद को भुलाते हुए आम सहमति बना ली है. यह मुद्दा है सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद की विदाई का. रूस हमेशा से असद को सत्ता से बेदखल किए जाने का विरोध करता रहा है जबकि अमेरिका 2011 से ही यह कहता आ रहा है कि सीरिया में नरसंहार के दोषी असद को हर हाल में सत्ता छोड़नी होगी.

असद के मुद्दे पर अमेरिका और रूस का मतभेद सीरिया में खुलकर सामने आ गया था. अमेरिका जहां असद के विद्रोहियों को हथियार और आर्थिक मदद उपलब्ध करवा रहा था तो वहीं रूस असद के विद्रोहियों पर बम बरसाकर खुलेआम अमेरिका को चुनौती दे रहा था. दो महाशक्तियों के इस तरह आमने-सामने आ खड़े होने से दुनिया पर तीसरे विश्व युद्ध तक का खतरा मंडरा रहा था. लेकिन अब रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और अमेरिकी सेक्रेटरी ऑफ स्टेट जॉन केरी के बीच मास्को में हुई बातचीत के बाद अमेरिका फिलहाल असद की तुरंत विदाई की अपनी जिद से पीछे हटने पर सहमत हो गया है.

सीरिया में अब साथ-साथ लड़ेंगे अमेरिका-रूसः

अमेरिका और रूस ने इस बात पर सहमति जताई है कि सीरिया में फिलहाल इन दोनों का उद्देश्य शांति स्थापना और आतंकी संगठन ISIS का खात्मा है. असद के भविष्य पर फिलहाल फैसला करने की जरूरत नहीं है. अमेरिका की इस घोषणा से सीरिया में रूस और अमेरिका के ISIS के खिलाफ लड़ाई में एकसाथ आने से निश्चित तौर पर इस आंतकी संगठन की मुश्किलें बढ़ेंगी और इसके जल्द खात्मे की उम्मीदें बढ़ गई हैं. अमेरिका ने कहा है कि वह सीरिया में हर मुद्दे पर रूस से सहमत नहीं है लेकिन वह और रूस सीरिया से जूड़ी चुनौतियों और खतरों को पहचानते हैं और उनका मकसद एक ही नतीजे पर पहुंचना है. इसलिए अब ये दोनों देश सीरिया में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में तेजी लाने, सैन्य कार्रवाई में सहयोग बढ़ाने और सीरिया में आतंकियों की लिस्ट (समर्थक और विद्रोही गुटों ) बनाने की दिशा में काम करेंगे.

रूस के विदेश मंत्री सर्जेई लार्वोव ने कहा है कि इंटरनेशनल सीरिया सपोर्ट ग्रुप (ISSG) जल्द ही संयुक्त राष्ट्र संघ को सीरिया में सत्ता के हस्तांतरण का मसौदा सौंपेंगे. नवंबर में ISSG ने सीरिया के भविष्य की एक वृहद योजना के संदर्भ में बैठक की थी. पिछले हफ्ते सीरिया के विद्रोही गुट के नेताओं ने भी इसी मसौदे पर चर्चा के लिए बैठक की थी. ISSG सीरियाई राष्ट्रपति और विद्रोही गुटों को जनवरी में यूएन की मध्यस्थता में बातचीत के लिए आमने-सामने लाने पर सहमत हुआ है. ISIS की कोशिश सीरिया में युद्धविराम लागू कराने और अगले छह महीने में वहां एक भरोसेमंद और सर्वमान्य सरकार का गठन करने और अगले 18 महीने में नए चुनाव कराने की है.

आखिर रूस के साथ क्यों आया अमेरिका:

नवंबर में पेरिस और इस महीने कैलिफोर्निया में हुए हमले ने ISIS के प्रति अमेरिका जैसे ताकतवर देश की चिंता में इजाफा किया है. अमेरिका के लिए फिलहाल सीरिया में असद को सत्ता से बेदखल करने से ज्यादा जरूरी ISIS का खात्मा है. लेकिन अमेरिका यह जंग रूस को अपने खिलाफ करके कभी नहीं जीत पाता. इसलिए ISIS के खिलाफ जीत के लिए रूसी सहयोग अमेरिका के लिए अनिवार्य सा बन गया था. वैसे भी सीरिया और असद के भविष्य के बारे में अभी कुछ भी सुनिश्चित नहीं है. मुमकिन है कि अभी तो रूसी विद्रोह से बचने के लिए अमेरिका असद को न हटाने पर राजी हो गया है लेकिन भविष्य में सीरिया में नई सरकार के गठन के समय वह असद को सत्ता से अपदस्थ करने की कोशिश करे. लेकिन फिलहाल सीरिया के संकट से निपटने के लिए अमेरिका ने सबसे अच्छा रास्ता चुना है और वह है-रूस के साथ मिलकर ISIS को खत्म करने का.

इन दोनों देशों के साथ आने की जो भी वजह हो लेकिन अब तक एकदूसरे के विरोध के कारण सीरिया में बिखरी हुई इन दोनों की ताकत के एकजुट होने से ISIS का अंत आसान हो जाएगा.

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