New

होम -> सियासत

 |  6-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 23 सितम्बर, 2018 04:03 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

राफेल सौदा भी राजनीतिक रूप से बोफोर्स जैसा ही हो चला है, बस किस्मत की बात है कि बीजेपी सरकार में कोई वीपी सिंह नहीं है. अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा जैसे कुछ नेता जरूर मोदी सरकार की खिंचायी कर रहे हैं, लेकिन वो सब मिसफायर हो जा रहा है क्योंकि अब उनकी कोई हैसियत नहीं बची है. हैसियत से आशय कम से कम इतना असर तो हो कि अगर वे कुछ बोलें तो सरकार में बैठे लोगों में मन में सिहरन उठने लगे.

राफेल डील को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सरकार को घेरने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं, लेकिन घूम फिर कर वो बार बार प्रधानमंत्री मोदी पर फोकस हो जा रहे हैं, इसीलिए बैकफायर की पूरी गुंजाइश हमेशा बन रह जाती है.

चुनाव अभियान में राहुल का जोर राफेल पर ही है और जगह जगह वो लोगों से नारे लगवा रहे हैं - 'चौकीदार चोर है...', तो अरुण जेटली ब्लॉग लिख कर राहुल गांधी को झूठा और मूर्ख राजकुमार साबित करने में लगे हुए हैं.रहे हैं.

rafale planeराजनीति में बोफोर्स जैसा ही है राफेल का मुद्दा

राफेल को लेकर फ्रांसीसी मीडिया में पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद का बयान आने के बाद सिर्फ कांग्रेस ही नहीं बल्कि विपक्ष के ज्यादातर नेता आक्रामक हो गये हैं. चौतरफा हमले को देखते हुए बीजेपी को रक्षात्मकर रूख अपनाने पड़ रहे हैं.

देश जानना जरूर चाहता है...

राफेल पर अरविंद केजरीवाल के ट्वीट के पीछे मंशा भले ही सर्जिकल स्ट्राइक जैसी ही हो, सौ टका टंच सवाल पूछा है - 'सच में, देश जरूर जानना चाहता है.'

आखिर सच क्या है? राफेल का सच क्या है? सच सिर्फ राफेल का ही नहीं, देश जानना तो बोफोर्स का भी सच चाहता है. जांच के नाम पर जो कुछ हुआ, हासिल तो शून्य ही रहा. क्या राफेल के साथ भी यही होने जा रहा है?

सच को सामने लाने या छुपाने का इरादा जिस किसी की ओर से भले ही हो रहा हो, कामयाबी की साजिश तो पूरी कायनात मिल कर रच रही है और इसमें कोई शक भी नहीं है.

मंशा तो राहुल गांधी की भी केजरीवाल की तरह सियासी ही है, लेकिन वो सवाल नहीं पूछ रहे हैं, आखिर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के रूप में एक मजबूत गवाह जो हाथ लग गया है. राहुल गांधी का इल्जाम है कि मोदी सरकार ने अनिल अंबानी की डूबती नाव को बचाने के लिए देश को धोखा दिया है.

फ्रांस्वा ओलांद के बयान से राजनीति में भूकंप

भारत में फ्रांस्वा ओलांद के बयान से वैसा ही भूकंप आया है जैसा राहुल गांधी अपनी बातों से आने का दावा करते रहे हैं. फ्रांसीसी मीडिया के जरिये फ्रांस्वा ओलांद का एक बयान सामने आया है जिसमें वो कहते हैं - "राफेल विमान बनाने के ₹ 58 हजार करोड़ के समझौते के लिए भारत सरकार ने ही रिलायंस डिफेंस का नाम सुझाया था और फ्रांस के पास इस मामले में कोई विकल्प था ही नहीं.

hollande, modiएक बयान से भूकंप आ सकता है...

फ्रांस्वा ओलांद के बयान से मचे बवाल के बीच फ्रांस के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर सफाई दी है कि राफेल डील में कंपनी के चुनाव में सरकारों का कोई रोल नहीं है. फ्रांस सरकार के बयान से बीजेपी सरकार को बल मिला है, विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर सरकार की तरफ से सफाई दे रहे हैं.

अब फ्रांस की मौजूदा सरकार ने फ्रांस्वा ओलांद के बयान से खुद को अलग कर लिया है. फ्रांस के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा है, "फ्रांस की सरकार किसी भी तरह से भारतीय औद्योगिक साझीदारों के सेलेक्शन में शामिल नहीं है..."

मगर, क्या विपक्ष से हो पाएगा?

अब अगर देखा जाये तो फ्रांस की सरकार भी वही बातें कर रही है जो यहां मोदी सरकार कर रही है. फ्रांसीसी सरकार के बयान से तो ऐसा लगने लगा है कि पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ही झूठ बोल रहे हैं.

boforsबरसों बाद भी बोफोर्स चर्चा में बना हुआ है...

बोफोर्स केस खत्म हो चुका हो, ऐसा नहीं बिलकुल नहीं है. सीबीआई ने बोफोर्स केस दोबारा खोलने के लिए अदालत में अर्जी दी है. तीस हजारी कोर्ट में जुलाई में ही इस केस की सुनवाई होनी थी, लेकिन जरूरी दस्तवाजे सुप्रीम कोर्ट में होने के चलते ऐसा नहीं हो सका. अब 28 सितंबर को बोफोर्स केस पर सुनवाई होनी है.

वैसे कोर्ट ने सीबीआई को साफ कर दिया है कि पहले केस से जुड़े रिकॉर्ड और दस्तावेज पेश होंगे, फिर अगर जरूरी लगा तभी केस फिर से ओपन होगा. बड़ा सवाल यही है कि इतने बरस बाद सीबीआई के हाथ ऐसा कौन सा सबूत हाथ लगा है वो बोफोर्स केस को फिर से खुलवाना चाहती है?

राहुल गांधी सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टारगेट जरूर कर रहे हैं - मगर उसका कितना असर होगा चुनाव नतीजे ही बता पाएंगे.

इसमें कोई शक नहीं है कि बीजेपी राफेल डील पर घिर चुकी है. फ्रांस्वा ओलांद के बयान के बाद तो और भी बुरी तरह घिरने लगी है. बीजेपी भाग्यशाली है कि उसमें कोई वीपी सिंह नहीं है - और विपक्ष अब भी बिखरा हुआ है.

राहुल गांधी के लिए ये बेहतरीन मौका है. अगर राहुल गांधी ने राफेल को राजनीतिक तौर पर साध लिया तो सत्ताधारी बीजेपी की नाक में दम कर सकते हैं, लेकिन ऐसा मुश्किल लगता है. महागठबंधन तो एक औपचारिक चुनावी समझौता है, अगर कांग्रेस विपक्ष के साथ मिल कर सिर्फ राफेल को बोफोर्स बनाने में जुट जाये, फिर तो महागठबंधन अपनेआप बन जाएगा. वास्तव में बीजेपी किस्मतवाली है जो ऐसा कुछ हकीकत में होता हुआ नहीं लगता.

इन्हें भी पढ़ें :

क्या राफेल को बोफोर्स जितनी हवा दे पाएंगे राहुल गांधी?

राफेल डील समझिये: एक वीडियो लॉक से लेकर आलू की फैक्ट्री तक

राजस्थान में मोदी को 'चोर' कहकर राहुल गांधी ने तो कुल्हाड़ी पर ही पैर मार दिया

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय