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Updated: 26 अगस्त, 2015 12:13 PM
शिवानंद तिवारी
शिवानंद तिवारी
  @shivanand.tivary
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चुनाव का नतीजा चाहे जो हो, लेकिन नीतीश अभी पुरे रौ में हैं. हों भी क्यों नहीं! आख़िर मुकाबला सीधे नरेन्द्र मोदी से जो है.

बिहार का चुनाव नीतीश बनाम नरेन्द्र मोदी बनता जा रहा है. भाजपा ने किसी स्थानीय नेता का नाम अगले मुख्यमंत्री के लिए आगे नहीं किया है. आगे करने भी नहीं जा रही है. नीतीश के लिए व्यक्तिगत रूप से इससे बेहतर स्थिति क्या हो सकती है?

इस संग्राम में नीतीश के जीत का अर्थ है नरेन्द्र मोदी पर उनका विजय. अगर ऐसा होता है तो देश की भविष्य की राजनीति की धुरी नीतीश होंगे. अगर हारते हैं तो भी प्रतिष्ठा की हानि नहीं है. क्योंकि तब यह कहा जा सकता है कि एक मुख्यमंत्री को परास्त करने के लिए प्रधानमंत्री को अपनी पूरी ताकत झोंकनी पड़ी.

अब तक का आकलन अगर तटस्थ ढंग से किया जाए तो बोली के मामले में नीतीश, मोदी पर बीस ठहरते हैं.

मोदी जी के समर्थक भी गया के उनके भाषण को स्तरीय नहीं मानते हैं. दूसरी ओर नीतीश बहुत कुशल वक्ता हैं. शायद ही पकड़ में आने वाले. लेकिन वक्तृत्व कला पर चुनाव का फैसला नहीं होता है.

चुनावी संग्राम में विजयमाल तो जनता उसी के गले में डालती है जिसका स्थान उसके चित्त में होता है.

चुनाव का नतीजा बताएगा कि जनता के चित्त में नरेन्द्र मोदी हैं या नीतीश?

लेखक

शिवानंद तिवारी शिवानंद तिवारी @shivanand.tivary

लेखक राज्यसभा के पूर्व सांसद हैं.

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