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Updated: 04 जुलाई, 2020 08:36 PM
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कानपुर कांड (Kanpur kand) की परतें जैसे जैसे खुल रही है, रोंगटे खड़े होने वाले सच सामने आ रहे हैं. उत्तर प्रदेश पुलिस (UP Police) के एक डीएसपी समेत 8 पुलिकर्मियों की जघन्य हत्या कर गैंगस्टर विकास दुबे (Vikas Dubey) अब भी फरार है. प्रदेश की 2000 से ज्यादा पुलिस और आला अधिकारी विकास दुबे को घर दबोचने के लिए दिन-रात एक किए हुए है. सैकड़ों लोगों के फोन सर्विलांस पर लगे हुए हैं. विकास दुबे के 100 से ज्यादा करीबियों से पुलिस पूछताछ कर रही है. दो दिन बाद भी विकास दुबे और उसके गुर्गों का कुछ पता नहीं चल पाया है. पुलिसकर्मियों के साथ ही एसटीएफ भी विकास दुबे के पीछे लगी हुई है. माना जा रहा है कि विकास दुबे पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश या राजस्थान भाग गया है.

8 पुलिसकर्मियों की जघन्य हत्या कर यूपी की ढाई लाख पुलिस के हौसलों को पस्त करने का जो काम हिस्ट्री शीटर विकास दुबे ने किया है, वह पुलिसिया इतिहास के साथ ही प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के लिए किसी कलंक से कम नहीं है. पर क्या विकास दुबे के इस हौसले के पीछे प्रदेश के कुछ राजनेता और पुलिसकर्मी ही जिम्मेदार नहीं हैं, जो विकास दुबे को राजनीतिक संरक्षण देने के साथ ही उसे पुलिस कार्रवाई की भी पल-पल की खबर देते रहते थे. प्रदेश में किसी भी पार्टी की सरकार हो, हर किसी ने विकास दुबे को बचाने की कोशिश की और इससे उसका मन इतना बढ़ गया कि वह पुलिसकर्मियों की ही जान ले बैठा.

सियासत, अपराध और पुलिस गठजोड़!

यूपी हो चाहे अन्य प्रदेश, सियासत, गैंगस्टर और पुलिसिया गठजोड़ की बात नई नहीं है. जहां इन तीनों की कुंडली मिल जाती है, वहां विकास दुबे जैसे अपराधी बाहुबली बन जाते हैं. यूपी में श्रीप्रकाश शुक्ला हो, मुख्तार अंसारी हो या ब्रजेश सिंह समेत अन्य गैंगस्टर या अपराधी ऐसे ही तो पनपे हैं. अपराधियों की पुलिस और राजनेताओं से मिलीभगत का ही तो परिणाम है कि इन लोगों ने खौफ का कारोबार करते हुए न सिर्फ अकूत पैसे कमाए, बल्कि राजनीतिक चालबाजी के साथ ही उचित पुलिस प्रबंधन के बल पर वर्षों बेलगाम घोड़े की तरह दौड़ते रहे, जिनकी नकेल कसने की कोशिशें तो हुईं, लेकिन बस औपचारिकता के लिए. यूपी के जितने भी गैंगस्टर हैं, वे पुलिस पर हमला करने से बचते रहे हैं. श्रीप्रकाश शुक्ला ने जब पुलिस को मारना शुरू कर दिया तो उसका एनकाउंटर कर दिया गया. अब विकास दुबे ने जो किया है, उससे प्रदेश की योगी सरकार पर काफी दबाव बना है और उन्होंने अधिकारियों को साफ निर्देश दिए हैं कि जब तक विकास शुक्ला से जुड़े ऑपरेशंस खत्म नहीं हो जाते, तब तक कोई चैन से नहीं बैठेगा. 

बिकरू गांव से चलाता रहा जुर्म का कारोबार

यूपी के कानपुर स्थित बिठूर के बिकरू गांव में अपने किलेनुमा घर से विकास दुबे भी अपराध का कारोबार करता रहा और राजनीतिक संरक्षण के साथ ही पुलिस की मिलीभगत से वह बचता रहा. जब भी उसे पकड़ने की कोशिश की गई तो किसी ने किसी पुलिसकर्मी ने उसे पहले ही इत्तला कर दी और वह फरार होता गया. बीते मंगलवार की रात भी वही हुआ. जैसे ही पुलिस की टीम विकास दुबे से पूछताछ करने उसके गांव पहुंची तो इसकी खबर पहले से ही विकास दुबे को लग गई थी. उसने जेसीबी से पुलिस की गाड़ियां रोकीं और फिर अंधाधुंध फायरिंग कर एक डीएसपी समेत 8 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी. बिकरू गांव की जनता ने विकास को भगाने में हरसंभव मदद की. 25 हजार रुपये के इनामी बदमाश द्वारा पुलिस के खिलाफ इतनी बड़ी कार्रवाई करने की खबर से पूरा उत्तर प्रदेश सन्न रह गया. शनिवार को प्रशासन ने बिकरू गांव में विकास दुबे के किलेनुमा घर को जमींदोज कर दिया. उसकी गाड़ियों के काफिले को भी चकनाचूर कर दिया.

चौबेपुर थाना का दारोगा विनय तिवारी निकला मुखबिर?

