New

होम -> सियासत

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 29 मार्च, 2017 06:50 PM
आईचौक
आईचौक
  @iChowk
  • Total Shares

कोई टीस जरूर है जो अलग अलग तरीके से उभर कर सामने आती है. आरजेडी नेताओं को अब तक लगता है कि चुनाव से पहले नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर ठीक नहीं हुआ. फिर तो उन्हें ये भी लगता होगा कि नीतीश के सीएम कैंडिडेट नहीं होने पर भी नतीजे वैसे ही होते. खुद लालू प्रसाद को ये कहते सुना जा चुका है कि ज्यादा सीटें होने के बावजूद आरजेडी ने नीतीश को मुख्यमंत्री बनाया. रघुवंश प्रसाद सिंह इसी बात को आगे बढ़ाते हैं - अगली बार जिसके विधायक ज्यादा होंगे उसका सीएम होगा.

लगातार ऐसी कई घटनाएं सामने आ रही हैं जिससे लगता है कि महागठबंधन में खटपट शुरू ही नहीं, तेज होने लगी है. नोटबंदी पर ममता की मेहमाननवाजी और रैली में आरजेडी के सीनियर नेताओं का हिस्सा लेना, कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों से पूरे लालू परिवार का दूरी बना लेना जैसे कई उदाहरण इसकी पुष्टि करते हैं.

क्या इसकी अकेली वजह तेजस्वी को सीएम बनाने का मकसद या फिर लालू की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं में नीतीश का कदम कदम पर आड़े आना है?

तेजस्वी फॉर सीएम

आरजेडी के छुटभैये नेताओं से लेकर राबड़ी देवी और लालू प्रसाद तक सभी अपने अपने तरीके से कह चुके हैं कि तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनना ही चाहिये. आखिर में राबड़ी ये कह कर विवादों को खत्म कर देती हैं कि 'कोई वैकेंसी नहीं है', लालू अपने मजाकिया अंदाज में कह देते हैं - 'हम लोग बूढ़े हो चुके'. जाहिर है लालू के इस 'हम' में नीतीश भी शुमार होते हैं.

बीच में ये भी चर्चा थी कि अगर यूपी के नतीजे अखिलेश के पक्ष में होते तो बिहार की सियासी बयार नीतीश के खिलाफ तूफान बन चुकी होती. नीतीश ने साजिश की इबारत शायद पहले ही पढ़ ली थी इसीलिए यूपी में पांव जमाने की कोशिश छोड़ घर बचाने के लिए पटना में जम गये.

lalu-nitish_650_032917064843.jpgक्या वाकई सब ठीक ठीक है?

महागठबंधन का रूटीन तकरीबन ऐसा हो चला है कि सुबह आरजेडी या जेडीयू के नेता कोई बयान देते हैं तो दोपहर तक उसके खिलाफ प्रतिक्रिया आ जाती है और शाम होते होते दोनों पक्षों के आलाकमान पल्ला झाड़ कर विवादों को रफा दफा करते दिखाने का प्रयास करते हैं. अगले दिन फिर कोई वाकया ऐसा हो जाता है कि पका पकाया रिपीट टेलीकास्ट होने लगता है.

क्या है लालू की मंशा?

क्या लालू और उनके साथी ये सब सिर्फ तेजस्वी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने के लिए कर रहे हैं? या फिर लालू राष्ट्रीय राजनीति में भी नीतीश की सियासत में वैसा ही दखल चाहते हैं जैसा अभी बिहार में है.

जब लालू से पहले बनारस पहुंच कर नीतीश कुमार ने शराबमुक्त समाज और संघ मुक्त भारत का नारा दिया तो आरजेडी के नेता उन पर टूट पड़े. अब संघ की काट के लिए खुद लालू परिवार की ओर से नये संगठन की तैयारी चल रही है. नये संगठन का बीड़ा उठाया है लालू प्रसाद के दूसरे बेटे और स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव ने.

तेज प्रताप आरएसएस के मुकाबले के लिए डीएसएस लेकर आ रहे हैं. आरएसएस के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरह ही तेज प्रताप ने डीएसएस को धर्मनिरपेक्ष सेवक संघ नाम दिया है. तेज प्रताप इसे आरएसएस और यूपी के सीएम आदित्यनाथ योगी के संगठन हिंदू युवा वाहिनी जैसा बता रहे हैं, लेकिन फर्क ये होगा कि इसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख और इसाई सभी धर्मों के लोग शामिल होंगे. तेज प्रताप का दावा है कि डीएसएस को राष्ट्रीय स्तर पर खड़ा किया जाएगा.

नये संगठन पर तेज प्रताप को इतना भरोसा है कि वो आरएसएस को खदेड़ देगा, जैसे बिहार चुनाव में उनके पिता विरोधियों को भालू के फूंक से भगाने की बात करते रहे.

...और नीतीश की मंशा?

तेजस्वी को सीएम बनाने या नीतीश के तख्तापलट की चर्चाओं के बीच नीतीश कुमार के बीजेपी से नजदीकियों को लेकर भी उतना ही जिक्र होता रहता है. नीतीश भी कभी च्यूड़ा-दही खिलाकर तो कभी कमल के फूल में रंग भर तो कभी नोटबंदी का सपोर्ट कर ऐसी चर्चाओं को हवा देते रहते हैं.

ताजातरीन चर्चाओं में नीतीश कुमार का ही एक और भोज भी है. नीतीश के इस भोज की खासियत ये रही कि बीजेपी में ही दो फाड़ नजर आया. नीतीश के इस भोज से विपक्ष के नेता प्रेम कुमार जैसे कुछ लोग रहे जो दूरी बना लिये तो पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी सहित कई नेताओं ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया. शामिल होने वालों की दलील रही कि भोज को राजनीति से अलग रखा जाना चाहिये. एक तरीके से देखा जाये तो नीतीश को लेकर बीजेपी नेता दो गुटों में बंटे नजर आ रहे हैं.

तो क्या ऐसा करना नीतीश की किसी सियासी चाल का हिस्सा है? हां, क्योंकि बीजेपी के कुछ नेता ऐसा मानने लगे हैं. बीजेपी में अंदरूनी चर्चा है कि नीतीश बीजेपी से नजदीकियां बढ़ाने के बहाने उसे कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं.

ऐसा लगता है जैसे नीतीश के साथ साथ लालू भी राष्ट्रीय राजनीति में मजबूत मौजूदगी चाहते हैं. नीतीश का प्लस प्वाइंट ये है कि उनकी छवि साफ सुथरी है जबकि लालू चारा घोटाले में सजा पाने के बाद जमानत पर हैं. हो सकता है लालू को नीतीश के प्रधानमंत्री बनने पर वाकई ऐतराज न हो लेकिन अपना रोल वो पहले से ही सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं. नीतीश के पीएम बनने की स्थिति में लालू को ये फायदा नजर आ रहा होगा कि तेजस्वी की कुर्सी पक्की हो जाएगी. वैसे लालू को ये भी नहीं भूलना चाहिये कि मौके की ताक में बीजेपी भी है और जरा सी चूक हुई तो उसे झटकते देर न लगेगी.

इन्हें भी पढ़ें :

मोदी के मिशन 2019 से बिहार में खलबली !

बिहार के महागठबंधन में गर्दा क्‍यों उड़ने लगा है ?

उत्तरप्रदेश के चुनाव परिणाम का बिहार की राजनीति पर असर

लेखक

आईचौक आईचौक @ichowk

इंडिया टुडे ग्रुप का ऑनलाइन ओपिनियन प्लेटफॉर्म.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय