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Updated: 09 जनवरी, 2022 10:42 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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देश में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ चुनावी रणभेरी बज चुकी है. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. कोरोना के कहर और ओमिक्रॉन के बढ़ते खतरे के बीच चुनाव आयोग ने पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी है. इसमें यूपी में सात चरणों, मणिपुर में दो चरणों और पंजाब, गोवा, उत्तराखंड में एक-एक चरण में चुनाव कराए जाने की बात कही गई है.

10 मार्च को सभी राज्यों के वोटों की गिनती एक साथ होगी. उसी तय हो जाएगा कि किस राज्य में किस सियासी दल की सरकार बन रही है. लेकिन इन सबसे बीच चुनाव आयोग ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया है. वो ये कि इस बार इलेक्शन डिजिटल होगा. भारतीय चुनावों के इतिहास में पहली बार राजनीतिक दलों को वर्चुअल रैली करनी पड़ेगी. इतना ही नहीं उनको मोबाइल ऐप के जरिए ऑनलाइन नॉमिनेशन फाइल करने की सुविधा भी दी गई है. इसके अलावा ऐप के जरिए ही लोग चुनावी धांधली की शिकायत भी कर सकेंगे.

आइए जानते हैं कि किस तरह इस बार का चुनाव डिजिटल होने जा रहा है...

untitled-2-650_010922042537.jpgउत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में चुनावी बिगुल बजते ही तैयारियां तेज हो गई हैं.

1. वर्चुअल रैली

चुनावी रैलियों के जरिए शक्ति प्रदर्शन करना राजनीतिक दलों का बहुत पुराना काम है. इस बार भी जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव की विजय यात्रा के दौरान जब लोगों की भीड़ उमड़ने लगी, तो सोशल मीडिया पर इसे पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता से जोड़ा जाने लगा. इसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने भी जन विश्वास यात्रा के नाम पर रथ यात्रा शुरू कर दी. इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश में एक महीने में एक दर्जन से अधिक रैली किया था. लेकिन इस बार आदर्श चुनाव आचार संहिता लगते ही रैलियों पर बैन लगा दिया गया है. 15 जनवरी तक कोई भी राजनीतिक दल रैली या जनसभा नहीं कर सकेगा. इसके बाद कोरोना के हालात का रिव्यू किया जाएगा और फिर रैलियों व जनसभाओं पर फैसला लिया जाएगा. यदि रैलियों की इजाजत दी गई तो भी इसमें कोविड प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन किया जाएगा. ऐसे में राजनीतिक दलों के पास वर्चुअल रैली का ही एक मात्रा उपाय बचा है. सोशल मीडिया, ऐप और वेबसाइट के जरिए राजनीतिक दल वर्चुअल रैली आयोजित कर सकेंगे. इसके अलावा डोर टू डोर प्रचार करने की इजाजत भी दी गई है. लेकिन डोर टू डोर प्रचार में भी केवल 5 लोग ही जा सकेंगे.

2. सी-विजिल ऐप

चुनाव आयोग ने तीन साल पहले साल 2019 में सी-विजिल ऐप (cVIGIL app) लॉन्च किया था. लेकिन इसका सही इस्तेमाल इस बार होने का अनुमान है. मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्र का कहना है कि यदि चुनाव में कहीं धांधली हो रही है तो लोग इसके जरिए शिकायत करें और हम एक्शन लेंगे. सी-विजिल ऐप को चुनावों में होने वाली गड़बड़ियों को रोकने के लिए तैयार किया है. इस ऐप की मदद से वोटर चुनावी आचार संहिता के उल्लंघन की जानकारी दे सकते हैं. इस ऐप को सभी एंड्रॉयड और iOS यूजर्स के लिए तैयार किया गया है. ऐप पर शिकायत करने के लिए यूजर को स्मार्टफोन के कैमरे और जीपीएस एक्सेस की जरूरत होती है. चुनाव आयोग की माने तो आचार संहिता लागू होने के बाद लोग इस ऐप का इस्तेमाल कर सकते हैं. चुनाव तारीखों का ऐलान होने के बाद से वोटिंग खत्म होने तक, कोई भी व्यक्ति अपनी शिकायत सी-विजिल ऐप के जरिए चुनाव आयोग को भेज सकता है. शिकायतकर्ता जो भी वीडियो या फोटो अपलोड करेंगे वो 5 मिनट के अंदर स्थानीय चुनाव अधिकारी के पास चला जाएगा. यदि शिकायत सही पाया जाता है, तो 100 मिनट के अंदर ही उस समस्या का समाधान कर दिया जाएगा, ऐसा आयोग का दावा है.