अब मामले की जांच के बाद जो बातें निकलकर सामने आ रही हैं, वो काफी चौंकाने वाली है. दरअसल, हत्या की कोशिश से जुड़े एक मामले में एफआईआर के बाद शिवराजपुर, बिल्हौर और चौबेपुर के थानाकर्मी विकास को पकड़ने गए थे. चूंकि पुलिस को ये बात पता थी कि विकास दुबे काफी शातिर है और वह अभेद सुरक्षा में बिकरू गांव में रह रहा है, इसलिए 20 से ज्यादा पुलिसकर्मियों की टुकड़ी बिकरू गांव गई थी. लेकिन गांव में जाते ही जिस तरह से उन्हें घेर कर मारा गया, इससे पता चल गया था कि किसी ने मुखबिरी की है. मामले की जांच में पता चला है कि चौबेपुर थाना के एसओ विनय तिवारी की घटना से पहले कई बार बात हुई थी. विनय तिवारी के साथ ही एक सिपाही और होमगार्ड भी अक्सर विकास दुबे के संपर्क में रहता था. विनय तिवारी को आईजी मोहित अग्रवाल ने सस्पेंड कर दिया है और उससे कड़ी पूछताछ चल रही है. साथ ही अन्य संदिग्धों से भी पुलिस पूछताछ कर रही है.

विकास दुबे के सिर पर था सभी पार्टियों के नेताओं का हाथ

चाहे राजनीति हो या अन्य फील्ड, यह कहावत काफी सटीक है कि सैंया भये कोतवाल, अब डर काहे का. विकास दुबे ने जब वर्ष 2001 में थाने में घुसकर जब तत्कालीन राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की हत्या की तो किसी भी पुलिसकर्मी ने उसके खिलाफ गवाही नहीं दी. उस समय यूपी के सीएम थे राजनाथ सिंह. बीजेपी के ही राज में दिनदहाड़े बीजेपी के एक मंत्री की हत्या हो जाती है और आरोपी विकास दुबे का कुछ नहीं होता. माना जाता है कि विकास दुबे को प्रदेश की मायावती सरकार में बहुत शह मिला, लेकिन 2001 में तो प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी. इसके बाद विकास दुबे ने 2004 में कानपुर में एक केबल कारोबारी की हत्या कर दी, उस समय प्रदेश में मुलायम सिंह के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी की सरकार थी. इस हत्याकांड में भी विकास दुबे को कुछ नहीं हुआ. दरअसल, जब भी विकास के खिलाफ कार्रवाई की बात आई तो कोई न कोई बड़ा नेता या अधिकारी उसे बचाने आ गया और विकास हर बार बचता रहा. बीएसपी नेता हरिकिशन श्रीवास्तव, बीजेपी नेता भगवती सागर, कांग्रेस नेता राजाराम पाल, बीजेपी नेता अनिल शुक्ला वारसी से विकास दुबे की नजदीकियों के चर्चे हमेशा चलते रहते हैं.

कानपुर एनकाउंटर के बाद हालात सुधरेंगे?

ऐसे में कैसे कोई न्याय की उम्मीद करेगा. विकास दुबे हत्या, अपहरण, लूटपाट और जमीन पर अवैध कब्जा समेत 60 से ज्यादा संगीन अपराधों में नामजद है, लेकिन वह जेल से बाहर था. आज पुलिस डिपार्टमेंट अपने जांबाज अफसरों की शहादत पर आंसू बहा रहा है, उसी डिपार्टमेंट के कुछ भ्रष्ट पुलिसकर्मियों की वजह से विकास दुबे का इतना मन बढ़ा. पुलिस के ही कुछ मुखबिरों की वजह से 8 पुलिसकर्मियों की विकास दुबे ने नृशंस हत्या कर दी और आराम से फरार हो गया. प्रदेश में सत्ता चाहे बीजेपी की रही, एसपी की रही या बीएसपी की, हर बार इन दलों के नेताओं की वजह से विकास दुबे बचता रहा और उससे स्थानीय से लेकर लखनऊ तक के अधिकारी डरते रहे. नहीं तो 25 हजार रुपये इनामी बदमाश कैसे पुलिसवालों पर इस तरह अटैक करे. या विनय तिवारी जैसे पुलिसकर्मी किस खौफ या प्रभाव में आकर पुलिसिया कार्रवाई की पल-पल की खबर विकास दुबे तक पहुंचाते रहे. सियासत, अपराध और पुलिस के इसी गठजोड़ का बुरा परिणाम है कानपुर एनकाउंटर, जो कि मौजूदा योगी आदित्यनाथ के अपराधमुक्त यूपी से जुड़ी कोशिशों के रास्ते सबसे बड़ा अवरोध है.

न्याय की आस

कानपुर एनकाउंटर के बाद अब पुलिस कानपुर और आसपास के इलाकों में दबिश दे रही है. विकास दुबे के बिकरू गांव स्थित घर की कुर्की जब्ती हो गई है. विकास के पिता की गिरफ्तारी के साथ ही कई करीबियों को हिरासत में लेकर पूछताछ चल रही है. समय बहुत तेजी से बीता जा रहा है और शहीद पुलिसकर्मी के परिजन इस आस में बैठे हैं कि विकास दुबे जल्द से जल्द प्रशासन के हत्थे चढ़े. 55 वर्षीय विकास दुबे कब पुलिस की पकड़ में आएगा और कब उसे उसके अपराधों की सजा मिलेगी, इन सारे सवालों के जवाब भविष्य के गर्भ में हैं.

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