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Updated: 26 मार्च, 2015 11:38 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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दिल्ली के सिरीफोर्ट ऑडिटोरियम में करीब 1500 लोग मौजूद थे, जिनमें कोई भारतीय नेता नहीं था. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा 35 मिनट तक बोले. उनकी बातें लोगों को पसंद आईं – और बीच में कई बार तालियां बजी.

बाकी सब तो ठीक है, मगर…ओबामा ने सभी नेताओं से गर्मजोशी से हाथ मिलाए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गले तो ऐसे मिले जैसे उनकी दोस्ती बचपन की हो. बात-बात पर तारीफ में कसीदे पढ़ते रहे. रिपब्लिक डे परेड की हर बारीकी पर गौर फरमाते रहे और मोदी से लगातार उनके बारे में समझते रहे. क्या पूरे वक्त उनके दिमाग में कुछ और चल रहा था? बिजनेस और न्यूक्लियर डील जैसे मसले क्या महज औपचारिकताओं के दायरे में बंधे एजेंडा के बिंदु भर थे? क्या असली एजेंडा कुछ और ही था? और जाते-जाते उन्होंने अपने मन की बात [हालांकि ‘मन की बात’ कार्यक्रम पहले ही रिकॉर्ड कर लिया गया था, जिसे ओबामा के जाने के बाद प्रसारित किया गया] कह दी, “भारत तब तक सफलता अर्जित करता रहेगा जब तक वह धार्मिक आधार पर बंटे नहीं.” ओबामा ने अमेरिका और भारत दोनों मुल्कों में शिक्षा और समान अवसर का जिक्र किया और कहा - तभी तो एक चाय बेचने वाला प्रधानमंत्री बन जाता है और एक खाना बनाने वाले का पोता राष्ट्रपति बन जाता है. ओबामा ने ऐसी कई खूबसूरत मिसालें दीं लेकिन सबसे ज्यादा जोर धार्मिक सहिष्णुता पर ही रहा. क्या वाकई,  भारत को लेकर ओबामा की असली चिंता यही है?

सरकार नहीं तो किसके संदर्भ में?कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने मोदी को ओबामा के भाषण से सबक लेने की सलाह दी है. हालांकि उन्होंने सवाल उठाया है कि मोदी में इतना साहस नहीं कि वह धर्म परिवर्तन के मुद्दे को लेकर आंदोलन चलाने वाले विश्व हिंदू परिषद और संघ के लोगों को रोक पाएंगे. आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव का आरोप है कि ओबामा ने बीजेपी और आरएसएस के मुंह पर कालिख पोत दी है. लालू पूछते हैं, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बताना चाहिए कि उनके अच्छे दोस्त जो कह कर गए हैं, उस पर अब क्या करेंगे? घर वापसी का इनका कार्यक्रम जारी रहेगा या बंद होगा?”वैसे गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भी कह चुके हैं कि धर्म को टकराव की वजह नहीं बनाया जा सकता. अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने ‘उन्माद से भरी प्रतिस्पर्धा’ की भी निंदा की.और, बीजेपी प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव का कहना है कि धार्मिक सहिष्णुता और स्वतंत्रता न केवल संविधान, बल्कि यह इस देश की महान परंपरा का हिस्सा रहा है. हम इस पर तो हजारों साल से दुनिया को पाठ पढ़ाते आ रहे हैं. बीजेपी प्रवक्ता के मुताबिक यह कहना गलत होगा कि ओबामा ने धार्मिक सहिष्णुता और स्वतंत्रता की बात मोदी सरकार के संदर्भ में कही है.

बात, बिजनेस और ब्रांड अंबेसडरओबामा ने कहा कि भारत तब तक कामयाब रहेगा जब तक वह धार्मिक आधार पर विभाजित नहीं होगा और अपनी आस्था से इतर लोग शाहरुख जैसे एक्टर की फिल्में देखते रहेंगे और तालियां बजाते रहेंगे, ठीक वैसे ही जैसे मिल्खा सिंह या मेरी कॉम के नाम पर वे उत्सव मनाते हैं.  दुनिया की सबसे चर्चित हस्ती और मंझे हुए कम्युनिकेटर माने जाने वाले ओबामा ने अपनी बात रखने के लिए खास तौर पर अलग अलग धार्मिक बैकग्राउंडवाले तीन सेलीब्रिटी चुने – शाहरुख खान, मिल्खा सिंह और मेरी कॉम – एक मुस्लिम, एक सिख और एक इसाई. मार्केटिंग का एक फंडा है - अगर एक सेलीब्रिटी कोई बात समझा दे तो वह सीधे उनके दिलों में उतर जाती है. बिलकुल ठीक कहा गया है. ‘अमेरिकंस नो हाउ टु डू बिजनेस?’

सबसे बड़ी सीख क्या है?कभी ‘लव जिहाद’ तो कभी ‘घर वापसी’. कभी ‘चार’ तो कभी ‘10’ बच्चे पैदा करने की सलाह. हाल के दिनों में ये मुद्दे सुर्खियों में छाए रहे हैं. क्या इन सारे विवादों के पीछे सिर्फ कोरी राजनीति है. या, एक खास तरह की आइडियोलॉजी को प्रमोट करने की रणनीतिक कवायद? क्या एक हिडेन एजेंडा लागू करने के पीछे ये एक सोची समझी सियासी चाल है?  पहले लोक सभा चुनाव हुए. उसके बाद महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और जम्मू कश्मीर के विधान सभा चुनाव हुए. अभी दिल्ली में चुनावी माहौल शवाब पर है. बिहार और पश्चिम बंगाल भी इस कतार में हैं. क्या मुजफ्फरनगर से लेकर मुजफ्फरपुर तक हुई हिंसक घटनाएं कोई खास इशारा कर रही हैं? क्या चुनावों के ऐन पहले माहौल बिगाड़ने की एक कोशिश होती है? क्या ये वोट बैंक की राजनीति है? आखिर ये सब हो क्या रहा है? क्या अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा प्रधानमंत्री मोदी सिर्फ इतना ही बताना चाह रहे हैं या कुछ और भी. बहस लंबी हो सकती है, पर बात में दम तो है.

#ओबामा, #मोदी, Barak Obama, Narendra Modi

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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