3. सुविधा ऐप

अक्सर देखा गया है कि अधिकतर दलों के प्रत्याशी नॉमिनेशन के समय अपने बाहुबल का प्रदर्शन करके वोटरों को लुभाने की कोशिश करते हैं. इस समय हजारों की संख्या में लोग और वाहन उनके काफिले में शामिल किए जाते हैं. कोरोना काल में इस तरह की भीड़ खतरे की वजह बन सकती है. ऐसे में चुनाव आयोग ने मोबाइल ऐप के जरिए ऑनलाइन नॉमिनेशन की सुविधा दी है. इस ऐप का नाम 'सुविधा' रखा गया है. सभी प्रत्याशी सुविधा ऐप की मदद से नॉमिनेशन कर सकते हैं. इस ऐप के जरिए ही लोग ऑनलाइन फॉर्म भरके वोटर लिस्ट में अपना नाम जुड़वा सकते हैं. अपने एफिडेविड को डिजिटलाइज कर के सिक्योरिटी अमाउंट को भी ऑनलाइन जमा कर सकते हैं. इसके बाद सिस्टम एक फॉर्म जनरेट करेगा जिस पर एक क्यूआर कोड होगा. इसे प्रिंट करा के आसानी से रिटर्निंग ऑफिसर को जमा करा जा सकेगा. ऑनलाइन ऐप्लिकेशन पूरी तरह से भर जाने के बाद कैंडिडेट्स अपने स्क्रूटनी स्टेटस को पोर्टल या फिर कैंडिडेट्स सुविधा ऐप पर आसानी से देख सकेंगे. राजनीतिक दल किसी तरह के कार्यक्रम के लिए चुनाव आयोग के ऑफिस जाकर इजाजत मांगने की बजाए इस ऐप के जरिए ही आवेदन करके अनमुति ले सकते हैं.

4. नो योर कैंडिडेट ऐप

चुनाव में आपराधिक छवि वाले प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने से रोकना हमेशा से ही एक बड़ी समस्या रही है. लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्र ने इस बार चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही एक नियम की घोषणा भी की है. इसके तहत यदि कोई राजनीतिक दल आपराधिक छवि वाले प्रत्याशी को चुनता है तो उसके बारे में अखबारों में जानकारी देनी होगी. इसके अलावा यह भी बताना होगा कि उस आपराधिक छवि वाले प्रत्याशी को क्यों चुना गया है. इसकी जानकारी 'नो योर कैंडिडेट' ऐप पर भी देनी होगी. चुनाव आयोग ने इस बार चुनाव में इस ऐप को भी लॉन्च किया है. इसकी सुविधा वेब पोर्टल पर भी मिलती है. इस ऐप पर चुनाव में खड़े उम्मीदवारों को अपने ऊपर दर्ज आपराधिक मुकदमों के बारे में जानकारी देनी होगी. ऐप के जरिए मतदाता कुछ ही देर में अपने विधानसभा उम्मीदवार के बारे में पता लगा सकते हैं. ऐप पर उम्मीदवार के बारे में विस्तार से जानकारी दी जाएगी. इस पर दी गई जानकारी के आधार पर मतदाता तय कर सकता है कि उसे किसे वोट देना है.

डिजिटल इलेक्शन के लिए कौन-कितना तैयार?

भाजपा

नेशनल लेवल पर देखा जाए तो अधिकांश राजनीतिक दल डिजिटल टूल्स से परिचित हो चुके हैं. साल 2014 में मोदी के सोशल मीडिया कैंपेन की सफलता देखने के बाद से ही राजनीतिक दलों में इसके प्रति जागृति आ चुकी है. लेकिन इस वक्त डिजिटल माध्यम बीजेपी लीड कर रही है. भारतीय जनता पार्टी ने अपने सोशल मीडिया सेल को बहुत मजबूत बना लिया है. जिले से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक सोशल मीडिया सेल के लिए कार्यकर्ताओं को तैयार कर लिया गया है. हर मंत्री, सांसद और विधायक के साथ एक-एक सोशल मीडिया मैनेजर काम करता है. नेशनल सोशल मीडिया सेल की तरह हर सूबे में राज्य स्तर पर सेल का गठन का किया गया है, जो हर गतिविधि पर नजर रखती है. ऐसे में डिजिटल इलेक्शन के लिए बीजेपी सबसे ज्यादा तैयार नजर आती है.

सपा

समाजवादी पार्टी भी फेसबुक और ट्विटर के माध्यम से अपने कार्यकर्ताओं और मतदाताओं से लगातार संवाद करती रहती है. सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव हर मौके पर ट्विट और फेसबुक पोस्ट करना नहीं भूलते हैं. अपनी सरकार की उपलब्धियों और आगामी योजनाओं के बारे में भी वो अक्सर बताते रहते हैं. हालही में सपा ने एक ऐप भी लॉन्च किया है, जिसके जरिए वो बूथ स्तर तक अपने कार्यकर्ताओं को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, चुनाव आयोग के ऐलान के बाद अखिलेश यादव का कहना है कि यदि आयोग यूपी विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों के लिए वर्चुअल रैलियों के पक्ष में है, तो आयोग को इसे सभी राजनीतिक दलों के लिए एक समान खेल मैदान बनाना चाहिए. उन्होंने कहा, "पहली बार कोरोना के समय में इस तरह से चुनाव हो रहा है. आयोग ने कई तरह के नियम बनाए हैं. लेकिन वर्चुअल रैलियों की हम बात करें तो आयोग को उन पार्टियों के बारे में भी सोचना चाहिए, जिनके पास वर्चुअल रैली के लिए पर्याप्त इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं है. आयोग को विपक्षी दलों को टीवी पर अधिक समय देना चाहिए और यह फ्री में मिलना चाहिए. भाजपा के पास पहले से ही बहुत इन्फ्रास्ट्रक्चर है. इलेक्शन बॉन्ड भी उन्हें सबसे ज्यादा मिलते हैं.''

कांग्रेस

इसी कड़ी में देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने भी अपनी तैयारी कर ली है. पार्टी ने हर राज्य के लिए एक अलग रणनीति बनाई है. कहीं पर प्रोजेक्टर्स का इस्तेमाल किया जाएगा तो कहीं पर LED वैन से प्रचार करने का मन बनाया गया है. यूपी में कांग्रेस इस बार LED वैन को अपने डिजिटल प्रचार का हिस्सा बनाने जा रही है. कहा जा रहा है कि यूपी कांग्रेस के पास सिर्फ एक हफ्ते के अंदर 4000 ऐसी वैन तैयार हो जाएंगी जिनका इस्तेमाल कर कांग्रेस अपना सियासी संदेश असरदार तरीके से पहुंचा पाएगी. इस सबके अलावा कांग्रेस द्वारा शक्ति संवाद भी ऑनलाइन तरीके से किया जाएगा. उस संवाद में यूपी की महिलाओं की परेशानियों को सुना जाएगा और समय रहते हल करने का भी प्रयास रहेगा. इसके अलावा फेसबुक और ट्विटर के माध्यम से भी कांग्रेस लोगों से संवाद कर रही है.

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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