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Updated: 05 जनवरी, 2016 06:05 PM
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आरक्षण को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रवैये में बदलाव देखा जा चुका है. जल्द ही ईसाई समुदाय को लेकर भी संघ के रवैये में तब्दीली देखी जा सकेगी. कोई इसे संघ का यू-टर्न कह सकता है, तो कोई इसे हृदय परिवर्तन की संज्ञा भी दे सकता है.

संघ पहले ईसाई मिशनरियों की आलोचना किया करता था लेकिन अब उन्हें साधने की कोशिश हो रही है. आरक्षण के मामले में भी पहले उसकी समीक्षा की बात कही गई, फिर उसे समाज में समानता के लिए जरूरी बता दिया गया. इन सारी कवायद के पीछे संघ का एक खास मकसद है.

सेवा पर सवाल

पिछले साल फरवरी की बात है, एक कार्यक्रम में मदर टेरेसा का जिक्र आया तो संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, "मदर टेरेसा की सेवा अच्छी रही होगी. परंतु इसमें एक उद्देश्य हुआ करता था कि जिसकी सेवा की जा रही है उसका ईसाई धर्म में धर्मांतरण किया जाए."

अपनी बात के पीछ भागवत ने तर्क भी पेश किए, "सवाल सिर्फ धर्मांतरण का नहीं है, लेकिन अगर ये सेवा के नाम पर किया जाता है, तो सेवा का मूल्य खत्म हो जाता है."

अखंड भारत के कंसेप्ट पर जारी बहस के बीच खबर है कि संघ ईसाई समुदाय को साधने की जुगत लगा रहा है.

संघ का ईसाई मंच

टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक संघ ईसाई समुदाय तक पहुंच बनाने के लिए उसके के कई नेताओं से मुलाकातें और मीटिंग की है. अभी तक नए संगठन का नाम फाइनल नहीं है, लेकिन रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि प्रस्तावित संगठन का नाम राष्ट्रीय ईसाई संघ रखा जा सकता है.

रिपोर्ट के मुताबिक 17 दिसंबर को दिल्ली में एक मीटिंग बुलाई गई थी जिसे 'भारत भूमि से प्रेम, शांति और सौहार्द की क्रिसमस की बधाई' नाम दिया गया था. संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार द्वारा आयोजित इस मीटिंग में वीएचपी के चिन्मयानंद स्वामी भी शामिल हुए.

करीब एक दशक पहले संघ ने मुस्लिमों को भी ऐसे ही जोड़ने की कोशिश की थी और उसी के तहत मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की स्थापना की हुई.

मुस्लिम राष्ट्रीय मंच

2002 में संघ की पहल पर मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की स्थापना की गई. तब केएस सुदर्शन संघ प्रमुख थे और उन्हीं की पहल पर इस मंच की स्थापना हुई. मंच से जुड़े नेताओं का मानना है कि संघ के बारे में गलतफहमियां फैलाई गई हैं कि संघ मुस्लिम विरोधी है, जबकि सच्चाई ये नहीं है.

मंच के बारे में इंद्रेश कुमार का कहना है, "मुस्लिम राष्ट्रीय मंच मुस्लिमों की तरफ से मुस्लिमों का मुस्लिमों के लिए बनाया संगठन है. मैं तो उनको सिर्फ मार्गदर्शन देता हूं."

वैसे 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को मुसलमानों के एक तबके का वोट भी मिला था. वरना, यूपी में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के लिए जीत सिर्फ पारिवारिक सदस्यों तक सिमटी नहीं रहती.

प्रधानमंत्री बनने से पहले जब मोदी लोगों से गुजरात के बाद देश सेवा का आशीर्वाद मांग रहे थे - एक मौलवी ने उन्हें टोपी पहनानी चाही, लेकिन मोदी ने मना कर दिया. मामला खूब चर्चित हुआ. लोक सभा चुनाव के दौरान गुजरात से मुस्लिम कार्यकर्ताओं का एक ग्रुप बनारस भी पहुंचा था. इस ग्रुप में महिलाएं भी शामिल थीं - और मोदी के पक्ष में उन्होंने दिन रात प्रचार किए. बनारस में मिली कामयाबी के बाद बिहार में भी ऐसी कोशिशें हुईं, लेकिन सारे प्रयास बेकार गए.

पहले मुसलमानों से दूरी कम करने की कोशिश, फिर जातीय भेदभाव खत्म कर हिंदुओं को साथ रखने की कोशिश और अब ईसाई समुदाय को साधने का प्रयास. इन सबके पीछे संघ का एक ही मकसद नजर आता है - कुछ ऐसा करो कि घर वापसी की नौबत न आए.

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