New

होम -> सियासत

 |  2-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 10 अगस्त, 2015 08:26 PM
शिवानंद तिवारी
शिवानंद तिवारी
  @shivanand.tivary
  • Total Shares

नरेन्द्र मोदी को सुनते हुए नीतीश की याद आ रही थी. नीतीश भी अच्छा बोलते हैं. बल्कि कुछ लोगों को नीतीश का भाषण नरेन्द्र मोदी के मुकाबले स्तरीय लग सकता है. लेकिन राजनीति में नरेन्द्र मोदी नीतीश के मुकाबले ज्यादा टिकाऊ हैं. इसलिए कि मोदी जोड़ने की कला में माहिर दिखाई दे रहे हैं तो नीतीश तोड़ने में.

अपने साथ के लोगों को अपने से अलग करने का इतिहास है नीतीश का. आज भाजपा से अलग के जो लोग भी नरेन्द्र मोदी के साथ दिखाई दे रहे हैं वे सब इधर ही के लोग हैं. बल्कि लोकसभा चुनाव के बाद तो जीतन राम मांझी के रूप में एक नए सहयोगी को भी जोड़ लिया है. दूसरी ओर नीतीश ने अभी तक जॉर्ज, दिग्विजय, उपेन्द्र कुशवाहा, प्रेम कुमार मणि, मोनाजिर हसन, शाबिर, एन के सिंह, जीतन राम मांझी सहित मुझे, अपने से अलग कर दिया. इनमें से शायद उपेन्द्र को छोड़कर कोई भी नीतीश के लिए चुनौती नहीं था. लेकिन नीतीश के अहंकार ने सबको अलग कर दिया.

मैं तो आज तक नहीं समझ पाया कि मेरे साथ उसने ऐसा व्यवहार क्यों किया? मैंने तो चेताया था कि भाई, नरेन्द्र मोदी को हल्के में मत लो. एक समय चाय बेचने वाला यह आदमी आज प्रधान मंत्री की कुर्सी का सशक्त दावेदार है. यह साधारण आदमी नहीं है. मैं तो सही साबित हुआ! तब तो नीतीश को मुझसे खेद व्यक्त करना चाहिए था! लेकिन इतनी नम्रता रही होती तो यह सब होता ही क्यों.

लालू और नीतीश के साथ तो मेरा बहुत पुराना सम्बंध रहा है. बल्कि लालू स्कूली छात्र थे तबसे उनके साथ सम्बन्ध है. प्रारम्भ से ही मैं जाति व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष करता रहा हूं. बहुत लोग कह देते हैं मेरा कोई आधार नहीं है. बिल्कुल सही है. आधार तो जाति से बनता है. लालू का आधार है. नीतीश, राम विलास जी या उपेन्द्र, इन सब का जातीय आधार है. इसलिए ही इन सबका राजनीति में भाव है.

जाति तोड़ो की राजनीति करने वाले मुझ जैसे ब्राह्मण का जाति में आधार कैसे बन सकता है भाई! लेकिन राजनीति में मेरे विचार हैं, नीतियों का एक धुंधला खाका है. उनको आगे बढ़ाने के लिए मैं कभी लालू के पीछे रहा तो कभी नीतीश के. दोनों ने मेरा उपयोग किया है. दोनों को इनके शुरुआती दिनों में मैंने मजबूत सहारा दिया है. आज दोनों ने मुझे घर बैठा दिया है.

अकेले क्या कर सकता हूं? तमाशा देख रहा हूं. बिहार में वही जीतेगा जिसका सामाजिक गठबंधन ज्यादा मजबूत होगा. महागठबंधन के दोनों नेता लंबे समय से बिहार की राजनीति के शीर्ष पर हैं. इन दोनों के साथ जितने लोग जुड़े हैं उससे ज़्यादा अलग हुए हैं. यही इन लोगों की सबसे बड़ी कमजोरी है. और इस गठबंधन के रीढ़ तो लालू ही हैं. नीतीश के पास तो मुझे ज्यादा कुछ दिख नहीं रहा है. देखिये बिहार फैसला क्या करता है?

लेखक

शिवानंद तिवारी शिवानंद तिवारी @shivanand.tivary

लेखक राज्यसभा के पूर्व सांसद हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय