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Updated: 05 जून, 2015 10:54 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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पहले अज्ञातवास. फिर रामलीला मैदान. उसके बाद संसद में. और फिर सड़क पर - पदयात्रा.

पहले किसानों की जमीन का मामला. फिर मछुआरों की समस्याएं. और फिर दलितों के साथ नाइंसाफी का मसला.

किसानों की समस्याओं से पहले सोनिया गांधी ने जमीन तैयार कर रखी थी. विपक्ष के साथ संसद से राष्ट्रपति भवन तक सोनिया गांधी ने मार्च भी किया था. राहुल गांधी के छुट्टी से लौटने से पहले ही रामलीला मैदान की रैली की पूरी तैयारी कर ली गई थी.

जब राहुल गांधी अपने दलित एजेंडे पर बढ़ने लगे उसके ठीक पहले सोनिया ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा. इस पत्र में सोनिया ने लिखा, "मैं आपके ध्यान में लाना चाहता हूं कि देश भर में दलितों पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. राजस्थान के नागौर जिले में जमीन विवाद में एक समुदाय के सदस्यों ने 17 दलितों को ट्रैक्टर से कुचल डाला. चार दलितों की मौत हो गई जबकि एक अन्य जख्मी है. तीन महीने पहले इसी जिले में तीन दलितों को जिंदा जला दिया गया."

सोनिया द्वारा बैकग्राउंड तैयार कर देने के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओँ की एक बेहतरीन टीम के साथ राहुल गांधी मध्य प्रदेश के महू पहुंचे. अंबडकर की जन्मस्थली में ध्यान लगाया. उसके बाद उन्हें ऐसे याद किया, "अंबेडकर दलितों और समाज के कमजोर लोगों के जीवन में रोशनी लेकर आए थे, उन्होंने जातिवाद की हजारों साल पुरानी दीवार पर जबर्दस्त चोट की. वह अत्याचार के खिलाफ विरोध के वैश्विक प्रतीक थे. महिलाओं और मजदूरों को अधिकार संपन्न बनाने और रिजर्व बैंक आफ इंडिया की स्थापना में भी उनका बड़ा योगदान था."

फिर राहुल गांधी ने शिरडी की घटना का जिक्र किया, "कोई अंबेडकर का रिंगटोन लगाता है तो उसकी हत्या कर दी जाती है." निश्चित रूप से ये घटना हैरान करनेवाली रही. साथ ही, बताया कि तरक्की का तरीका वो नहीं जिसे समझाने की कोशिश हो रही है, बल्कि विकास की मंजिल तो अंबेडकर के सपनों में छिपी है, "कोई कहता है कि देश के विकास के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर जरूरी है, तो कोई कहता है कि रेलवे लाइन और सड़कों का जाल जरूरी है, लेकिन मैं कहता हूं कि जब तक हम समाज के हर वर्ग को उसका अधिकार नहीं दिला देते, तब तक देश का विकास नहीं हो सकेगा. हम सब को एक होकर बाबा साहब के सपने को साकार करने के लिए समाज से जातिवाद को दूर करना होगा."

दलितों के लिए राहुल गांधी की फिक्र नई नहीं है. कई साल से वो दलितों के घरों में जाते रहे हैं. समय समय पर दलितों का मामला भी उठाते रहे हैं.

अब सवाल है कि देश में जातिवाद खत्म नहीं हो पाने के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या केंद्र की मौजूदा मोदी सरकार. या अब तक की सभी सरकारें? या सभी राजनीतिक दल? या हमारा समाज? शायद हम सभी!

बिहार में विधान सभा चुनाव होने जा रहे हैं. सारी सियासी स्ट्रैटेजी जातीय आधार पर ही तैयार की जा रही है. जगह जगह जातीय सम्मेलन हो रहे हैं. निषाद सम्मेलन उनमें लेटेस्ट है. लोक सभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग ने जातीय सम्मेलनों पर पाबंदी लगा दी थी. अधिसूचना नहीं जारी हुई है इसलिए बिहार में ताबड़तोड़ ऐसे सम्मेलन आयोजित किए जा रहे हैं.

बड़ा ही वाजिब और बड़ा सवाल है जो राहुल गांधी ने उठाया है. जब भी इस सवाल का जवाब खोजने की कोशिश होती है मामला और उलझ जाता है. अब इस सवाल में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी उलझे नजर आ रहे हैं.

"देश में संविधान को लागू हुए 65 साल हो गए हैं, लेकिन अंबेडकर का जातिवाद खत्म करने का सपना आज भी अधूरा है. जातिवाद आज भी हमारी राजनीति, हमारे स्कूलों और हमारे दिमाग में बसा है. जाति आपको स्कूलों में अच्छी शिक्षा पाने और नौकरी हासिल करने से रोक सकती है."

क्या राहुल गांधी खुद पर ही सवाल नहीं उठा रहे हैं? वो जनता को समझाना क्या चाहते हैं? क्या ये कि कांग्रेस के सत्ता से बेदखल होने से जातिवाद बढ़ गया है? जिन 65 बरसों की बात राहुल कर रहे हैं उस दौरान ज्यादातर वक्त तो शासन उन्हीं की कांग्रेस पार्टी का ही रहा है. मोदी सरकार तो साल भर से सत्ता में आई है, उससे पहले लगातार 10 साल तक कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की ही सरकार रही है.

महू में अपने पूरे भाषण में राहुल गांधी ने न तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और न ही केंद्र सरकार का नाम लिया, मगर निशाने पर मोदी सरकार ही रही. वैसे जातिवाद की राजनीति का जो तांडव मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने के बाद दिखा वैसा तो शायद ही कभी देखने को मिला हो. राहुल गांधी ने महू में एक और खास बात का जिक्र किया. उन्होंने कहा, अंबेडकर 'विरोध' के प्रतीक हैं. तो ये सब महज विरोध के नाम पर बस रस्म अदायगी है या उससे आगे भी कुछ है? कभी कभी तो ऐसा लगता है - विरोध के इस नए 'प्रतीक' के चक्कर में कांग्रेस के अपने प्रतीक 'नेहरू-गांधी' पीछे छूटते नजर आ रहे हैं. और सवाल जहां का तहां रह जाता है - देश में जातिवाद के लिए जिम्मेदार कौन है?

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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