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Updated: 16 मई, 2015 10:22 AM
जितेंद्र कुमार
जितेंद्र कुमार
  @JeetuJourno
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यह यात्राओं का दौर इसलिए है कि पक्ष और विपक्ष दोनों ही इन दिनों यात्राओं पर निकले हुए हैं. प्रधानमंत्री भारत की विदेश नीति को 'सुदृढ़' करने के तहत विभिन्न देशों के दौरे पर हैं. अपने प्रधानमंत्री काल के वे शुरूआती दौर में ही 17 देशों की यात्रा कर चुके हैं. तो दूसरी तरफ राहुल गांधी भी कांग्रेस की स्थिति 'सुदृढ़' करने के लिए देश भर के दौरों पर निकल गए हैं. हालाँकि कांग्रेस को संसद में मिली सीटों की संख्या इतनी कम है कि उसे विपक्ष का दर्जा भी नहीं मिल पाया है. पिछले आम चुनाव से दो बात साफ़ निकल कर आई. नरेंद्र मोदी इस देश में सत्ता पक्ष के अगुआ होंगे. और देश की संसद में विपक्ष की कुर्सी खाली रहेगी. लेकिन जिस तरह से भारतीय राजनीति को पारम्परिक रूप से देखा जाता रहा है और संसद में सत्ता पक्ष के साथ हुए बहसों को देखा जाए तो, निसंदेह कांग्रेस को विपक्ष में माना जा सकता है.

मोदी अब तक ऑस्ट्रेलिया, भूटान, ब्राजील, कनाडा, फ्रांस, फिजी जर्मनी जापान, मॉरिशस, म्यांमार, सेशेल्स, सिंगापुर, श्रीलंका और अमेरिका की यात्रा कर चुके हैं. इसके साथ ही वे दो बार नेपाल जा चुके हैं. वर्त्तमान में भी नरेंद्र मोदी चीन के दौरे पर हैं, जहां से वे मंगोलिया और दक्षिण कोरिया के लिए निकलेंगे.

इस बीच भारत के कई देशों के साथ कितने ही समझौते हुए हैं. जैसे ओबामा ने चार बिलियन डॉलर का निवेश करने का निर्णय लिया है, अमेरिकी निवेशकों ने भी भारत में अगले तीन सालों में 41 बिलियन डॉलर इन्वेस्ट करने का निर्णय लिया है. फ्रांस ने भी भारत में निवेश करने का फैसला लिया है और नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया के तहत भारत में ही फ्रांस हवाई जहाज का निर्माण करेगा. साथ ही कनाडा से भारत को यूरेनियम की आपूर्ति की जाएगी. श्रीलंका द्वारा छोड़े गए 86 मछुआरों को भी इसी श्रृंखला में देखा जा रहा है. FDI में बढ़ोतरी हो रही है. तो साथ में संयुक्त राष्ट्र में भी भारत की दावेदारी मजबूत हुई है.

लेकिन विदेश दौरों से निकले ये सभी परिणाम अभी तक महज घोषणाएं ही हैं. आश्वासनों से परे जमीनी धरातल पर अभी भी कोई बदलाव नहीं आ सका है. प्रधानमंत्री के आलोचक यह कह रहे हैं कि एक तरफ किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं और इन सबसे दूर, प्रधानमंत्री लगातार विदेश यात्राओं पर हैं. अकेले महाराष्ट्र में ही बड़ी संख्या में किसान आत्महत्या कर चुके हैं. प्रधानमंत्री की अति-सक्रियता से विदेश मंत्री की भी सक्रियता पर सवाल खड़े होते हैं. ऐसे में ये यात्राएं आने वाले दिनों में देश की अर्थव्यवस्था कितना सुधारेंगी और अर्थव्यवस्था के उन सुधारों का कितना फायदा आम आदमी को मिलेगा इसपर भी सवाल हैं, लेकिन वर्तमान में विदेश नीति के साथ साथ देश की आंतरिक समस्यायों पर ध्यान देना उतना ही जरूरी है.

इसके उलट, भारत के आतंरिक मुद्दों को दरकिनार करते हुए मोदी सरकार एक के बाद एक ऐसे फैसले ले रही है जिससे कि आम लोगों की मुसीबतें बढ़ें. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम निम्नतम स्तर पर गिरने के बाद भी सरकार ने इसका उचित लाभ जनता को नहीं दिया. भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर इतना हंगामा होने के बाद भी सरकार इसे लागू करने को लेकर अडिग है. अभी अभी सरकार ने FDI पर निर्णय लेते हुए, कांग्रेस सरकार की ही तरह मल्टी ब्रांड रिटेल में 51% FDI को मंजूरी देने जा रही है.

सरकार जहां ऐसे फैसले एक के बाद एक करके ले रही हो, संसद के अंदर विरोधी स्वर भी गायब था. राहुल गांधी की विवादित या चर्चित छुट्टियों तक तो सच में लोकतंत्र का अहम किरदार विपक्ष संसद के गलिआरों से ही नहीं सडकों से भी गायब था. संसद में भले ही विपक्ष का किरदार पाने के  लिए जरूरी बहुमत न मिला हो, लेकिन संसद के बाहर से भी कांग्रेस गायब थी.  बीजेपी को मिले इस भरपूर बहुमत का कोई भी विकल्प नहीं दिख रहा था.  ऐसे में जरूरी से जरूरी मुद्दों पर जब बीजेपी की सरकार यूटर्न भी जब लेती दिखी तो कोई भी उसके खिलाफ आवाज उठाने वाला नहीं था. यही वजह है कि बीजेपी के दूसरे नेता भी हास्यास्पद बयानों में उलझे रहे.

जहां पक्ष और विपक्ष दोनों में कोई तालमेल नहीं दिखा, दोनों ही प्रमुखों का दौरे पर निकलना एक समानता दिखाता है. जहां नरेंद्र मोदी को लगता है कि देश की आतंरिक स्थितियों के बजाय बाहरी इन्वेस्टमेंट से ही विकास लाया जा सकता है, राहुल गांधी इसी आतंरिक स्थिति का फायदा उठा अपने संगठन में जान फूंकने में लग गए हैं. अभी दो ही साल पहले कांग्रेस भी भूमि अधिग्रहण बिल लाई थी जिसका काफी विरोध हुआ था, राहुल गांधी अभी बीजेपी के भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ देशभर के किसानों से मिल रहे हैं. नरेंद्र मोदी विश्व के दूसरे दूसरे देशों की यात्रा कर रहे हैं तो राहुल गांधी भी महाराष्ट्र, विदर्भ के किसानों से लेकर अभी तेलंगाना के किसानों के लिए पदयात्रा पर हैं. बीच बीच में वे मानसरोवर जैसी जगहों पर भी जा रहे हैं.

सत्ता के दो अहम किरदारों की यात्राओं से नागरिकों के लिए क्या निकलकर आएगा, ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा. एक बेहतर अर्थव्यवस्था, एक उम्मीद या महज कोरे आश्वाशन. लेकिन दोनों ही पक्षों का सक्रिय रहना लोकतंत्र की एक अच्छी निशानी है. आम चुनाव की वजह से भले ही इस बार की संसद में कोई आधिकारिक रूप से विपक्ष नहीं है, लेकिन सत्ता पक्ष का प्रभावशाली विरोध कर विपक्ष की भूमिका तो अदा की ही जा सकती है. आखिरकार विपक्ष लोकतंत्र की जरूरी आवश्यकता है.

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लेखक

जितेंद्र कुमार जितेंद्र कुमार @jeetujourno

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप (डिजिटल) की वेबसाइट आईचौक.इन में सीनियर सब एडिटर हैं.

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