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Updated: 30 मई, 2015 05:56 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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बिहार में आरजेडी और जेडीयू के गठबंधन में फिलहाल सबसे बड़ी बाधा मुख्यमंत्री पद के दावेदार को लेकर है. नीतीश कुमार चाहते हैं कि उन्हें सीएम कैंडिडेट घोषित किया जाए लेकिन लालू प्रसाद इसके लिए राजी नहीं हैं. इस बीच जीतन राम मांझी भी एक दावेदार के रूप में उभरे हैं. आइए देखते हैं इस रेस में और कौन कौन शामिल हैं?

नीतीश कुमार - मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसके स्वाभाविक दावेदार हैं. नीतीश अपनी साफ छवि और सुशासन के लिए जाने जाते हैं. चीजें ट्रैक पर रहें इसी के नाम पर उन्होंने जीतन राम मांझी से कुर्सी वापस ली थी - और उनके सारे फैसलों को खत्म कर दिया. जातियों की जिस कुर्मी कैटेगरी से नीतीश आते हैं उसका वोट शेयर बिहार में महज 4 फीसदी है. इसी वजह से वो थोड़े कमजोर पड़ रहे हैं.

जीतन राम मांझी - बिहार में दलितों के नए नेता के रूप में उभरे हैं. फिलहाल गठबंधन के लिए हर पार्टी की वे फेवरेट च्वायस हैं, बस नीतीश को छोड़कर. मांझी ने खुद भी एक हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा बना लिया है. गया से लोक सभा चुनाव हार गए थे लेकिन साल भर बाद ही बिहार की राजनीति में मांझी के बगैर बात पूरी नहीं हो रही. मांझी अपने विवादस्पद बयानों के लिए भी जाने जाते हैं. अभी तो वो किसी के भी साथ गठबंधन को तैयार हैं जो उन्हें मुख्यमंत्री बनाने को तैयार हो - बस बीजेपी के साथ किसी शर्त की बात अभी तक सामने नहीं आई है.  

राबड़ी देवी - पहली बार जब चारा घोटाले में लालू प्रसाद को जेल जाना पड़ा तो उन्होंने पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया. तब लोग कहा करते थे कि लालू जेल से ही सूबे का शासन चलाते हैं - ठीक वैसे ही जैसे देश भर में कई महिला सरपंचों के पतियों के बारे में चर्चा होती रहती है. नीतीश को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार न घोषित किए जाने के पीछे एक वजह राबड़ी देवी भी मानी जा रही हैं. परिवार से किसी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार होने की बात पर लालू का कहना है कि ऑप्शन खुला है.
लालू के परिवार से दावेदारों में बड़ी बेटी मीसा भारती और बेटे तेजस्वी यादव भी हो सकते हैं. हालांकि मीसा पिछला लोक सभा चुनाव हार गई थीं. उन्हें लालू के ही पुराने साथी राम कृपाल यादव ने बीजेपी उम्मीदवार के रूप में शिकस्त दी थी. वैसे दावेदार तो लालू भी हैं, बशर्ते, सुप्रीम कोर्ट से उन्हें भी जयललिता जैसी राहत मिल जाए.

सुशील मोदी - सुशील मोदी बीजेपी के बड़े नेता है. नीतीश कुमार के साथ गठबंधन की एनडीए सरकार में सुशील मोदी डिप्टी सीएम भी रह चुके हैं. गठबंधन टूटने के बाद से ही वो जेडीयू सरकार पर लगातार हमलावर रुख अख्तियार किए हुए हैं.

नंद किशोर यादव - नंदर किशोर यादव बिहार में बीजेपी के अध्यक्ष हैं. यादव होने के कारण लालू को टक्कर दे सकते हैं. बीजेपी चाहेगी कि यादवों के 14 फीसदी वोट शेयर में वो नंद किशोर के जरिए सेंध लगाए. अगर ऐसी कोई योजना बनी तो नंद किशोर भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं.

गिरिराज सिंह - जब बिहार में थे तब भी और अब भी अपने विवादास्पद बयानों के लिए अक्सर चर्चा में रहा करते हैं. मोदी के कट्टर समर्थक हैं. लोक सभा चुनाव से पहले जब मोदी और नीतीश की तकरार चल रही थी तब भी गिरिराज अकेले मोदी के पक्ष में अलख जगाए हुए थे. महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के मुख्यमंत्रियों को देखें तो कुर्सी के दावेदार तो और भी थे... लेकिन सीएम वही बना जो मोदी को ज्यादा पसंद रहा.

शाहनवाज हुसैन - शाहनवाज हुसैन भागलपुर से लोक सभा चुनाव हार गए थे. फिर भी उन्हें डार्क हॉर्स के तौर पर देखा जा रहा है. बिहार में 16.5 फीसदी मुस्लिम वोट है. बीजेपी शाहनवाज के रूप में आखिरी दाव चल सकती है.

चिराग पासवान - इनकी दावेदारी वैसे तो सबसे कमजोर है, लेकिन उस हालत में जब बीजेपी और मांझी के बीच गठबंधन अमलीजामा पहन पाने में नाकाम हो और बीजेपी को दलित नेता की जरूरत समझ में आए तो चिराग पासवान भी नसीबवाले साबित हो सकते हैं. खासकर तब जब रामविलास पासवान भी खुद की जगह मुलायम सिंह की तरह बेटे को कुर्सी पर बिठाने का फैसला कर लें.

पप्पू यादव - लालू प्रसाद के साथ पप्पू यादव कोसी इलाके में बेहद सक्रिय रहे हैं. आस पास के कई जिलों में उनका खासा प्रभाव भी है. फिलहाल खुद मधेपुरा से सांसद हैं, जबकि पत्नी सुपौल से कांग्रेस सांसद हैं. दोनों मौजूदा लोक सभा के अकेले सांसद दंपति हैं. लालू को सजा हो जाने के बाद खुद को पार्टी का वारिस मान रहे थे, लेकिन लालू ने साफ तौर पर कह दिया कि ये हक सिर्फ बेटे का होता है. फिर पप्पू को पार्टी से निकाल भी दिया गया. अब लालू के बगैर खुद कितने पानी में है ये तो चुनाव बताएंगे. जहां तक मुख्यमंत्री पद की बात है तो झारखंड विधान सभा जैसी स्थिति में मधु कोड़ा की तरह कुर्सी पा सकते हैं - राजनीति और क्रिकेट अनिश्चितता के लिए ही तो जाने जाते हैं.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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