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Updated: 31 अक्टूबर, 2016 07:16 PM
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जम्मू-कश्मीर पर हुर्रियत नेताओं से बातचीत का फैशन काफी पुराना है. ऐसा अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में भी हुआ और मनमोहन सिंह के शासन काल में भी - और छिटफुट ना-नुकुर के बावजूद नरेंद्र मोदी के दौर में भी हो रहा है.

विपक्ष के कुछ नेताओं से अलगाववादियों के मिलने से इंकार की बात छोड़ भी दें तो यशवंत सिन्हा से पहले श्रीश्री रविशंकर भी इस तरह की बैकडोर बातचीत के संकेत दे चुके हैं.

कभी ना, कभी हां

सितंबर की ही बात है - गृह मंत्री राजनाथ सिंह के साथ विपक्ष के कुछ नेताओं का एक दल कश्मीर गया था. इस दल में असदुद्दीन ओवैसी, सीताराम येचुरी, डी. राजा और शरद यादव शामिल थे.

जब इन नेताओं ने हुर्रियत नेताओं से भेंट करनी चाही तो उन्होंने मिलने से ही इंकार कर दिया. बुजुर्ग सैयद अलीशाह गिलानी ने तो मना ही कर दिया - जबकि मीरवाइज उमर फारूक ने तो दरवाजे से ही लौटा दिया.

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बाद में राजनाथ सिंह का बयान आया कि इस बातचीत में उनकी कहीं कोई भूमिका नहीं थी - दल के सदस्यों ने फैसला निजी स्तर पर लिया था. अभी-अभी जब यशवंत सिन्हा भी एक दल लेकर कश्मीर पहुंचे. इस दल में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष वजाहत हबीबुल्ला, पूर्व वायुसेनाध्यक्ष कपिल काक, सोशल एक्टिविस्ट सुशोभा बार्वे और पत्रकार भारत भूषण शामिल थे.

इस दल के साथ भी अलगावादी नेताओं का व्यवहार तकरीबन वैसा ही रहा. मीरवाइज और गिलानी से तो ये मिल पाये लेकिन यासीन मलिक ने मिलने से मना कर दिया. एक बार फिर सरकार और बीजेपी की ओर से डिस्क्लेमर जारी होने लगे - तभी सिन्हा ने भी कह दिया कि वे लोग अपने स्तर पर कोशिश कर रहे हैं, "हम यहां इंसानियत के नाते आये हैं. हमारा मकसद घाटी के लोगों का दुख-दर्द बांटना है."

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अमन की वापसी का इंतजार

मलिक और किसी से तो नहीं मिले लेकिन भारत भूषण ने अस्पताल जा कर मलिक का हालचाल लिया. वैसे ये मुलाकात भी निजी बताई गई क्योंकि दोनों गहरे दोस्त बताये जाते हैं.

विपक्षी नेताओं से इंकार और यशवंत सिन्हा से इकरार के सवाल पर मीरवाइज बीबीसी को बताते हैं, "सोमवार शाम मुझे रिहा किया गया और मंगलवार सुबह मुझे पता चला कि ये लोग आए हैं. हो सकता है कि मुझे इसलिए रिहा किया गया हो कि मैं उनसे बात करूं. मेरी बात गिलानी साहब से हुई. उन्होंने कहा कि उन्होंने प्रतिनिधिमंडल से बातचीत की है और मुझे भी बताया कि मैं साफ कर दूं कि हम लोग क्या चाहते हैं."

कुछ सवाल, कुछ जवाब

जम्मू कश्मीर की मौजूदा स्थिति पर मीरवाइज वही सवाल उठा रहे हैं जो चीफ मिनिस्टर महबूबा मुफ्ती उठा चुकी हैं. मुद्दा एक ही है लेकिन दोनों का अपना अपना नजरिया है. कभी इस मसले पर महबूबा भी अलगाववादियों के सवालों से इत्तेफाक जताया करती थीं, लेकिन अब वो उन्हें ही सवालों के घेरे में खड़ा कर रही हैं.

मीरवाइज का सवाल है - 'बच्चों को अंधा करके, उन्हें कैद करके और मारने की मुहिम चलायी जा रही है. मीरवाइज की नजर में ये न तो भारत के संविधान का दायरा है - और न ही मानवता का.'

सीएम महबूबा ऐसे सवालों का जवाब काफी पहले ही सवाल उठा कर दे चुकी हैं - 'जो बच्चे सुरक्षा बलों पर पत्थर बरसा रहे हैं वो दूध और ब्रेड लेने तो नहीं ही गये थे.'

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इसी साल 8 जुलाई को आतंकी बुरहान वानी के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद से कश्मीर में हिंसा का दौर जारी है - और भारत विरोधी प्रदर्शनों के पीछे मलिक, मीरवाइज और गिलानी का हाथ माना जाता है. मीरवाइज के बाद अब मलिक को भी रिहा किया जा चुका है लेकिन गिलानी को अभी नजरबंद ही रखा गया है. उनके रिश्तेदारों को भी उनसे मिलने की इजाजत नहीं है.

यासीन मलिक का मानना है कि केंद्र सरकार जब तब कुछ फायर फाइटर्स की टीम भेज दिया करती है - लेकिन उनकी सिरफारिशों को कोई तवज्जो नहीं देता - फिर ऐसे लोगों से मिलने से क्या फायदा.

अगर सरकार वाकई अलगाववादी नेताओं से बातचीत के प्रति गंभीर है तो उन्हें ये विश्वास जरूर दिलाना होगा. मलिक और मीरवाइज भी जब तक आगे नहीं आएंगे इन बातों का कोई मतलब नहीं है.

कश्मीर की मिट्टी को भी समझना होगा और लोगों के जख्मों को भी. हर मिट्टी से हर तरह के लोग निकलते हैं - और अपने लिए अलग राह चुनते हैं. आखिर आइएएस टॉपर शाह फैसल भी तो उसी मिट्टी के हैं. आखिर उसी मिट्टी से नबील अहमद वानी भी निकले - और बुरहान वानी भी.

चाहे जो भी हो महबूबा के ही लफ्जों में जंग-ओ-जदल यानी युद्ध जैसे हालात का सबसे ज्यादा नुकसान जम्मू-कश्मीर को ही होता है - और जितना जल्द हो सके खत्म होना चाहिये.

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