New

होम -> सियासत

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 12 मार्च, 2016 01:11 PM
गिरिजेश वशिष्ठ
गिरिजेश वशिष्ठ
  @girijeshv
  • Total Shares

एक देशभक्त देश के 17 बैंकों के 9 हज़ार करोड़ लेकर भाग गया. आपको सुनने में ये बात अटपटी लग सकती है लेकिन ऐसा अटपटा सच सुनने के लिए आपको तैयार रहना ही होगा. ये प्रतीकों पर आधारित देशभक्ति का दौर है और इस दौर में विजय माल्या जैसे लोगों को देशभक्त साबित करने के लिए प्रतीकों की कमी नहीं. आप कह सकते हैं कि विजय माल्या वो पहला भारतीय था जो बापू का चश्मा अंग्रेजों के चंगुल से निकालकर लाया, ये उसका देश प्रेम ही तो था कि बापू की जेब घड़ी, पीतल की थाली, कटोरी भी लाकर भारत मां के चरणों में डाल दी. 5 लाख डॉलर खर्च करके वो भारत मां का बेटा टीपू सुल्तान की तलवार वापस लाया.

दूसरा देशभक्त तिहाड़ जेल में है. उसने देश के लिए बहुत कुछ किया. भारत की हॉकी को जिंदा रखने के लिए सालों तक उसने राष्ट्रीय खेल की टीम को प्रायोजित किया. क्रिकेट के लिए उसने जबरदस्त योगदान दिया. भारतीय क्रिकेट टीम का प्रायोजक रहा. अपनी भारी भरकम कंपनी में वो हर साल भारत पर्व मनाता था. उसके न्यूज चैनलों में भारत का झंडा प्रमुखता से दिखता रहता था. इसने हमेशा देश के लिए मैडल लाने वालों को सोने चांदी और संपत्ति से लाद दिया. सेबी ने उसकी फायनेंस कंपनी में बड़े घपले पकड़े. सुप्रीमकोर्ट में भी इस देशभक्त की एक न चली. कहा गया कि आप पर भरोसा नहीं किया जा सकता. पैसा भरिए वरना जेल में रहिए. अब साहब जेल में हैं. वहीं से व्यापार करते हैं. वहीं कर्मचारियों के साथ बैठक करते हैं. वो पहले ऐसे कैदी हैं जिन्हें अपना बिजनेस जेल से चलाने की सुविधा मिली है.

ये भी पढ़ें- भारत का कर्जा डकारकर माल्या चले परदेस

तीसरा देशभक्त अदालत में गया. उसने देश में आम लोगों के लिए झंडा फहराने का अधिकार मांगा, मुकदमा लड़ा. देश भर में बड़े-बड़े झंडे लगा रहा है. झंडे के लिए एक फाउंडेशन भी बनाया. बाद में पता चला कि देशभक्त का नाम कोयला घोटाले में आया है. सरकार ने उन्हें कोयले की खदान मुफ्त में दे दी थी. देश के संसाधनों का खूब खनन किया इन देशप्रेमी महोदय ने.

इन दो उदाहरणों में देश भक्ति का जो पैमाना आपको अजीबोगरीब लग रहा है वो ही तो पैमाना है जिससे ज्यादातर लोग देशप्रेम की पैमाइश करते हैं. यही तो करते हैं हम देश भक्ति के नाम पर. कभी आपने सोचा कि देशभक्ति के प्रतीक ही तो हैं जिन्हें दिखाकर हमें भरमाया जाता है. हमें कहा जाता है कि जो झंडे को सलाम करके आप देशभक्त बन जाते हैं. कभी भारत मां नाम का एक प्रतीक बना दिया जाता है और उसकी पूजा न करने वालों को देश से बाहर चले जाने के लिए कह दिया जाता है. सीमाओं पर लड़ने वाले सैनिकों को देशभक्ति का प्रतीक बताकर देश की राजनीति रोज बाजार में बेचती है. कभी खादी को देशप्रेम का प्रतीक बता दिया जाता है तो कभी बहुसंख्यक समुदाय के लोग अपने एक देवता को राष्ट्रीय प्रतीक बताकर दूसरों को उसके सामने झुकने पर मजबूर करने की कोशिश करते हैं. कहने की बात नहीं है कि इन प्रतीकों के प्रति जरा सी बेरुखी आपके लिए मुसीबत बनकर खड़ी हो जाती है.

सबसे बड़ा सवाल है कि क्या भारत में प्रतीकों की पूजा करना ही असल देशभक्ति है. क्या भारत में रहने वाले लोग देश नहीं हैं. क्या संविधान को आत्मसात करने वाले 'हम भारत के नागरिक' एजेंडे पर नहीं होने चाहिए. क्या उनके हितों और अधिकारों की बात करना देशप्रेम नहीं है. कितनी अजीब बात है कि आदिवासियों की जमीनें हड़पकर उनपर कोयले की खदानें बनाकर आप किसी धनपति को मुफ्त में सौंप देते हैं और झंडा हिलाकर वो देशभक्त बन जाता है और इसका विरोध करने वाले देशद्रोही. कितनी अजीब बात है कि भारत के लोगों की मेहनत की कमाई उद्योगपति को मामूली ब्याज पर दे दी जाती है और वो एक नहीं 17 बैंकों से गरीब आबादी की बचत का पैसा लेकर सरकारी मदद से बाहर भाग जाता है. कितनी अजीब बात है कि लोगों को 5-5, 10-10 रुपये से लेकर लाखों रुपये के भविष्य के लिए बचाए गए पैसे का प्रबंधन फायनेंस कंपनी अपनी मर्जी से करती है. और प्रतीकों में अपनी देशभक्ति साबित कर देती है.

ये भी पढ़ें- इंतजार कीजिए विजय माल्या की मेड फॉर इंडिया स्कॉच का

बुरा लगे या भला, ये सारे घपलेबाजी के जो मामले सामने आते हैं सभी में आम लोगों को लूटने में धन्नासेठों की मदद करने वाला कोई और नहीं सरकार ही होती है. सरकार जिसे सच्चे देश यानी देश के जनगणमन का पालन और संरक्षण करना चाहिए वही इस लूट और बेईमानी का साधन बन जाती है. कब तक हम प्रतीकों के पीछे भागते रहेंगे? कब तक प्रतीकों को दिखाकर देश के आवाम को भरमाया जाता रहेगा. कब असल देश की बात होगी, देश की मिट्टी की बात होगी, देश की धरती की बात होगी, उसकी संतानों की बात होगी, उसके असली मालिकों की बात होगी. कब तक जुनून फैलाकर जनता को लूटा जाता रहेगा?  बात सोचने वाली है. भारत को गांधी जी के चश्मे से भरमाना बंद होना चाहिए, टीपू सुल्तान की तलवार से रोटी नहीं उगती, जागो भारत प्यारे जागो.

लेखक

गिरिजेश वशिष्ठ गिरिजेश वशिष्ठ @girijeshv

लेखक दिल्ली आजतक से जुडे पत्रकार हैं

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय